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Blog / 19 Aug 2025

डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में जंगली घोड़ों के अस्तित्व पर संकट

संदर्भ:

हाल ही में एक अध्ययन ने असम के डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान (DSNP) में घास के मैदानों के लगातार घटते क्षेत्र पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह उद्यान भारत में जंगली घोड़ों का एकमात्र ज्ञात आवास है। उद्यान का पारिस्थितिकी तंत्र आक्रामक तथा देशी वनस्पतियों के फैलाव से संकट में है, जिससे आवासीय ह्रास और जैव विविधता के क्षरण की संभावना बढ़ रही है।

देशी और आक्रामक पौधे:

  • आक्रामक पौधे वे गैर-देशी प्रजातियाँ होती हैं जो नए पर्यावरण में तेजी से फैलती हैं और स्थानीय, देशी पौधों की जगह ले लेती हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ता है, जैव विविधता घटती है और पर्यावरण एवं आर्थिक नुकसान हो सकता है।
  • हाल के अध्ययन में असम के डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में दो देशी प्रजातियाँ बॉम्बैक्स सीबा (सिमालु) और लेगरस्ट्रोमिया स्पेशोसा (अजार) भी पाए गए हैं, जो इस पारिस्थितिकी तंत्र के बदलाव में योगदान दे रही हैं।
  • ये देशी प्रजातियाँ आक्रामक पौधों जैसे क्रोमोलेना ओडोराटा, एगेरेटम कोनीज़ोइड्स, पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस और मिकानिया माइक्रांथा के साथ मिलकर घास के मैदानों के प्राकृतिक परिदृश्य को बदल रही हैं, जिससे जंगली घोड़ों के आवास में गिरावट हो रही है।

The Last Feral Horses of India | The India Forum

जैव विविधता पर प्रभाव:

·        अध्ययन में पाया गया कि डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान के परिदृश्य में बदलाव घास के मैदानों में रहने वाली कई प्रजातियों के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। ये प्रजातियाँ, जो पहले से ही आवासीय ह्रास के कारण वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त हैं, इस पर्यावरणीय दबाव से और अधिक प्रभावित हो रही हैं।
उल्लेखनीय घटती प्रजातियों में बंगाल फ्लोरिकन, हॉग डियर और स्वैम्प ग्रास बैबलर प्रमुख हैं।

जंगली घोड़ों के बारे में:

·        डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान भारत में जंगली घोड़ों की एकमात्र ज्ञात आबादी का घर है। इन घोड़ों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कानूनी सुरक्षा नहीं प्राप्त है, जिससे ये आवासीय क्षरण, बाढ़, पशुधन से प्रतिस्पर्धा और अवैध कब्जे जैसी चुनौतियों के प्रति संवेदनशील हैं।

डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान के विषय में :
असम के डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान लगभग 765 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है, जिसमें मुख्य क्षेत्रफल 340 वर्ग किलोमीटर है। ब्रह्मपुत्र, लोहित और डिब्रू नदियों से घिरा यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला भारत का सबसे बड़ा सैलिक्स दलदली वन है।

  • 1890 में आरक्षित वन घोषित, इसे 1995 में वन्यजीव अभयारण्य, 1997 में बायोस्फीयर रिज़र्व और 1999 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
  • यहाँ बंगाल टाइगर, हाथी, जंगली घोड़े सहित 36 से अधिक स्तनधारी प्रजातियाँ और 500 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, जैसे सफेद पंखों वाला वुड डक और बंगाल फ्लोरिकन, पाई जाती हैं।
  • उद्यान में अर्ध-सदाबहार वन, घास के मैदान, आर्द्रभूमि, समृद्ध आर्किड वनस्पतियाँ तथा विविध मछली और सरीसृप भी मौजूद हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण जैव विविधता केंद्र बनाते हैं।

निष्कर्ष:

शोधकर्ताओं ने लक्षित घास के मैदानों के पुनरुद्धार, आक्रामक प्रजातियों पर प्रभावी नियंत्रण, तथा समुदाय-आधारित संरक्षण पहलों को प्राथमिकता देने की सिफारिश की है। उनका मानना है कि यदि शीघ्र हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो डिब्रू-सैखोवा के जंगली घोड़े अपना एकमात्र सुरक्षित आवास भी खो सकते हैं।