संदर्भ:
नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने चेतावनी दी है कि भारत के प्राकृतिक पारितंत्र (Ecosystems) आक्रामक विदेशी पौधों (Invasive Alien Plants) के बढ़ते प्रसार से तेज़ी से प्रभावित हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही है, बल्कि समाज, स्थानीय समुदायों और लोगों की आजीविका पर भी गहरा असर डाल रही है।
आक्रामक प्रजातियों के बारे में:
आक्रामक प्रजातियाँ वे बाहरी (गैर-देशी) पौधे या जीव होते हैं, जो किसी नए क्षेत्र में पहुँचने के बाद तेज़ी से फैलने लगते हैं और स्थानीय वनस्पतियों व जीवों को प्रभावित करते हैं। इनके फैलाव से पारितंत्र का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है और उसकी संरचना व कार्यप्रणाली में कई बदलाव आने लगते हैं।
मुख्य निष्कर्ष:
समस्या का विस्तार
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- आक्रामक विदेशी पौधों के कारण भारत में हर वर्ष लगभग 15,500 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक क्षेत्र का नुकसान होता है।
- देश के करीब दो-तिहाई प्राकृतिक पारितंत्र अब 11 प्रमुख आक्रामक पौधों से प्रभावित हैं, जिनमें लैंटाना कैमरा, क्रोमोलेना ओडोराटा और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं।
- आक्रामक विदेशी पौधों के कारण भारत में हर वर्ष लगभग 15,500 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक क्षेत्र का नुकसान होता है।
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आक्रामक पौधों के फैलाव के कारण:
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- जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान, अनियमित वर्षा और बार-बार लगने वाली आग आक्रामक पौधों के प्रसार को तेज़ कर देते हैं।
- भूमि उपयोग में बदलाव: जंगलों, घासभूमियों और आर्द्रभूमियों को कृषि, इंफ्रास्ट्रक्चर या अन्य विकास गतिविधियों में बदलने से पारितंत्र कमजोर होते हैं।
- जैव विविधता में गिरावट: जब स्थानीय प्रजातियाँ कम हो जाती हैं, तो पारितंत्र का प्रतिरोध कम होता है और आक्रामक पौधों को आसानी से फैलने का अवसर मिल जाता है।
- आग और चराई के बदलते पैटर्न: आग की आवृत्ति में बदलाव और पशुओं की चराई के दबाव में अंतर विभिन्न प्रकार के आक्रामक पौधों के तेज़ी से बढ़ने में सहायक बनते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान, अनियमित वर्षा और बार-बार लगने वाली आग आक्रामक पौधों के प्रसार को तेज़ कर देते हैं।
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भारत में प्रमुख आक्रामक प्रजातियाँ:
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- लैंटाना कैमरा (Lantana camara): अधिकांश राज्यों में प्रमुख रूप से फैली हुई; जंगलों और घास के मैदानों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
- क्रोमोलेना ओडोराटा (Chromolaena odorata): भारत में सबसे तेजी से फैलने वाले आक्रामक पौधों में से एक; इसका व्यापक प्रसार देशी पारितंत्रों को काफी हद तक बदल देता है।
- प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis juliflora): रेगिस्तान बनने से रोकने के लिए लगाया गया था; लेकिन अब यह सूखे इलाकों में पूरी तरह हावी होकर वन्यजीवों और चरवाहों के लिए आवश्यक देसी झाड़ियों की जगह ले रहा है।
- अन्य उल्लेखनीय प्रजातियाँ: एगेराटिना एडेनोफोरा (Ageratina adenophora), मिकानिया माइक्रान्था (Mikania micrantha), ज़ैंथियम स्ट्रूमेरियम (Xanthium strumarium)
- लैंटाना कैमरा (Lantana camara): अधिकांश राज्यों में प्रमुख रूप से फैली हुई; जंगलों और घास के मैदानों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
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सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र:
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- पश्चिमी घाट, हिमालय और पूर्वोत्तर भारत: इन अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों में आक्रामक पौधों का फैलाव अन्य क्षेत्रों की तुलना में लगभग दोगुनी तेजी से हो रहा है।
- शुष्क और आर्द्र घासभूमियाँ, जैसे:
- पेनिनसुलर भारत की शुष्क घासभूमियाँ
- गंगा–ब्रह्मपुत्र बेसिन की आर्द्र घासभूमियाँ
- पश्चिमी घाट की शोला घासभूमियाँ
- सवाना क्षेत्र
- पेनिनसुलर भारत की शुष्क घासभूमियाँ
- यदि इन क्षेत्रों में समय रहते संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो एक ही पीढ़ी में पूरे पारितंत्र की प्रकृति आक्रामक प्रजातियों के पक्ष में बदल सकती है।
- पश्चिमी घाट, हिमालय और पूर्वोत्तर भारत: इन अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों में आक्रामक पौधों का फैलाव अन्य क्षेत्रों की तुलना में लगभग दोगुनी तेजी से हो रहा है।
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सामाजिक और आर्थिक प्रभाव:
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- रोज़गार और आजीविका पर असर: आक्रामक पौधों के फैलाव से चारा, ईंधन लकड़ी और पानी की उपलब्धता कम हो जाती है और मिट्टी की उर्वरता घटती है।
- आर्थिक नुकसान: 1960 से 2020 के बीच आक्रामक प्रजातियों के कारण भारत को लगभग ₹8,30,000 करोड़ (127.3 बिलियन डॉलर) का भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: कई आक्रामक पौधों के उत्सर्जन से सांस संबंधी समस्याएँ बढ़ती हैं और कुछ स्थानों पर पोषण की कमी जैसी चुनौतियाँ भी गहरी हो जाती हैं।
- प्रवास: संसाधनों की कमी के कारण ग्रामीण और चरवाहा समुदायों को चारा, पानी और अन्य जरूरतों के लिए पहले से अधिक दूरी तय करनी पड़ती है।
- रोज़गार और आजीविका पर असर: आक्रामक पौधों के फैलाव से चारा, ईंधन लकड़ी और पानी की उपलब्धता कम हो जाती है और मिट्टी की उर्वरता घटती है।
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पर्यावरणीय और पारितंत्र संबंधी नुकसान:
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- जैव विविधता में गिरावट: आक्रामक पौधे स्थानीय वनस्पतियों जानवरों को बाहर कर देते हैं।
- पारितंत्र के व्यवहार में परिवर्तन: आक्रामक प्रजातियाँ मिट्टी की नमी, आग लगने के चक्र, प्रकाश उपलब्धता और चराई के पैटर्न को बदल देती हैं।
- आक्रामकता का तेज़ विस्तार: जो पौधे पहले केवल शुष्क क्षेत्रों तक सीमित थे, वे अब हिमालयी जंगलों, नम वनों और सदाबहार पारितंत्रों में भी पहुँच रहे हैं।
- जैव विविधता में गिरावट: आक्रामक पौधे स्थानीय वनस्पतियों जानवरों को बाहर कर देते हैं।
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निष्कर्ष:
आक्रामक विदेशी पौधे भारत के प्राकृतिक पारितंत्रों को बेहद तेज़ी से रूपांतरित कर रहे हैं। इससे जैव विविधता, पर्यावरणीय संतुलन और करोड़ों लोगों की आजीविका पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। यदि समय रहते एक समन्वित, वैज्ञानिक और राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई न की गई तो, यह समस्या आने वाले वर्षों में एक बड़े सामाजिक–पारिस्थितिक संकट का रूप ले सकती है। भारत की प्राकृतिक धरोहर की रक्षा और ग्रामीण समुदायों की आजीविका सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति मिशन की स्थापना अब अत्यंत आवश्यक हो गई है।

