संदर्भ:
हाल ही में संसद में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने पुष्टि की कि चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (बेंगलुरु) सहित कई प्रमुख भारतीय हवाई अड्डों पर GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) स्पूफिंग या GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) हस्तक्षेप की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।
जीपीएस स्पूफिंग के विषय में:
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- जीपीएस स्पूफिंग वह प्रक्रिया है जिसमें नकली उपग्रह संकेत भेजकर जीपीएस रिसीवर को गलत स्थान, गति या समय का अनुमान लगाने के लिए धोखा दिया जाता है। यह जामिंग (Jamming) से अलग है, जिसमें सिग्नल पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जबकि स्पूफिंग में डेटा में हेरफेर किया जाता है बिना रिसीवर को किसी प्रकार का पता चले।
- उड्डयन क्षेत्र में स्पूफिंग के कारण पायलट या ऑटोपायलट सिस्टम गलत दिशा, मार्ग या लैंडिंग कर सकते हैं। GPS केवल विमान नेविगेशन के लिए ही नहीं, बल्कि एयर ट्रैफिक कंट्रोल, लॉजिस्टिक्स और निगरानी प्रणालियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस कारण स्पूफिंग एक बहु-स्तरीय और गंभीर खतरा बन जाती है।
- जीपीएस स्पूफिंग वह प्रक्रिया है जिसमें नकली उपग्रह संकेत भेजकर जीपीएस रिसीवर को गलत स्थान, गति या समय का अनुमान लगाने के लिए धोखा दिया जाता है। यह जामिंग (Jamming) से अलग है, जिसमें सिग्नल पूरी तरह ब्लॉक हो जाते हैं, जबकि स्पूफिंग में डेटा में हेरफेर किया जाता है बिना रिसीवर को किसी प्रकार का पता चले।
घटनाएँ और प्रभाव:
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- चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और अमृतसर में उड़ानों में अस्थायी GPS गड़बड़ियाँ देखी गईं।
- पायलटों को सुरक्षित लैंडिंग और एप्रोच के लिए ग्राउंड-बेस्ड नेविगेशन सिस्टम का सहारा लेना पड़ा।
- कोई बड़ी दुर्घटना या उड़ान रद्द नहीं हुई; केवल मामूली मार्ग परिवर्तन हुआ। इससे पता चलता है कि बैकअप सिस्टम प्रभावी रहे।
- चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और अमृतसर में उड़ानों में अस्थायी GPS गड़बड़ियाँ देखी गईं।
जोखिम और संवेदनशीलताएँ:
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- स्पूफिंग से विमान की स्थिति, ऊँचाई और मार्ग पर गलत जानकारी मिल सकती है, जो सुरक्षा को खतरे में डालती है।
- यह एक साथ कई प्रणालियों जैसे कार्गो ट्रैकिंग, एयर ट्रैफिक कंट्रोल और डिजिटल संचार को प्रभावित कर सकती है।
- बार-बार होने वाली घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि यह साइबर खतरों या जानबूझकर नागरिक उड्डयन को प्रभावित करने का प्रयास भी हो सकता है।
- स्पूफिंग से विमान की स्थिति, ऊँचाई और मार्ग पर गलत जानकारी मिल सकती है, जो सुरक्षा को खतरे में डालती है।
सरकारी प्रतिक्रिया:
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- वायरलेस मॉनिटरिंग संगठन (WMO) और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) को हस्तक्षेप के स्रोतों की पहचान करने का निर्देश दिया गया है।
- GNSS गड़बड़ियों की रिपोर्टिंग के लिए SOPs जारी किए गए हैं।
- बैकअप के रूप में ग्राउंड-बेस्ड नेविगेशन सिस्टम का सक्रिय उपयोग किया जा रहा है।
- साइबर सुरक्षा एजेंसियों जैसे CERT-In और NCIIPC के साथ समन्वय बढ़ाया गया है, ताकि उड्डयन अवसंरचना को साइबर खतरों से सुरक्षित किया जा सके।
- वायरलेस मॉनिटरिंग संगठन (WMO) और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) को हस्तक्षेप के स्रोतों की पहचान करने का निर्देश दिया गया है।
नीति और सुरक्षा के लिए निहितार्थ:
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- मजबूत GNSS सुरक्षा ढाँचा और रीयल-टाइम स्पूफिंग डिटेक्शन सिस्टम की तत्काल आवश्यकता है।
- नियामक निगरानी को ऑडिट, आकस्मिक योजना और एजेंसियों के बीच समन्वय के माध्यम से मजबूत किया जाना चाहिए।
- ये घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि नागरिक उड्डयन सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, विशेषकर भारत के रणनीतिक इंडो-पैसिफिक हवाई क्षेत्र में।
- मजबूत GNSS सुरक्षा ढाँचा और रीयल-टाइम स्पूफिंग डिटेक्शन सिस्टम की तत्काल आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
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- चेन्नई और बेंगलुरु हवाई अड्डों पर हुई GPS स्पूफिंग घटनाओं ने भारत की उड्डयन प्रणाली की साइबर सुरक्षा कमजोरियों को उजागर किया है। हालांकि बैकअप सिस्टम ने तत्काल दुर्घटनाओं को रोका, यह घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि भारत को बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी:
- सुरक्षित GNSS सिस्टम
- रीयल-टाइम निगरानी
- कड़े नियामक उपाय
- साइबर-प्रतिरोध क्षमता का निर्माण
- सुरक्षित GNSS सिस्टम
- तकनीकी आधुनिकीकरण और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना भारत में सुरक्षित, विश्वसनीय और वैश्विक स्तर पर भरोसेमंद हवाई यात्रा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होगा।
- चेन्नई और बेंगलुरु हवाई अड्डों पर हुई GPS स्पूफिंग घटनाओं ने भारत की उड्डयन प्रणाली की साइबर सुरक्षा कमजोरियों को उजागर किया है। हालांकि बैकअप सिस्टम ने तत्काल दुर्घटनाओं को रोका, यह घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि भारत को बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी:

