संदर्भ:
हाल ही में सरकार ने एक मसौदा दिशानिर्देश जारी किया है, जिसका उद्देश्य ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों को अधिक जवाबदेह बनाना है। इसका लक्ष्य बढ़ते डिजिटल शॉपिंग इकोसिस्टम में उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी से बचाने के लिए स्व-नियामक उपायों को अनिवार्य करना है।
· 'ई-कॉमर्स: सिद्धांत और स्व-शासन के लिए दिशानिर्देश' नामक यह मसौदा, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के पर्यवेक्षण में तैयार किया गया है।
नए नियमों का कारण:
ई-कॉमर्स के तेजी से विस्तार के साथ उपभोक्ता संरक्षण और विश्वास से संबंधित कई नई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य स्व-शासन के लिए स्पष्ट और प्रभावी नियम स्थापित करना है, जिससे ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
नए नियमों के तहत प्रमुख प्रावधान:
1. पूर्व-लेनदेन आवश्यकताएँ:
- प्लेटफार्मों को व्यावसायिक साझेदारों, विशेष रूप से तीसरे पक्ष के विक्रेताओं का पूरी तरह से 'नो योर कस्टमर' (केवाईसी) जांच करनी होगी।
- विस्तृत उत्पाद सूची में उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद का आकलन करने के लिए शीर्षक, विक्रेता संपर्क जानकारी, पहचान संख्या और सहायक मीडिया शामिल होना चाहिए।
2. अनुबंध गठन:
· प्लेटफार्मों को उपभोक्ता की सहमति को रिकॉर्ड करना चाहिए, लेनदेन की समीक्षा की सुविधा प्रदान करनी चाहिए और रद्दीकरण, रिटर्न और धनवापसी के लिए पारदर्शी नीतियों को बनाए रखना चाहिए।
· क्रेडिट/डेबिट कार्ड और मोबाइल वॉलेट सहित विविध भुगतान विकल्पों की पेशकश प्रसंस्करण शुल्क के पूर्ण प्रकटीकरण के साथ करनी चाहिए।
· एन्क्रिप्शन और दो-कारक प्रमाणीकरण जैसी सुरक्षित भुगतान प्रणाली अनिवार्य है।
लेनदेन के बाद दिशानिर्देश:
- नकद वापसी, प्रतिस्थापन और एक्सचेंज के लिए प्लेटफार्मों को स्पष्ट समय सीमा का पालन करना होगा, जिसमें नकली उत्पादों के लिए अतिरिक्त प्रावधान शामिल होंगे।
- प्रतिबंधित उत्पादों की बिक्री निषिद्ध है, और प्लेटफार्मों को विक्रेताओं की पृष्ठभूमि की निगरानी और जांच के लिए उपयुक्त तंत्र बनाए रखना होगा।
- उपभोक्ता समीक्षाओं और रेटिंग्स को विशिष्ट मानकों (आईएस 19000:2022) का पालन करना होगा, जिससे सटीकता और अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
ई-कॉमर्स इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क, मुख्य रूप से इंटरनेट, के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री को संदर्भित करता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
1. कोई भौगोलिक बाधा नहीं:
ई-कॉमर्स दूरदराज के क्षेत्रों तक भी उत्पादों की डिलीवरी की अनुमति देता है, जिससे बाजार की पहुंच का विस्तार होता है।
2. कम लागत:
विविध व्यय में कमी और पैमाने की अर्थव्यवस्था के कारण उत्पाद की कीमतों को कम करना संभव होता है।
3. वैयक्तिकरण (Personalization) :
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ग्राहकों को सूचित विकल्प बनाने में मदद करने के लिए उत्पाद अनुशंसा प्रणाली और फीडबैक सिस्टम प्रदान करते हैं।
4. व्यावसायिक लाभ:
o ग्राहक आधार का विस्तार करता है।
o बिक्री को बढ़ावा देता है।
o सुविधाजनक आवर्ती भुगतान और तत्काल लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है।
ई-कॉमर्स के नुकसान:
- सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी मुद्दे: मजबूत एन्क्रिप्शन का अभाव व्यक्तिगत और वित्तीय डेटा की सुरक्षा में जोखिम पैदा कर सकता है।
- सीमित ग्राहक सेवा: भौतिक स्टोरों की तुलना में ऑनलाइन चिंताओं का समाधान करना कठिन होता है, जहां उत्पादों की सीधे जांच की जा सकती है।
- नियामक चिंताएं: ऑनलाइन बिक्री को नियंत्रित करने वाले कानूनों में अस्पष्टता उपभोक्ताओं और विक्रेताओं के बीच अविश्वास पैदा कर सकती है।
- उत्पाद की सटीकता का सीमित आकलन : ऑनलाइन खरीदारी उपभोक्ताओं को उत्पादों के साथ शारीरिक रूप से बातचीत करने की अनुमति नहीं देती है, जिससे उपयुक्तता का आकलन करना कठिन हो जाता है।
भारत में ई-कॉमर्स बाजार:
- भारत का ई-कॉमर्स बाजार वर्तमान में 70 बिलियन डॉलर का है, जो देश के समग्र खुदरा बाजार का लगभग 7% है।
- 2030 तक, ई-कॉमर्स बाजार के 325 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है और देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था के 800 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
- 2026 तक ग्रामीण भारत में ऑनलाइन खरीदारों की संख्या 88 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है, जबकि शहरी भारत में यह संख्या 263 मिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है।
ई-कॉमर्स के उदय को बढ़ावा देने वाले कारक:
- ई-कॉमर्स के विकास में इंटरनेट उपयोग में वृद्धि, रसद और आपूर्ति श्रृंखला में प्रगति, राष्ट्रीय रसद नीति जैसी सरकारी पहल और बढ़ता हुआ मध्यम आय वर्ग प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
- सरकार ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार कर रही है। इसके लिए जेम प्लेटफॉर्म, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी), डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और भारतनेट जैसी पहलें शुरू की गई हैं।