संदर्भ:
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा ने "गिग वर्कर्स कल्याण विधेयक, 2025" पारित किया है, जिसका उद्देश्य डिलीवरी एजेंट, राइड-हेलिंग ड्राइवर जैसे प्लेटफ़ॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स के लिए एक व्यापक और संरचित कल्याणकारी ढाँचा तैयार करना है।
· यह विधेयक गिग अर्थव्यवस्था के शहरी क्षेत्रों में हो रहे तेज़ विकास को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है, और इसका मुख्य उद्देश्य गिग वर्कर्स को बुनियादी अधिकार, सामाजिक सुरक्षा, और बेहतर कार्य परिस्थितियों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
1. कल्याण निधि का निर्माण:
· विधेयक के अंतर्गत गिग वर्कर्स के लिए एक समर्पित सामाजिक सुरक्षा और कल्याण निधि स्थापित की जाएगी, जिसका उद्देश्य उनके सामाजिक और आर्थिक संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इस निधि के प्रमुख स्रोतों में प्लेटफ़ॉर्म और वर्कर के बीच होने वाले प्रत्येक लेनदेन पर 1% से 5% तक का कल्याण शुल्क, गिग वर्कर्स द्वारा किया जाने वाला स्वैच्छिक योगदान, तथा राज्य और केंद्र सरकारों से प्राप्त अनुदान शामिल होंगे। इस निधि के प्रशासनिक व्यय को कुल निधि के अधिकतम 5% तक सीमित रखा गया है, ताकि अधिकतम संसाधन सीधे वर्कर्स के कल्याण में उपयोग हो सकें।
· विधेयक के तहत एक समर्पित बोर्ड का गठन किया जाएगा, जो गिग वर्कर्स और एग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म का पंजीकरण, कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, और अधिनियम के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने का कार्य करेगा।
3. विवाद समाधान:
· गिग वर्कर्स और प्लेटफ़ॉर्म के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों के समाधान के लिए उपयुक्त तंत्र विकसित किए जाएंगे।
4. कार्य परिस्थितियाँ और आय सुरक्षा:
· विधेयक गिग वर्कर्स के लिए उचित कार्य परिस्थितियों, स्वास्थ्य सुरक्षा और आय स्थिरता पर विशेष ज़ोर देता है, क्योंकि इनमें से कई श्रमिक प्रतिदिन 16 घंटे तक खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं।
गिग वर्कर के बारे में:
· सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 गिग वर्कर को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है, जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों से अलग होकर आय-सृजन वाली गतिविधियों में संलग्न होता है।
गिग कार्य आमतौर पर लचीला, अंशकालिक या कार्य-आधारित होता है, जिसकी मध्यस्थता प्रायः डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से होती है।
गिग वर्कर्स को मोटे तौर पर निम्न में वर्गीकृत किया जाता है:
· प्लेटफ़ॉर्म-आधारित वर्कर: वे श्रमिक जो डिजिटल ऐप्स जैसे उबर, ओला ड्राइवर, स्विगी या ज़ोमैटो डिलीवरी एजेंट के माध्यम से काम करते हैं।
· गैर-प्लेटफ़ॉर्म गिग वर्कर: पारंपरिक क्षेत्रों में आकस्मिक या स्व-नियोजित श्रमिक, जैसे दर्जी या घरेलू सहायक।
नीति आयोग के अनुसार, भारत का गिग कार्यबल वर्तमान में लगभग 7.7 मिलियन है, जो 2029-30 तक बढ़कर 23.5 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है।
गिग वर्कर्स के लिए सरकारी पहल:
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- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: गिग वर्कर्स के पंजीकरण, सामाजिक सुरक्षा कोष के निर्माण, तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बीमा और कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण को सक्षम बनाती है।
- राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड: कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए गिग वर्कर्स और एग्रीगेटर प्रतिनिधियों को शामिल करेगा।
- ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों को लक्षित सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ प्रदान करने हेतु एक केंद्रीकृत डेटाबेस है।
- बजट 2025: आयुष्मान भारत (पीएमजेएवाई) के तहत गिग वर्कर्स को स्वास्थ्य कवरेज में शामिल करने की घोषणा की गई है।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: गिग वर्कर्स के पंजीकरण, सामाजिक सुरक्षा कोष के निर्माण, तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बीमा और कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण को सक्षम बनाती है।
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- सामाजिक सुरक्षा का अभाव: "स्वतंत्र ठेकेदार" के रूप में वर्गीकृत होने से वेतन, कार्य घंटे और सुरक्षा से वंचित रहते हैं।
- स्वास्थ्य जोखिम: लंबे समय तक काम और तेज़ डिलीवरी दबाव से दुर्घटना का खतरा बढ़ता है।
- एल्गोरिद्म नियंत्रण: प्लेटफ़ॉर्म के अस्पष्ट एल्गोरिद्म से अक्सर अनुचित दंड होता है।
- कम वेतन: कई गिग वर्कर्स न्यूनतम आय कमाते हैं; जैसे ब्लिंकिट प्रति डिलीवरी ₹15 देता है, जो ईंधन खर्च भी पूरा नहीं करता।
- सामाजिक सुरक्षा का अभाव: "स्वतंत्र ठेकेदार" के रूप में वर्गीकृत होने से वेतन, कार्य घंटे और सुरक्षा से वंचित रहते हैं।
निष्कर्ष:
गिग वर्कर्स वेलफेयर बिल, 2025 का कर्नाटक में पारित होना गिग वर्कर्स के लिए एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम है। यह कानून हजारों गिग वर्कर्स के जीवन को बेहतर बनाने की क्षमता रखता है और अन्य राज्यों के लिए भी गिग वर्कर्स के कल्याण को प्राथमिकता देने का उदाहरण प्रस्तुत करता है। जैसे-जैसे गिग अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, यह जरूरी है कि गिग वर्कर्स को उनके बुनियादी अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।