संदर्भ:
हाल ही में एंटोमोन (ENTOMON) नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन में यह पुष्टि की गई है कि पश्चिमी घाट क्षेत्र में केरल तितलियों की सबसे अधिक विविधता वाला भारतीय राज्य है। यह अध्ययन “केरल की तितलियाँ: स्थिति और वितरण” शीर्षक से प्रकाशित हुआ है, जिसका नेतृत्व शोधकर्ता कलेश सदाशिवन ने किया है।
प्रमुख निष्कर्ष:
1. तितली प्रजातियों की सर्वाधिक संख्या:
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- केरल में तितलियों की कुल 328 प्रजातियाँ पाई गई हैं, जो पश्चिमी घाट क्षेत्र में स्थित सभी भारतीय राज्यों में सबसे अधिक है।
- ये प्रजातियाँ तितलियों के सभी प्रमुख कुलों—पैपिलियोनिडी, पियरिडी, निम्फालिडी, लाइकेनिडी, हेस्पेरिडी और रियोडिनिडी—से संबंधित हैं, जिससे केरल की व्यापक जैव विविधता स्पष्ट होती है।
- पूरे पश्चिमी घाट क्षेत्र में तितलियों की कुल 337 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि केरल इस पर्वत श्रृंखला में तितली विविधता का प्रमुख केंद्र है।
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2. स्थानिक प्रजातियाँ और संरक्षण महत्व:
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- केरल में पाई गई 328 प्रजातियों में से 41 प्रजातियाँ पश्चिमी घाट की स्थानिक (एंडेमिक) हैं, अर्थात् ये दुनिया में केवल इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं।
- स्थानिक तितलियाँ विशेष प्रकार के आवास पर निर्भर होती हैं और पर्यावरणीय बदलावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, इसलिए ये संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- इन स्थानिक प्रजातियों की उपस्थिति पश्चिमी घाट की वैश्विक जैव विविधता को और अधिक महत्वपूर्ण बनाती है तथा केरल में प्राकृतिक आवासों के संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाती है।
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जैव संकेतक (Bioindicator) के रूप में तितलियों का महत्व:
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- तितलियाँ पर्यावरण की स्थिति बताने वाले महत्वपूर्ण जैव संकेतक मानी जाती हैं, क्योंकि वे आवास में होने वाले बदलाव, पौधों की उपलब्धता और जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं।
- तितलियों की अधिक विविधता आमतौर पर समृद्ध वनस्पति और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत देती है।
- इनकी संख्या और उपस्थिति से किसी क्षेत्र की समग्र जैव विविधता का आकलन किया जा सकता है।
संरक्षण से जुड़े निष्कर्ष:
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- हालाँकि केरल में तितलियों की प्रजातियाँ बहुत अधिक हैं, फिर भी इनमें से केवल कुछ ही प्रजातियाँ राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम या IUCN रेड लिस्ट में शामिल हैं, जिससे संरक्षण व्यवस्था में कमी दिखाई देती है।
- स्थानिक प्रजातियों की अधिक संख्या यह संकेत देती है कि केरल में वनों, संरक्षित क्षेत्रों और जैव विविधता गलियारों की सुरक्षा को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
- संभावित संरक्षण उपायों में तितली आवासों का मानचित्रण, उनके पोषक पौधों का संरक्षण, नागरिक विज्ञान आधारित निगरानी कार्यक्रम तथा पर्यावरणीय योजना में तितली विविधता को शामिल करना शामिल है।
तितलियों के बारे में:
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- तितलियाँ रंग-बिरंगे कीट होती हैं, जिनका जीवन चक्र चार चरणों अंडा, लार्वा (इल्ली), प्यूपा (कोष) और वयस्क में पूरा होता है। इनके शरीर के तीन भाग होते हैं सिर, वक्ष और उदर। इनके छह पैर होते हैं और पंख सूक्ष्म शल्कों से ढके होते हैं। तितलियाँ अपने पैरों से स्वाद लेती हैं और लंबी सूंड (प्रोबोसिस) से फूलों का रस पीती हैं।
- ये परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन आवास नष्ट होने और जलवायु परिवर्तन के कारण इन्हें खतरा भी बढ़ रहा है। कुछ तितलियाँ, जैसे मोनार्क तितली, लंबी दूरी का प्रवास भी करती हैं।
निष्कर्ष:
केरल को तितली विविधता में शीर्ष राज्य के रूप में पहचान मिलना जहाँ 328 प्रजातियाँ और 41 स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, दक्षिणी पश्चिमी घाट की समृद्ध पारिस्थितिकी को दर्शाता है। यह उपलब्धि न केवल वैश्विक जैव विविधता संरक्षण में केरल की भूमिका को रेखांकित करती है, बल्कि तेजी से बदलते पर्यावरण के बीच प्रभावी संरक्षण नीतियाँ बनाने की आवश्यकता को भी मजबूत करती है।

