होम > Blog

Blog / 29 Dec 2025

परमाणु-सक्षम K-4 मिसाइल का सफल परीक्षण

संदर्भ:

हाल ही में, भारत ने विशाखापत्तनम तट से दूर बंगाल की खाड़ी में परमाणु-संचालित पनडुब्बी आईएनएस अरिघाट (INS Arighaat) से अपनी परमाणु-सक्षम K-4 पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

K-4 मिसाइल के बारे में:

      • प्रकार: पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM)
      • विकास: रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)
      • रेंज (मारक क्षमता): लगभग 3,500 किमी
      • प्रणोदन: दो-चरण ठोस-ईंधन रॉकेट
      • वारहेड क्षमता: परमाणु पेलोड ले जाने में सक्षम (लगभग 2.5 टन)
      • प्रक्षेपण प्लेटफार्म: अरिहंत-श्रेणी की परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियाँ (SSBNs), जैसे आईएनएस अरिघाट

Nuclear-Capable K-4 Missile

सामरिक महत्व:

      • यह परीक्षण भारत की परमाणु त्रय (न्यूक्लियर ट्रायड) अर्थात् थल, वायु और समुद्र से परमाणु हथियार पहुँचाने की क्षमता को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ करता है:
      • थल (Land): अग्नि-श्रृंखला की बैलिस्टिक मिसाइलें
      • वायु (Air): परमाणु-क्षमता युक्त रणनीतिक विमान
      • समुद्र (Sea): एसएसबीएन पर तैनात पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलें (SLBM)
      • एसएसबीएन लंबे समय तक समुद्र की गहराइयों में गुप्त रूप से तैनात रह सकती हैं, जिससे उन्हें समय-पूर्व पहचानना या निष्क्रिय करना अत्यंत कठिन हो जाता है।

आईएनएस अरिघाट के बारे में:

        • प्रकार: परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN)
        • कमीशनिंग: 29 अगस्त 2024
        • भूमिका: K-4 मिसाइलों की तैनाती और भारत के समुद्र-आधारित परमाणु निवारक को मजबूत करना।
        • महत्व: भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता की गहराई, उत्तरजीविता  और विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
      • आईएनएस अरिघाट, अरिहंत श्रेणी की दूसरी एसएसबीएन है, जो आईएनएस अरिहंत के बाद आई है (आईएनएस अरिहंत कम दूरी की K-15 एसएलबीएम से लैस है) K-4 मिसाइल की विस्तारित रेंज पनडुब्बियों को हिंद महासागर में सुरक्षित गश्ती क्षेत्रों से गहरे अंतर्देशीय लक्ष्यों पर हमला करने की अनुमति देती है।

भू-राजनीतिक निहितार्थ:

      • विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता: भारत का घोषित परमाणु सिद्धांत विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता पर आधारित है, जिसके अंतर्गत रणनीतिक बलों को इस स्तर पर बनाए रखा जाता है कि किसी भी परमाणु हमले के प्रत्युत्तर में अस्वीकार्य क्षति पहुँचाई जा सके। समुद्र-आधारित प्रक्षेपण प्रणाली इस विश्वसनीयता को सुदृढ़ करती है, क्योंकि यह एक गोपनीय, सुरक्षित और लचीली प्रतिघाती क्षमता सुनिश्चित करती है।
      • क्षेत्रीय सुरक्षा परिवेश: दक्षिण एशिया के जटिल सुरक्षा परिदृश्य जहाँ दो परमाणु-सशस्त्र पड़ोसी देश मौजूद हैं, के संदर्भ में दीर्घ-मार्गी एसएलबीएम का संचालनात्मक रूप से तैनात होना दबाव या बल-प्रयोग की राजनीति के विरुद्ध प्रतिरोधक का कार्य करता है। यह परमाणु टकराव की सीमा (थ्रेशहोल्ड) को ऊँचा उठाकर रणनीतिक स्थिरता में योगदान देता है।
      • प्रौद्योगिकीय एवं रणनीतिक स्वायत्तता: यह सफल परीक्षण स्वदेशी अनुसंधान, विकास और घरेलू संस्थानों के नेतृत्व में एकीकृत रक्षा उत्पादन के माध्यम से अर्जित रणनीतिक हथियार प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता को रेखांकित करता है।

निष्कर्ष:

आईएनएस अरिघात से परमाणु-क्षमता युक्त के–4 पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) का सफल परीक्षण भारत की रणनीतिक प्रतिरोधक संरचना में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है। यह परमाणु त्रय के समुद्र-आधारित घटक को मज़बूत करता है, द्वितीय-प्रहार क्षमता को सुदृढ़ करता है और उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों में भारत की प्रगति को उजागर करता है। बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितता के इस दौर में, ऐसी क्षमताएँ रणनीतिक स्थिरता को सुदृढ़ करती हैं और भारत के परमाणु सिद्धांत के अंतर्गत विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि करती हैं।