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Blog / 25 Jul 2025

बायोस्टीमुलेंट्स और ‘जबरन टैगिंग’ विवाद:

सन्दर्भ:

हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने राज्यों से आग्रह किया है कि वे नैनो-उर्वरकों या बायोस्टीमुलेंट्स को परंपरागत उर्वरकों जैसे यूरिया और डीएपी के साथ "जबरन टैगिंग" की प्रथा को तुरंत समाप्त करें। यह अपील किसानों की बढ़ती शिकायतों के बाद की गई, जिसमें उन्होंने बताया कि खुदरा विक्रेता उन्हें सब्सिडी युक्त उर्वरक केवल तभी दे रहे हैं जब वे बायोस्टीमुलेंट्स भी खरीदते हैं। यह मामला कृषि नीति में पारदर्शिता, वैज्ञानिक प्रमाणन और किसान हितों के संरक्षण से जुड़ा हुआ है।

बायोस्टीमुलेंट्स: संभावनाएं और चुनौतियाँ:

  • बायोस्टीमुलेंट्स वे पदार्थ या सूक्ष्मजीव होते हैं जो पौधों की जैविक प्रक्रियाओं को सक्रिय कर पोषण ग्रहण क्षमता, वृद्धि, उत्पादकता और तनाव सहनशीलता को बढ़ाते हैं। इन्हें कीटनाशक या पारंपरिक उर्वरकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता। प्राकृतिक अवयवों जैसे समुद्री शैवाल, वनस्पति अर्क, विटामिन आदि से निर्मित होने के कारण इन्हें सतत कृषि के लिए लाभकारी माना जाता है।
  • हालांकि, भारत में इस क्षेत्र में लंबे समय तक नियमन का अभाव रहा। 2021 से पहले लगभग 30,000 बायोस्टीमुलेंट उत्पाद बिना वैज्ञानिक परीक्षण के बाजार में उपलब्ध थे। इससे न केवल किसानों का भरोसा कमजोर हुआ, बल्कि उत्पादकता में भी संदेह उत्पन्न हुआ।
    2021 में FCO (Fertiliser Control Order) संशोधन के बाद इन पर वैज्ञानिक परीक्षण, विषाक्तता रिपोर्ट और जैव-प्रभावशीलता की शर्तें अनिवार्य की गईं। इसके बावजूद "जबरन टैगिंग" जैसे अनैतिक व्यापारिक व्यवहार सामने आए हैं।

Biostimulants in Agriculture

'जबरन टैगिंग' विवाद:

  • सब्सिडी वाले उर्वरकों का वितरण भारत में संवेदनशील और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मुद्दा है। जब खुदरा विक्रेता किसानों को बायोस्टीमुलेंट्स खरीदने के लिए मजबूर करते हैं, तो यह न केवल उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सरकारी सब्सिडी प्रणाली का दुरुपयोग भी है। इससे छोटे और सीमांत किसानों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है।
  • इसके अतिरिक्त, बायोस्टीमुलेंट्स की प्रभावशीलता पर वैज्ञानिक सहमति और किसानों का अनुभव अलग-अलग हो सकता है। कई उत्पादों के लिए ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य या क्षेत्रीय परीक्षण अब भी अधूरे हैं। ऐसे में जबरन बिक्री किसानों को भ्रमित और आर्थिक रूप से हानि पहुँचाने वाला कदम बन सकती है।

नीति सुधार और आगे की राह:

·        सरकार ने मई-जून 2025 में बायोस्टीमुलेंट्स के लिए स्पष्ट मानक अधिसूचित किए हैं और बिना पूर्ण पंजीकरण वाले उत्पादों की बिक्री पर रोक लगा दी है। यह एक सकारात्मक कदम है जो बाजार में अनुशासन और गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकता है।

·        बायोस्टीमुलेंट्स के वैज्ञानिक परीक्षण, पारदर्शी पंजीकरण प्रक्रिया और क्षेत्रीय स्तर पर प्रदर्शन परीक्षणों को बढ़ावा दिया जाए।

·        किसानों को जागरूक करना, उन्हें विकल्प देना और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना इस क्षेत्र की सशक्तिकरण रणनीति का हिस्सा होना चाहिए।

निष्कर्ष:

बायोस्टीमुलेंट्स सतत कृषि के भविष्य के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं, परंतु इनकी स्वीकार्यता तभी संभव है जब नीतियों में पारदर्शिता हो, वैज्ञानिक प्रमाण हो और किसान केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाए। जबरन टैगिंगजैसी प्रथाओं पर रोक लगाकर सरकार ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि किसान की सहमति, वैज्ञानिक आधार और नैतिकता, कृषि नीति की रीढ़ होनी चाहिए।