संदर्भ:
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई के बाद तुर्की और अज़रबैजान द्वारा पाकिस्तान को खुला समर्थन दिए जाने के कारण भारत में व्यापक विरोध देखने को मिला। इसके चलते इन देशों के साथ यात्रा, व्यापार और शैक्षणिक संबंधों के बहिष्कार की प्रक्रिया तेज हो गई।
भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
तुर्की और अज़रबैजान के पाकिस्तान से लंबे समय से मजबूत संबंध हैं। तुर्की ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है और 2020 के नागोर्नो-कराबाख युद्ध के दौरान अज़रबैजान को आर्मेनिया के खिलाफ मदद दी थी। बदले में, पाकिस्तान ने साइप्रस जैसे विवादों में तुर्की का समर्थन किया।
इनके घनिष्ठ संबंधों में सैन्य सहयोग भी शामिल है। 1990 के दशक से तुर्की पाकिस्तान को हथियार बेचता रहा है, जिनमें तोपें और बख्तरबंद वाहन शामिल हैं। दूसरी ओर, भारत मुख्य रूप से आर्मेनिया को हथियार निर्यात करता है और तुर्की या अज़रबैजान के साथ कोई आधिकारिक रक्षा समझौता नहीं है।
हाल ही में भारत-पाक सीमा झड़पों के दौरान पाकिस्तान द्वारा तुर्की निर्मित ‘सोंगर’ ड्रोन का उपयोग करने से तनाव और बढ़ गया है।
आर्थिक और व्यापारिक संबंध:
• व्यापार का स्तर और स्वरूप: भारत के तुर्की और अज़रबैजान से आयात उसकी कुल कच्चे तेल की आयात का 1% से भी कम है, जिससे आर्थिक निर्भरता बहुत कम है। तुर्की द्वारा भारत को निर्यात की जाने वाली मशीनरी जैसे परमाणु रिएक्टर और बॉयलर भी भारत के कुल आयात का मात्र ~1% हिस्सा है, जिसमें चीन और जर्मनी का वर्चस्व है।
o हालांकि, अज़रबैजान भारत पर अपने कच्चे तेल के निर्यात के लिए अधिक निर्भर है और 2023 में भारत उसका तीसरा सबसे बड़ा खरीदार था। इस कारण, भारत द्वारा व्यापारिक प्रतिबंध लगाने पर अज़रबैजान को तुर्की की तुलना में अधिक नुकसान हो सकता है।
• व्यापार बहिष्कार और उद्योग की प्रतिक्रिया: भारत के व्यापारी संघों और कंपनियों ने तुर्की और अज़रबैजान से वस्तुओं और सेवाओं के बहिष्कार की दिशा में सक्रिय कदम उठाए हैं। इनमें यात्रा बुकिंग को निलंबित करना, तुर्की एयरलाइंस से साझेदारी समाप्त करना और तुर्की से सेब का आयात बंद करना शामिल है। राजनीतिक दलों और व्यापार समूहों ने तुर्की के आयात और अनुबंधों पर व्यापक प्रतिबंध की मांग की है, जिससे बढ़ते राष्ट्रवादी रुख का संकेत मिलता है।
पर्यटन और शैक्षणिक आदान-प्रदान:
• 2024 में तुर्की में लगभग 3,30,000 भारतीय पर्यटक गए, जो 2014 के लगभग 1,20,000 से काफी अधिक है।
• अज़रबैजान में यह वृद्धि और भी तेज रही, जहाँ 2014 में 5,000 से कम भारतीय पर्यटकों की संख्या 2024 में लगभग 2,44,000 तक पहुँच गई।
• 2023 में अज़रबैजान में भारतीय पर्यटकों की हिस्सेदारी 6% थी, जो 2024 में बढ़कर 10% हो गई।
• इसी प्रकार, तुर्की और अज़रबैजान में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2017 में 100 से कम थी, जो 2024 की शुरुआत तक बढ़कर 777 हो गई।
बहिष्कार आंदोलन इन क्षेत्रों के लिए खतरा बन गया है। यात्रा प्लेटफार्मों के अनुसार बुकिंग में 50% या उससे अधिक की गिरावट आई है और कुछ भारतीय टूर ऑपरेटरों ने इन देशों के लिए अपने सभी टूर पैकेज बंद कर दिए हैं।
रणनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव:
• तुर्की और अज़रबैजान से संबंध तोड़ने से भारत मध्य एशिया और व्यापक तुर्की क्षेत्र के देशों से खुद को अलग कर सकता है।
• यह बहिष्कार भारत के विदेश संबंधों में एक सख्त राष्ट्रवादी और प्रतिशोधात्मक रुख को दर्शाता है।
• शैक्षणिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में रुकावट से भारत की “सॉफ्ट पावर” या सांस्कृतिक प्रभाव भी कम हो सकता है।
• तुर्की और अज़रबैजान पाकिस्तान और चीन की ओर और अधिक झुक सकते हैं, जिससे भारत की रणनीतिक स्थिति और जटिल हो सकती है।
निष्कर्ष:
भारत द्वारा तुर्की और अज़रबैजान का बहिष्कार केवल एक तात्कालिक राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया और उससे परे गहराते भू-राजनीतिक मतभेदों को दर्शाता है। आर्थिक रूप से भारत को इससे सीधा बड़ा नुकसान नहीं है, लेकिन इसके कूटनीतिक प्रभाव और दीर्घकालिक रणनीतिक परिणामों पर सावधानीपूर्वक विचार करना आवश्यक है।