संदर्भ:
केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों की नई अधिसूचित परिभाषा का उद्देश्य बड़े पैमाने पर खनन को बढ़ावा देना नहीं है। सरकार के अनुसार, इस परिभाषा के बावजूद अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक भाग संरक्षित ही रहेगा। यह व्यवस्था भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित ढांचे के अनुरूप तैयार की गई है। इस ढांचे के अंतर्गत दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में नए खनन पट्टों पर तब तक रोक जारी रहेगी, जब तक एक व्यापक और वैज्ञानिक आधार वाली प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती।
अरावली पर्वत श्रेणी के बारे में:
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- अरावली पर्वत श्रेणी दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत प्रणालियों में से एक मानी जाती है, जिसकी आयु लगभग दो अरब वर्ष मानी जाती है और यह दिल्ली से गुजरात तक करीब 650 किलोमीटर में फैली हुई है।
- पर्यावरण की दृष्टि से अरावली पहाड़ियाँ मरुस्थलीकरण के विरुद्ध एक प्राकृतिक अवरोध का कार्य करती हैं तथा थार मरुस्थल के पूर्व की ओर विस्तार को रोककर उपजाऊ इंडो-गंगा मैदानों की रक्षा करती हैं।
- यह क्षेत्र भूजल पुनर्भरण, जलवायु संतुलन और जैव विविधता संरक्षण में अहम भूमिका निभाता है, साथ ही चंबल, साबरमती और लूणी जैसी महत्वपूर्ण नदियों का उद्गम क्षेत्र भी है।
- अरावली क्षेत्र में चूना पत्थर, संगमरमर, बलुआ पत्थर, तांबा, जस्ता और टंगस्टन जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जिसके कारण यह ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख खनन क्षेत्र रहा है।
- हालांकि, लंबे समय तक हुए अत्यधिक खनन और अनियंत्रित पत्थर तोड़ने की गतिविधियों के चलते वनों का क्षरण हुआ है, भूजल स्तर में लगातार गिरावट आई है और विशेषकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है।
- अरावली पर्वत श्रेणी दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत प्रणालियों में से एक मानी जाती है, जिसकी आयु लगभग दो अरब वर्ष मानी जाती है और यह दिल्ली से गुजरात तक करीब 650 किलोमीटर में फैली हुई है।
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सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप और समान परिभाषा:
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- विभिन्न राज्यों में अरावली संरचनाओं की एक समान कानूनी परिभाषा न होने के कारण नियामक कमियां उत्पन्न हो रही थीं और नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन में कठिनाइयाँ सामने आ रही थीं।
- इस समस्या के समाधान हेतु पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय वन सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, राज्य वन विभागों तथा केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया।
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित परिभाषाएं निर्धारित कीं:
- अरावली पहाड़ी: कोई भी भू-आकृति जो स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँची हो।
- अरावली श्रेणी: ऐसी दो या अधिक अरावली पहाड़ियों का समूह, जो एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में स्थित हों।
- अरावली पहाड़ी: कोई भी भू-आकृति जो स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँची हो।
- यह परिभाषा व्यापक, वैज्ञानिक आधार पर तैयार की गई और प्रशासनिक रूप से व्यावहारिक है, जो पहले अपनाए गए ढलान-आधारित या बफर-आधारित असंगत मानकों का स्थान लेती है।
- पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बजाय, सर्वोच्च न्यायालय ने एक संतुलित और चरणबद्ध नियामक दृष्टिकोण अपनाया है:
- पहले से कानूनी रूप से स्वीकृत खनन गतिविधियां सख्त पर्यावरणीय नियमों और निगरानी के तहत जारी रह सकती हैं।
- नए खनन अनुमोदनों पर रोक लगाई गई है, ताकि अनियंत्रित और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाने वाले दोहन को रोका जा सके।
- पहले से कानूनी रूप से स्वीकृत खनन गतिविधियां सख्त पर्यावरणीय नियमों और निगरानी के तहत जारी रह सकती हैं।
- विभिन्न राज्यों में अरावली संरचनाओं की एक समान कानूनी परिभाषा न होने के कारण नियामक कमियां उत्पन्न हो रही थीं और नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन में कठिनाइयाँ सामने आ रही थीं।
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ग्रीन वॉल पहल के बारे में:
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- अरावली ग्रीन वॉल परियोजना, (जिसे जून 2025 में प्रारंभ किया गया) का उद्देश्य अरावली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना है। इस परियोजना के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं:
- वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर क्षतिग्रस्त और बंजर भूमि का चरणबद्ध पुनर्स्थापन करना।
- गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के 29 जिलों में अरावली पर्वत श्रेणी के चारों ओर 5 किलोमीटर के बफर क्षेत्र के भीतर हरित आवरण को बढ़ाना।
- अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय ढांचों के अंतर्गत भारत की भूमि क्षरण तटस्थता संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में योगदान देना।
- वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर क्षतिग्रस्त और बंजर भूमि का चरणबद्ध पुनर्स्थापन करना।
- अरावली ग्रीन वॉल परियोजना, (जिसे जून 2025 में प्रारंभ किया गया) का उद्देश्य अरावली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना है। इस परियोजना के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं:
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महत्त्व:
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- पर्यावरण संरक्षण: वनों, भूजल प्रणालियों और क्षेत्रीय जैव विविधता की प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- कानूनी अनुपालन: सतत खनन और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के पालन को मजबूती देता है।
- वैज्ञानिक प्रबंधन: आंकड़ों पर आधारित, बहु-एजेंसी समन्वय और पारिस्थितिकी तंत्र आधारित संरक्षण रणनीतियों को लागू करने को प्रोत्साहित करता है।
- सतत विकास: सीमित और नियंत्रित संसाधन उपयोग के साथ अरावली क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक भूभाग के संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करता है।
- जलवायु और मरुस्थलीकरण नियंत्रण: थार मरुस्थल के पूर्व की ओर विस्तार को रोकने में एक अग्रिम रक्षा पंक्ति के रूप में कार्य करता है।
- पर्यावरण संरक्षण: वनों, भूजल प्रणालियों और क्षेत्रीय जैव विविधता की प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
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निष्कर्ष:
अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित परिभाषा और प्रबंधन ढांचा भारत की सबसे प्राचीन तथा पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्वत प्रणालियों में से एक के संरक्षण की दिशा में एक वैज्ञानिक, सतत और कानूनी रूप से सुदृढ़ पहल है। नए खनन पर रोक, एक समान परिभाषाओं के प्रभावी प्रवर्तन तथा ग्रीन वॉल परियोजना जैसी बड़े पैमाने की पुनर्स्थापन पहलों के माध्यम से केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण और नियंत्रित विकास के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रही है। यह दृष्टिकोण लंबे समय से चली आ रही पर्यावरणीय क्षति, अनियंत्रित दोहन और प्रशासनिक चुनौतियों के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है।


