संदर्भ:
हाल ही में गोवा विधानसभा के सत्र में विभिन्न दलों के कई विधायकों ने गोवा में पारंपरिक बैल लड़ाई की प्रथा (धीरियो) को वैध बनाने की मांग की है।
धीरियो के विषय में:
· धीरी या धीरियो गोवा की एक पारंपरिक बैल-लड़ाई है, जिसमें दो बैल खुले मैदानों या धान के खेतों में आपस में भिड़ते हैं। स्पेनिश बैल-लड़ाई के विपरीत, इसमें मैटाडोर या बैल की हत्या शामिल नहीं होती।
· प्रतियोगिता तब समाप्त हो जाती है जब कोई एक बैल पीछे हट जाता है या मैदान छोड़ देता है।
· बैलों को इस प्रकार की लड़ाइयों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित और तैयार किया जाता है। इन्हें अक्सर "टायसन" या "रैम्बो" जैसे नाम दिए जाते हैं, और स्थानीय समुदाय उन्हें किसी सेलिब्रिटी की तरह सम्मान और श्रद्धा देता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व:
· ऐतिहासिक रूप से, धीरी का संबंध फसल कटाई के बाद मनाए जाने वाले उत्सवों और चर्च के समारोहों से रहा है। इसे केवल एक खेल के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक अनुष्ठान के रूप में देखा जाता है, जो गाँव के गौरव और एकता को बढ़ावा देता है।
· इन आयोजनों के दौरान उत्सव भी मनाए जाते हैं, और इनके विषय में चर्चाएँ कई दिनों तक चलती रहती हैं।
· यह परंपरा गोवा के प्रवासी समुदाय को भी आकर्षित करती है, जिनमें से कई विदेशों से इन लड़ाइयों पर सट्टा लगाते हैं, जिससे यह एक सामाजिक-आर्थिक सूक्ष्म जगत बन जाता है, जिसकी सांस्कृतिक जड़ें गहरी और मज़बूत हैं।
कानूनी और नैतिक चिंताएँ:
गोवा में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 1996 में एक घातक घटना के बाद, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के उल्लंघन के आधार पर धीरियो पर प्रतिबंध लगा दिया था।
· यह अधिनियम जानवरों को लड़ाई के लिए उकसाने पर प्रतिबंध लगाता है। प्रतिबंध के बावजूद, ये लड़ाइयाँ अवैध रूप से जारी रहती हैं, जिनमें अक्सर उच्च-दांव वाली सट्टेबाजी भी होती है।
· पशु अधिकार कार्यकर्ता इस प्रथा को वैध बनाने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं। उनका तर्क है कि इसमें जानबूझकर जानवरों को उकसाया जाता है, जिससे उन्हें चोट पहुँचती है या उनकी मृत्यु हो जाती है।
· पेटा जैसे संगठन बैलों को होने वाले मनोवैज्ञानिक आघात और शारीरिक नुकसान पर प्रकाश डालते हैं, और उस समाज की नैतिक दिशा पर सवाल उठाते हैं जो पशु हिंसा के माध्यम से अपना मनोरंजन करता है।
वैधीकरण के पक्ष में तर्क:
विधायक और सांस्कृतिक समर्थक कई तर्क प्रस्तुत करते हैं:
· सांस्कृतिक निरंतरता: धीरियो को गोवा की पहचान से जुड़ी एक सदियों पुरानी परंपरा माना जाता है।
· विनियमित खेल: मुक्केबाजी की तरह, बैल-लड़ाई को भी विनियमित किया जा सकता है, जिसमें गंभीर चोटों से बचाव के लिए सींगों पर ढक्कन लगाने जैसे सुरक्षा उपाय शामिल हैं।
· पर्यटन और राजस्व: वैधीकरण धीरियो को एक पर्यटक आकर्षण में बदल सकता है, जिससे ग्रामीण आजीविका और कृषि-पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
· तमिलनाडु का उदाहरण: जल्लीकट्टू को राज्य-विशिष्ट संशोधन के जरिए कानूनी संरक्षण मिला है, जो एक सफल उदाहरण हो सकता है।
निष्कर्ष:
गोवा में बैल-लड़ाई को वैध बनाने की मांग संस्कृति, कानूनी वैधता, नैतिकता और सार्वजनिक नीति के एक संवेदनशील अंतर्संबंध को दर्शाती है। यह सिविल सेवकों और नीति निर्माताओं के लिए इस बात की याददिहानी है कि परंपराओं को संवैधानिक नैतिकता के साथ संतुलित करते हुए, कानून निर्माण में संवेदनशीलता, समावेशन और दूरदर्शिता आवश्यक है।