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Blog / 25 Jun 2025

भारत में बाल श्रम संकट

संदर्भ:

हाल ही में जारी राष्ट्रीय रिपोर्ट बिल्डिंग द केस फॉर ज़ीरो: हाउ प्रॉसिक्यूशन एक्ट्स ऐज ए टिपिंग पॉइंट टू एंड चाइल्ड लेबर ने भारत में बाल श्रम की भयावह स्थिति को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024–25 के दौरान 53,000 से अधिक बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया। ये आंकड़े जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (JRC) द्वारा जुटाए गए हैं, जो 250 से अधिक स्वयंसेवी संगठनों (NGOs) का एक नेटवर्क है और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर कार्य करता है। इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि देश में बाल अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हो रहा है और कानूनों के क्रियान्वयन में भी गंभीर कमियाँ हैं। यह एक ऐसी चुनौती है, जिसे तत्काल और ठोस उपायों से संबोधित करने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें:

बाल श्रम बचाव में अग्रणी राज्य: रिपोर्ट के अनुसार, जिन राज्यों में सबसे अधिक बच्चों को बाल श्रम से मुक्त किया गया, वे हैं:

·         तेलंगाना – 11,063 बच्चे

·         बिहार – 3,974 बच्चे

·         राजस्थान – 3,847 बच्चे

इनके अलावा उत्तर प्रदेश (3,804) और दिल्ली (2,588) जैसे राज्य भी प्रमुख रहे। 1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 के बीच 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 38,889 बचाव अभियान चलाए गए।

सबसे खराब क्षेत्रों में बाल श्रम: रिहा किए गए 90% बच्चे ऐसे क्षेत्रों में काम कर रहे थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों में माना है। इनमें शामिल हैं:

·         स्पा और मसाज पार्लर

·         ऑर्केस्ट्रा और प्रदर्शन समूह

·         वेश्यावृत्ति, अश्लीलता और यौन शोषण से जुड़े कार्य

यह न केवल आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण को दर्शाता है, बल्कि उन्हें गंभीर मानसिक और शारीरिक नुकसान होने का खतरा भी है।

कानूनी कार्रवाई और प्रवर्तन में कमी: संयुक्त प्रयासों से 38,388 एफआईआर दर्ज हुईं और 5,809 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इनमें से 85% गिरफ्तारियां बाल श्रम से संबंधित अपराधों के लिए थीं। सबसे अधिक गिरफ्तारियां तेलंगाना, बिहार और राजस्थान में हुईं।

·        हालांकि, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बच्चों को बड़ी संख्या में रिहा किया गया, लेकिन वहां गिरफ्तारी की संख्या कम रही, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कानून को सख्ती से लागू करने में अब भी कमी है।

India’s Child Labour Crisis

प्रमुख सिफारिशें और नीतिगत सुझाव:

रिपोर्ट में बाल श्रम की समस्या से निपटने के लिए कई अहम सिफारिशें की गई हैं, जिनमें शामिल हैं:

·         पर्याप्त बजट के साथ राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन मिशन की शुरुआत की जाए।

·         हर ज़िले में बाल श्रम टास्क फोर्स गठित की जाए, जो बचाव, जांच और पुनर्वास की निगरानी करे।

·         बाल श्रम से जुड़े अपराधों में कानूनी कार्रवाई और अभियोजन प्रक्रिया को मज़बूत बनाया जाए ताकि दोषियों को सज़ा मिल सके।

·         पीड़ित बच्चों की सहायता के लिए पुनर्वास फंड की स्थापना की जाए।

·         18 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी दी जाए, क्योंकि स्कूल छोड़ने वाले बच्चे बाल श्रम का शिकार बनने की अधिक आशंका में रहते हैं।

·         खतरनाक व्यवसायों की सूची का विस्तार किया जाए, ताकि अधिक क्षेत्रों को बाल श्रम के दायरे से बाहर किया जा सके।

·         सरकारी खरीद और ठेकों में बाल श्रम के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जाए।

·         हर राज्य में स्थानीय जरूरतों के अनुसार विशेष बाल श्रम नीति बनाई जाए।

·         सतत विकास लक्ष्य (SDG) 8.7 के तहत बाल श्रम समाप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को वर्ष 2030 तक बढ़ाया जाए, और इसके लिए स्पष्ट, समयबद्ध लक्ष्य तय किए जाएं।

निष्कर्ष:
भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के कन्वेंशन 182 का हस्ताक्षरकर्ता है, जो बच्चों को सबसे बुरे रूपों में श्रम से मुक्त करने की बाध्यता तय करता है। वर्ष 2024–25 में हुए बड़े पैमाने पर बचाव अभियान यह दर्शाते हैं कि इस दिशा में कुछ प्रगति ज़रूर हुई है, लेकिन बच्चों का जिस पैमाने पर शोषण हो रहा है, वह यह भी साफ़ करता है कि समस्या की जड़ें अब भी गहरी हैं। सिर्फ बच्चों को बचा लेना ही पर्याप्त नहीं है जब तक दोषियों को न्यायिक दंड नहीं मिलेगा और बच्चों का समुचित पुनर्वास नहीं होगा, तब तक यह लड़ाई अधूरी रहेगी। मज़बूत कानून, उनका कठोर कार्यान्वयन और पीड़ित बच्चों के लिए दीर्घकालिक सामाजिक सहायता प्रणाली बेहद आवश्यक है, अन्यथा वे दोबारा उसी चक्रव्यूह में फँस सकते हैं।

यह रिपोर्ट इस ओर स्पष्ट संकेत देती है कि केवल राहत कार्यों से काम नहीं चलेगा, हमें शिक्षा, नीतिगत सुधार और समुदाय की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से एक समग्र और समन्वित राष्ट्रीय रणनीति अपनानी होगी, ताकि बाल श्रम की समस्या का स्थायी समाधान हो सके।