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Blog / 27 Dec 2025

परिसंचरण तंत्र की बीमारियाँ

संदर्भ:

भारत में परिसंचरण तंत्र से संबंधित बीमारियाँ (जिन्हें सामान्य रूप से हृदय-रक्तवाहिनी रोग कहा जाता है) वर्ष 2023 में चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण रहीं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के अनुसार, कुल चिकित्सकीय प्रमाणित मौतों में इन बीमारियों की हिस्सेदारी 36.4 प्रतिशत थी। ये रोग हृदय, रक्त वाहिकाओं और रक्त को प्रभावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक और हृदय विफलता जैसी गंभीर स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। सामान्यतः ये बीमारियाँ धमनियों में वसा के जमाव (एथेरोस्क्लेरोसिस) या रक्त के थक्के बनने के कारण होती हैं, जिससे शरीर के विभिन्न अंगों तक ऑक्सीजन और आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति बाधित हो जाती है।

मुख्य बिंदु:

      • 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में परिसंचरण तंत्र की बीमारियाँ मृत्यु का प्रमुख कारण बनी हुई हैं।
      • 70 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में इन बीमारियों से मृत्यु दर सर्वाधिक दर्ज की गई है।
      • 55–64 वर्ष के आयु वर्ग में परिसंचरण तंत्र से संबंधित रोगों के कारण मृत्यु दर दूसरी सबसे अधिक पाई गई है।
      • सामान्यतः पुरुषों में इन बीमारियों से मृत्यु संख्या महिलाओं की तुलना में अधिक रहती है, किंतु 70 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में महिलाओं की मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक देखी गई है।

Circulatory System Function | Components | Importance

परिसंचरण तंत्र की सामान्य बीमारियाँ:

      • कोरोनरी धमनी रोग: हृदय तक रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में वसा के जमाव के कारण धमनियाँ पतली हो जाती हैं, जिससे हृदय तक रक्त प्रवाह कम हो जाता है।
      • उच्च रक्तचाप: धमनियों की दीवारों पर लगातार अधिक दबाव बना रहना; लक्षण स्पष्ट न होने के कारण इसे अक्सर साइलेंट किलरकहा जाता है।
      • स्ट्रोक: रक्त के थक्के बनने या रक्तस्राव होने के कारण मस्तिष्क तक रक्त की आपूर्ति बाधित या रुक जाना।
      • हृदयाघात: हृदय की धमनियों में अचानक रुकावट आ जाने से हृदय की मांसपेशियों को गंभीर क्षति पहुँचना।
      • हृदय विफलता: हृदय की वह स्थिति जिसमें वह शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप करने में असमर्थ हो जाता है।
      • परिधीय धमनी रोग (PAD): हाथों और पैरों, विशेषकर निचले अंगों में, धमनियों के संकुचन के कारण रक्त संचार का कम हो जाना।
      • गहरी शिरा घनास्त्रता (Deep Vein Thrombosis) और फेफड़ों में थक्का (Pulmonary Embolism): गहरी नसों में रक्त का थक्का बनना, जो टूटकर फेफड़ों तक पहुँच सकता है और गंभीर समस्या पैदा कर सकता है।
      • अतालता (Arrhythmia): हृदय की धड़कन का सामान्य लय से हटकर अनियमित या असामान्य हो जाना।

मुख्य जोखिम कारक:

      • जीवनशैली से जुड़े कारण: असंतुलित और वसा-युक्त आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि का अभाव, तंबाकू का सेवन तथा अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन।
      • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर, मधुमेह, मोटापा और लंबे समय तक बना रहने वाला उच्च रक्तचाप।
      • अन्य कारण: बढ़ती आयु, परिवार में हृदय रोगों का इतिहास, मानसिक तनाव तथा आनुवंशिक प्रवृत्ति।

लक्षण:

बीमारी के प्रकार के अनुसार लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, जिनमें सीने में दर्द, सांस फूलना, थकान, हाथपैरों में सूजन, चक्कर आना और दिल की धड़कन तेज या अनियमित होना शामिल है।

रोकथाम और प्रबंधन:

      • संतुलित, पौष्टिक और कम वसा वाला आहार अपनाना तथा नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि और व्यायाम करना।
      • तंबाकू के किसी भी रूप के सेवन से बचाव और शराब का सेवन यथासंभव सीमित रखना।
      • रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और रक्त शर्करा के स्तर की नियमित जाँच कर उन्हें नियंत्रित बनाए रखना।
      • समय-समय पर चिकित्सकीय स्वास्थ्य जाँच कराना, ताकि रोग की शीघ्र पहचान हो सके और समय पर उचित उपचार किया जा सके।

भारत में स्वास्थ्य परिदृश्य:

      • परिसंचरण तंत्र से जुड़ी बीमारियाँ भारत में एक गंभीर और बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर रही हैं।
      • हर वर्ष इन बीमारियों के कारण देश में लाखों लोगों की मृत्यु दर्ज की जाती है।
      • कुल रोग भार को कम करने के लिए स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ करना, निवारक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना तथा जन जागरूकता को व्यापक स्तर पर सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है।