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Blog / 02 Dec 2025

भारत के GDP आँकड़ों को C-Grade — डेटा गुणवत्ता व पद्धति चुनौतियाँ | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

हाल ही में IMF ने वर्ष 2025 के लिए भारत की आर्टिकल IV कंसल्टेशन रिपोर्ट जारी करते हुए भारत के राष्ट्रीय लेखा आँकड़ों जिनमें GDP और GVA शामिल हैं को ‘C’ ग्रेड दिया है। यह IMF की चार-स्तरीय ग्रेडिंग प्रणाली (A, B, C, D) में दूसरा सबसे निम्न स्तर है। ‘C’ ग्रेड का आशय यह है कि आँकड़े उपलब्ध तो हैं, परंतु उनमें अभी भी पद्धतिगत और संरचनात्मक कमियाँ मौजूद हैं अर्थात डेटा की विश्वसनीयता और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूपता में सुधार की आवश्यकता है। अन्य आँकड़ा श्रेणियाँ मूल्य , राजकोषीय , बाह्य क्षेत्र और वित्तीय आँकड़े को ‘B’ ग्रेड प्राप्त हुआ, जो उनकी सामान्यतः उपयुक्तस्थिति को दर्शाता है।

IMF द्वारा ‘C’ ग्रेड देने के प्रमुख कारण:

1. पुराना आधार वर्ष (Base Year 2011–12)
भारत अभी भी 2011–12 को GDP, GVA और अन्य सूचकांकों का आधार वर्ष का उपयोग करता है।
पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना सेक्टोरल कम्पोज़ीशन, मूल्य-गतिशीलता , डिजिटल अर्थव्यवस्था, प्लेटफ़ॉर्म आधारित सेवाएँ तेज़ी से बदली हैं।
पुराना बेस वर्ष वास्तविक मूल्य-वर्धन और विकास दर को विकृत कर देता है।

2. डिफ्लेशन पद्धति की समस्याएँ
भारत कई सेक्टरों में वास्तविक GDP निकालने के लिए WPI (Wholesale Price Index) का उपयोग करता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार PPI (Producer Price Index) या सेक्टर-विशिष्ट डिफ्लेटर उपयोग करने चाहिए।
इससे क्षेत्रीय मुद्रास्फीति के अंतर को सही से कैप्चर नहीं किया जा सकता।
परिणामस्वरूप, वास्तविक विकास दर की गणना प्रभावित होती है।

3. अनौपचारिक क्षेत्र के आँकड़ों में कमी:
भारत का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक / असंगठित क्षेत्र में कार्य करता है।
छोटे उद्यम, बिना पंजीकृत सेवाएँ, घरेलू उद्यम, असंगठित श्रम इन सभी पर उपलब्ध आँकड़े अपर्याप्त हैं।
इससे व्यय-आधारित GDP और वास्तविक उपभोग का सटीक अनुमान प्रभावित होता है।

TNPSC Current Affairs | TNPSC Monthly Current Affairs

IMF के मूल्यांकन का महत्व:

पहलू

महत्व / प्रभाव

नीति-निर्माण एवं व्यापक आर्थिक प्रबंधन

विश्वसनीय GDP, GVA, मुद्रास्फीति, राजकोषीय आँकड़े ही मौद्रिक नीति, बजट, सामाजिक योजनाओं और पूर्वानुमान के लिए आधार बनते हैं।

निवेशक विश्वास एवं वैश्विक छवि

अंतरराष्ट्रीय निवेशक, रेटिंग एजेंसियाँ और बहुपक्षीय संस्थाएँ विश्वसनीय आँकड़ों पर निर्भर करती हैं। पद्धतिगत समस्याएँ निवेशकों का भरोसा कमजोर कर सकती हैं।

पारदर्शिता, जवाबदेही एवं जनविश्वास

सटीक आँकड़े लोकतांत्रिक विमर्श, जनता के भरोसे और उत्तरदायी शासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

IMF का ‘C’ ग्रेड भारत की आँकड़ा-प्रणाली में मौजूद कमियों की ओर संकेत करता है। यह एक प्रकार की चेतावनी है, जो बताती है कि GDP आँकड़ों को अधिक विश्वसनीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के लिए सुधार आवश्यक हैं।

आगे की राह:

सुधार क्षेत्र

नियोजित कदम

नया GDP आधार वर्ष (Base Year 2022–23)

फरवरी 2026 में जारी होगी; इसमें नई आर्थिक संरचना, नए सेक्टरों के वजन और आधुनिक डेटा स्रोत शामिल होंगे।

CPI एवं अन्य सूचकांकों का पुनरीक्षण

उपभोग-बास्केट और बेस ईयर को अपडेट किया जाएगा जिससे मुद्रास्फीति के आँकड़े अधिक यथार्थपरक बनेंगे।

डेटा कवरेज और पद्धति में सुधार

अनौपचारिक क्षेत्र के बेहतर अनुमान, GST/कॉरपोरेट/टैक्स डेटा का उपयोग, उद्यम एवं परिवार सर्वेक्षणों को मज़बूती, WPI की जगह PPI या सेक्टर-वाइज डिफ्लेटर्स का उपयोग।

संस्थागत मज़बूती एवं पारदर्शिता

आँकड़ों की पद्धति को अधिक खुला, सुसंगत और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना।

निष्कर्ष :

भारत के GDP आँकड़ों में वर्तमान में कुछ संरचनात्मक और पद्धतिगत कमजोरियाँ मौजूद हैं, जिनके कारण IMF ने उन्हें ‘C’ ग्रेड दिया है। हालांकि, चल रहे सुधार प्रयास विशेषकर 2026 में प्रस्तावित नई GDP श्रृंखला भारत की आँकड़ा-व्यवस्था को अधिक आधुनिक, विश्वसनीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होंगे। इन सुधारों का सकारात्मक प्रभाव न केवल नीति-निर्माण पर पड़ेगा, बल्कि निवेशकों के भरोसे, आर्थिक पारदर्शिता, और समग्र व्यापक आर्थिक प्रबंधन को भी मजबूत करेगा।