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Blog / 11 Dec 2025

दीपावली यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल

सन्दर्भ: 

भारत का प्रमुख धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व दीपावली को 2025 में यूनेस्को (UNESCO) की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल कर लिया गया है। नई दिल्ली में आयोजित यूनेस्को की 20वीं अंतर-सरकारी समिति के सत्र में यह निर्णय घोषित किया गया, जिसमें दुनिया भर के 194 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यूनेस्को की इस सूची में दीवाली, भारत का 16वाँ तत्व बन गया है। यह भारत की सॉफ्ट पावर (soft power) और सांस्कृतिक कूटनीति को वैश्विक मंच पर और मजबूती देता है।

दीपावली पर्व के चयन की महत्ता?

      • दीपावली भारत में सबसे व्यापक रूप से मनाया जाने वाला त्योहार है, जो अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान के विजय का प्रतीक है। यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता, सामाजिक समरसता और जीवन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।
      • यूनेस्को की सूची में शामिल होने से दीपावली की वैश्विक पहचान को मजबूती मिली है जो दर्शाता है कि यह परंपरा न केवल भारत के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी सजीव सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में जीवित है।

दीपावली यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल

यूनेस्को सूची में शामिल होने के महत्व:

      • वैश्विक मान्यता और संरक्षण: दीपावली को यूनेस्को की सूची में शामिल करने से इस उत्सव की वैश्विक पहचान स्थापित होती है और इसके पारंपरिक स्वरूप की दस्तावेजीकरण, संवर्धन और संरक्षण में सहायता मिलेगी। यूनेस्को के ढांचे से संरक्षण के लिए दिशा-निर्देश, सर्वोत्तम प्रथाओं और संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं।
      • सांस्कृतिक कूटनीति और भारत की सॉफ़्ट पॉवर: इस सूची में शामिल होना भारत की सॉफ़्ट पॉवर (Soft Power) और वैश्विक सांस्कृतिक कूटनीति को मजबूत करता है। यह भारत के संस्कृति के विश्व प्रतिनिधित्वको बढ़ाता है तथा वैश्विक समुदाय में भारतीय सभ्यता और उसकी परंपराओं के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करता है।
      • पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था: दीपावली को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलने से सांस्कृतिक पर्यटन को भी फायदा होगा, जिससे स्थानीय कारीगरों, उद्योगों और पर्यटन संबंधित समुदायों को आर्थिक अवसर मिल सकते हैं तथा परंपरागत कारीगरी व कला के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।

यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) सूची:

      • यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) सूची में वे सांस्कृतिक परंपराएँ, कौशल, उत्सव, मौखिक परंपराएँ, नृत्य-संगीत, सामाजिक प्रथाएँ और पारंपरिक ज्ञान शामिल होते हैं, जो पीढ़ियों से बिना भौतिक रूप में संरक्षित होकर संस्कृति की पहचान बनाए रखते हैं।
      • ये वस्तुएँ नहीं बल्कि जीवित परंपराएँ होती हैं जो समुदायों की सांस्कृतिक पहचान, विविधता और जीवंतता को सुदृढ़ करती हैं। यह सूची यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची के माध्यम से बनाई जाती है, जिसका उद्देश्य वैश्विक सांस्कृतिक विविधता की महत्ता की जागरूकता बढ़ाना तथा इन परंपराओं के संरक्षण को सुनिश्चित करना है।

इस सूची में आमतौर पर पाँच मुख्य श्रेणियाँ शामिल होती हैं :

1.        मौखिक परंपराएँ और अभिव्यक्तियाँ

2.      प्रदर्शन कला

3.      सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान और उत्सव

4.     प्राकृतिक एवं ब्रह्मांडीय ज्ञान

5.      पारंपरिक शिल्प कौशल

यूनेस्को की यह सूची परंपराओं को वस्तुके रूप में नहीं बल्कि जीवित प्रथाओं के रूप में मान्यता देती है जो सांस्कृतिक पहचान तथा विविधता को मजबूती प्रदान करती हैं।

भारत के अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) सूची में शामिल तत्व:

क्रम संख्या

तत्व का नाम (Element)

श्रेणी/प्रकार

1.

कुटियाट्टम

संस्कृत थियेटर (Performing Arts)

2.

वैदिक जप की परंपरा

मौखिक/धार्मिक परंपरा

3.

रामलीला

सामाजिक-धार्मिक प्रदर्शन

4.

रम्मण

धार्मिक उत्सव/अनुष्ठान

5.

छऊ नृत्य

लोक-नृत्य/प्रदर्शन कला

6.

कालबेलिया लोक गीत-नृत्य

लोक-नृत्य

7.

मुदियेट्टू, केरल

अनुष्ठान नाट्य/नृत्य

8.

लद्दाख का बौद्ध जप

धार्मिक अभिव्यक्ति

9.

मणिपुर का संकीर्तन

अनुष्ठान गायन/नृत्य

10.

जंडियाला गुरु

पारंपरिक शिल्प

11.

नवरोज़

त्योहार (Parsi समुदाय)

12.

योग

सामाजिक/शारीरिक-आध्यात्मिक अभ्यास

13.

कुंभ मेला

धार्मिक-सामाजिक उत्सव

14.

कोलकाता की दुर्गा पूजा

सामाजिक-धार्मिक उत्सव

15.

गुजरात का गरबा

लोक-नृत्य/त्योहार

16.

दीपावली

त्योहार/सामाजिक-धार्मिक अभिव्यक्ति

 

निष्कर्ष:

दीपावली का यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल होना भारत की समृद्ध सांस्कृतिक पहचान, अनूठी परंपराएँ और विश्व समुदाय के साथ सांस्कृतिक संवाद को वैश्विक स्तर पर मान्यता देने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भारत के सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक जीवंतता के संरक्षण हेतु वैश्विक प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।