संदर्भ:
हाल ही में वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब द्वारा विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 जारी की गई, जो 2018 और 2022 के संस्करणों के बाद इस श्रृंखला की तीसरी महत्वपूर्ण रिपोर्ट है। इसे विश्वभर के 200 से अधिक शोधकर्ताओं के विश्लेषण पर आधारित किया गया है। यह रिपोर्ट वैश्विक तथा विभिन्न देशों के भीतर आय और संपत्ति की असमानता का विस्तृत आकलन प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट में यह प्रमुख रूप से रेखांकित किया गया है कि कई देशों, विशेषकर भारत में आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ आय और संपत्ति का वितरण अत्यंत असमान होता गया है।
भारत से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:
1. आय का केन्द्रीकरण
भारत में शीर्ष 10 प्रतिशत आय अर्जक राष्ट्रीय आय का लगभग 58 प्रतिशत भाग प्राप्त करते हैं, जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों को केवल 15 प्रतिशत आय मिलती है। इसका अर्थ है कि कुल राष्ट्रीय आय का आधे से अधिक भाग केवल दसवें हिस्से की आबादी के पास है, जबकि देश की बहुसंख्यक आबादी को बहुत कम हिस्सेदारी मिलती है।
2. संपत्ति में असमानता
संपत्ति के स्तर पर असमानता और भी अधिक तीव्र है। भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत लोग कुल राष्ट्रीय संपत्ति का लगभग 65 प्रतिशत भाग रखते हैं, जबकि शीर्ष 1 प्रतिशत के पास ही लगभग 40 प्रतिशत संपत्ति केंद्रित है। इसके विपरीत, निचले 50 प्रतिशत लोगों के पास संपत्ति का नगण्य हिस्सा है।
3. पिछले वर्षों की तुलना
विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 की तुलना में असमानता और बढ़ी है। 2021 में शीर्ष 10 प्रतिशत के पास राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा था, जो बढ़कर 58 प्रतिशत हो गया है, वहीं निचले 50 प्रतिशत का हिस्सा 13 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत पर स्थिर हो गया है जो असमानता के और विस्तार को दर्शाता है।
4. श्रम बाज़ार और लैंगिक असमानता
भारत की औसत प्रति व्यक्ति वार्षिक आय (क्रय शक्ति समता के आधार पर) लगभग 6,200 यूरो आँकी गई है।
महिला श्रम भागीदारी अभी भी अत्यंत निम्न लगभग 15.7 प्रतिशत है तथा आय और रोजगार दोनों स्तरों पर लैंगिक असमानता बनी हुई है।
वैश्विक संदर्भ में असमानता:
रिपोर्ट भारत की असमानता को वैश्विक प्रवृत्तियों के व्यापक ढांचे में रखकर विश्लेषित करती है:
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- विश्व स्तर पर शीर्ष 10 प्रतिशत लोग कुल संपत्ति का लगभग 75 प्रतिशत भाग रखते हैं, जबकि निचले 50 प्रतिशत के पास मात्र 2 प्रतिशत संपत्ति है।
- शीर्ष 1 प्रतिशत के पास विश्व संपत्ति का 37 प्रतिशत हिस्सा है जो दुनिया की निचली आधी आबादी की तुलना में 18 गुना अधिक है।
- शीर्ष 0.001 प्रतिशत (लगभग 60,000 अति-धनाढ्य व्यक्तियों) की कुल संपत्ति विश्व की निचली आधी आबादी की तुलना में तीन गुना अधिक है।
- विश्व स्तर पर शीर्ष 10 प्रतिशत लोग कुल संपत्ति का लगभग 75 प्रतिशत भाग रखते हैं, जबकि निचले 50 प्रतिशत के पास मात्र 2 प्रतिशत संपत्ति है।
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वैश्विक स्तर पर संरचनात्मक चालक:
यह रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि असमानता के ऐसे उच्च स्तर अपरिहार्य नहीं हैं, बल्कि नीतिगत विकल्पों, संस्थागत संरचनाओं और शासन ढाँचों का परिणाम हैं। प्रमुख संरचनात्मक कारकों में शामिल हैं:
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- कराधान और पुनर्वितरण विफलताएँ, विशेष रूप से वितरण के बहुत ऊपरी स्तर पर जहाँ अति-धनी व्यक्ति अक्सर मध्यम और निम्न आय समूहों की तुलना में आनुपातिक रूप से कम कर (टैक्स) देते हैं।
- कमजोर सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ, जो धन और आय को प्रभावी ढंग से पुनर्वितरित करने में विफल रहती हैं।
- श्रम बाजार का स्वरूप और गुणवत्तापूर्ण रोजगार के अवसरों तक पहुँच, जो आबादी के बड़े वर्गों के लिए सीमित बनी हुई है।
- कराधान और पुनर्वितरण विफलताएँ, विशेष रूप से वितरण के बहुत ऊपरी स्तर पर जहाँ अति-धनी व्यक्ति अक्सर मध्यम और निम्न आय समूहों की तुलना में आनुपातिक रूप से कम कर (टैक्स) देते हैं।
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यह रिपोर्ट जलवायु असमानता की भी पहचान करती है, जहाँ शीर्ष 10% लोग निजी पूंजी स्वामित्व से जुड़े लगभग 77% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि निचला आधा हिस्सा केवल 3% का योगदान देता है जो आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव दोनों में विषमताओं को उजागर करता है।
भारत में बढ़ती असमानता के मुख्य कारक:
रिपोर्ट तथा अन्य विश्लेषण भारत में असमानता के कई ढांचागत और नीतिगत कारण पहचानते हैं:
1. असमान वृद्धि और क्षेत्रीय पक्षपात: उदारीकरण के फलस्वरूप सेवा क्षेत्र और शहरी क्षेत्रों को अधिक लाभ मिला, जबकि कृषि और ग्रामीण क्षेत्र पिछड़ गए।
2. पूँजी बनाम श्रम: पूँजी आय जैसे लाभांश, किराया की वृद्धि वेतन वृद्धि से कहीं अधिक तेज रही।
3. प्रतिगामी कर नीतियाँ: कॉरपोरेट करों में कटौती और अप्रत्यक्ष करों (जीएसटी, उत्पाद शुल्क) का भार अपेक्षाकृत गरीब वर्गों पर अधिक पड़ा।
4. कमज़ोर सार्वजनिक सेवाएँ: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसंरचना में निवेश की कमी से सामाजिक गतिशीलता बाधित होती है।
5. जाति और लैंगिक असमानता: भेदभाव, आर्थिक अवसरों के वितरण में और गहरी हुई हैं।
6. राजनीतिक अर्थशास्त्र: बड़े पूँजी समूहों और नीतिनिर्माण संस्थाओं के बीच निकटता से नीतियाँ उच्च वर्गों के पक्ष में रहती हैं।
7. कोविड-19 का प्रभाव: महामारी ने गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित किया, जबकि अरबपतियों की संपत्ति तेज़ी से बढ़ी।
भारत में असमानता के विरुद्ध संवैधानिक ढाँचा:
1. समानता सुनिश्चित करने वाले मौलिक अधिकार
भारत का संविधान ऐतिहासिक तथा संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने के लिए एक मजबूत संवैधानिक ढाँचा प्रदान करता है।
अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत—
· कानून के समक्ष समानता,
· धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध,
· सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर (जिसमें अनुच्छेद 16(4) के तहत आरक्षण भी शामिल है),
· अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17), तथा
· उपाधियों का उन्मूलन (अनुच्छेद 18)
सुनिश्चित किए गए हैं।
ये प्रावधान सामाजिक न्याय और समान भागीदारी की संवैधानिक नींव को सुदृढ़ करते हैं।
2. नीति-निर्देशक सिद्धांत: सामाजिक व आर्थिक न्याय की दिशा:
नीति-निर्देशक तत्व (DPSPs), विशेषकर अनुच्छेद 39(a), 39(d), 39A, 42 और 46 राज्य को यह दायित्व सौंपते हैं कि वह:
· आजीविका का अधिकार सुनिश्चित करे,
· समान कार्य हेतु समान वेतन दे,
· मानवीय कार्य परिस्थितियाँ उपलब्ध कराए,
· निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करे,
· मातृत्व सुरक्षा सुनिश्चित करे, तथा
· कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा दे।
सकारात्मक भेदभाव के संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 15(3), 15(4), 16(4) तथा 103वाँ संविधान संशोधन (2019) जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया। ये सभी प्रावधान राज्य को सक्रिय रूप से सामाजिक न्याय को लागू करने की संवैधानिक शक्ति देते हैं।
भारत ने संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए कई लक्षित कार्यक्रम शुरू किए हैं।
आय एवं रोजगार सृजन कार्यक्रम
· मनरेगा (MGNREGA) – ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी आधारित रोजगार
· पीएम-किसान – कृषि आय समर्थन
· PMEGP – सूक्ष्म उद्यमिता को प्रोत्साहन
· DAY-NULM – शहरी आजीविका संवर्धन
· कौशल भारत मिशन (PMKVY) – कौशल विकास एवं रोजगार के अवसर
वित्तीय समावेशन कार्यक्रम
· प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) – बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच
· मुद्रा योजना – छोटे उद्यमों हेतु ऋण
· स्टैंड-अप इंडिया – महिलाओं तथा एससी/एसटी उद्यमियों को प्रोत्साहन
स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा उपाय
· आयुष्मान भारत (PM-JAY) – निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा कवरेज
· प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (NFSA के तहत) – कमजोर वर्गों को निःशुल्क खाद्यान्न
सामाजिक सुरक्षा एवं सशक्तिकरण कार्यक्रम
· राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) – वृद्धावस्था, विधवा, विकलांग पेंशन
· अटल पेंशन योजना – असंगठित श्रमिकों हेतु पेंशन सुरक्षा
· बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ – बालिका सशक्तिकरण
· स्वयं सहायता समूह (SHGs) – महिला आर्थिक सशक्तिकरण एवं उद्यमिता
नीति-सिफारिशें
रिपोर्ट असमानता में कमी हेतु कई महत्वपूर्ण कदम सुझाती है:
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- प्रगतिशील कराधान, वैश्विक स्तर पर अरबपतियों पर न्यूनतम कर, और कर-चोरी पर कड़ी निगरानी
- स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल-देखभाल और सामाजिक सुरक्षा में सार्वभौमिक सार्वजनिक निवेश
- नकद अंतरण, पेंशन, बेरोज़गारी सहायता और लक्षित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का विस्तार
- श्रम अधिकारों की मजबूती, न्यूनतम वेतन में सुधार तथा समावेशी आर्थिक नीतियाँ
- प्रगतिशील कराधान, वैश्विक स्तर पर अरबपतियों पर न्यूनतम कर, और कर-चोरी पर कड़ी निगरानी
निष्कर्ष:
विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 स्पष्ट करती है कि भारत में आय और संपत्ति की असमानता दुनिया के उच्चतम स्तरों में से एक है। देश की संपत्ति और आय का बड़ा हिस्सा सीमित उच्च वर्गों में केंद्रित है, जबकि निचले वर्गों के पास सीमित संसाधन, कम अवसर और कमजोर सुरक्षा तंत्र मौजूद है। रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि कराधान, सामाजिक सुरक्षा और श्रम बाज़ार सुधार जैसे क्षेत्रों में सशक्त नीति हस्तक्षेपों की अत्यंत आवश्यकता है, ताकि भारत में एक अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और सतत विकास मॉडल स्थापित किया जा सके।
| UPSC/PCS मुख्य परीक्षा: भारत में असमानता का प्रमुख कारण पूँजी की आय और श्रम की आय के बीच बढ़ती खाई है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 के संदर्भ में चर्चा कीजिए। |


