संदर्भ:
एक ऐतिहासिक कदम के रूप में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों ने भविष्य की महामारियों की तैयारी को मजबूत करने के लिए एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि के मसौदे पर पिछले सप्ताह सहमति बनाई। यह संधि, जिसे मई में विश्व स्वास्थ्य सभा में औपचारिक रूप से अनुमोदित किए जाने की उम्मीद है, WHO के 75 वर्षों के इतिहास में केवल दूसरी ऐसी संधि है—पहली संधि 2003 की तंबाकू नियंत्रण रूपरेखा संधि थी। महत्तवपूर्ण बात यह है कि इस संधि को संयुक्त राज्य अमेरिका की भागीदारी के बिना अंतिम रूप दिया गया है।
महामारी संधि की पृष्ठभूमि:
इस संधि की आवश्यकता COVID-19 महामारी के दौरान देखी गई जब असमानता और भ्रम का माहौल था। अमीर देशों ने वैक्सीन का बड़ा भंडार अपने पास सुरक्षित रख लिया, जबकि 2021 के अंत में ओमिक्रोन वेरिएंट फैलने पर वैश्विक सहयोग की भारी कमी देखने को मिली। इन घटनाओं ने स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के वैश्विक ढांचे की गंभीर कमजोरियों को उजागर किया।
2022 की एक नेचर पत्रिका के शोध में अनुमान लगाया गया कि यदि वैक्सीन का समान वितरण हुआ होता तो 10 लाख से अधिक जानें बचाई जा सकती थीं। इसके अलावा, महामारी संबंधी तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए स्वतंत्र पैनल (Independent Panel for Pandemic Preparedness and Response) ने COVID-19 के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया को "खराब रणनीतिक फैसलों" और "असंगठित प्रणाली" का परिणाम बताया, जो एक टाली जा सकने वाली मानवीय त्रासदी बन गई।
इस प्रतिक्रिया में, WHO सदस्य देशों ने दिसंबर 2021 में एक कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचा तैयार करने की चर्चा शुरू की ताकि भविष्य की महामारियों में ऐसी विफलताओं से बचा जा सके। यह समझौता तीन साल से अधिक समय में 13 दौर की बातचीत के बाद सामने आया है।
मसौदा संधि के प्रमुख प्रावधान:
1. पैथोजन एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग (PABS):
यह संधि एक PABS प्रणाली प्रस्तुत करती है, जो देशों और दवा कंपनियों के बीच रोगजनक नमूनों और आनुवंशिक जानकारी के तीव्र आदान-प्रदान को सुनिश्चित करती है। इसके बदले में, वैक्सीन, उपचार और डायग्नोस्टिक उपकरणों का अधिक समान वितरण अनिवार्य किया गया है।
2. संसाधनों का न्यायसंगत आवंटन:
o भाग लेने वाले विनिर्माताओं को अपने कुल उत्पादन का 10% WHO को वैश्विक वितरण के लिए देना होगा।
o अतिरिक्त 10% उत्पादन कम और मध्यम आय वाले देशों के लिए सुलभ दरों पर उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा।
3. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्थानीय निर्माण:
सदस्य देशों को तकनीकी ज्ञान के हस्तांतरण को बढ़ावा देने और विकासशील देशों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इसमें वैक्सीन और उपचारों के निर्माण से जुड़ी तकनीक को साझा करना शामिल है।
4. वित्त पोषण की शर्तें:
सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियाँ लागू करने के लिए कहा गया है कि सार्वजनिक धन से किए गए अनुसंधान के अंतर्गत तैयार उत्पाद महामारी के दौरान समान रूप से सुलभ हों। यह प्रावधान सार्वजनिक संस्थानों और निजी कंपनियों दोनों को दी जाने वाली अनुसंधान सहायता पर लागू होगा।
5. राष्ट्रीय संप्रभुता का प्रावधान:
यह संधि सदस्य देशों की संप्रभुता को स्पष्ट रूप से स्वीकार करती है। धारा 24, अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि यह संधि WHO सचिवालय या महानिदेशक को किसी भी देश के आंतरिक कानूनों या नीतियों को बदलने का अधिकार नहीं देती। साथ ही, WHO इस संधि के तहत लॉकडाउन, वैक्सीनेशन अनिवार्यता या यात्रा प्रतिबंध लागू नहीं कर सकता।
संधि के प्रभाव:
191 देशों द्वारा संधि के अनुमोदन से बहुपक्षीयता (Multilateralism) के पुनरुत्थान का संकेत मिलता है और यह WHO के नेतृत्व वाली वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था में विश्वास को दोबारा मजबूत करता है, भले ही अमेरिका इस प्रक्रिया से बाहर हो गया हो। यह ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) की बढ़ती हुई सौदेबाजी की शक्ति को भी दर्शाता है, जिन्होंने लंबे समय से उत्तर-दक्षिण के अंतर को ध्यान में रखते हुए न्याय आधारित प्रावधानों को मजबूती से आगे बढ़ाया।
जहाँ विकसित देशों ने वैज्ञानिक आंकड़ों की उपलब्धता पर ज़ोर दिया, वहीं विकासशील देशों ने स्वास्थ्य तकनीकों के समान वितरण को प्राथमिकता दी—और यह समझौता इसी संतुलन को दर्शाता है।
यह संधि वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों की पहचान और प्रतिक्रिया के तरीके को पूरी तरह से बदलने की कोशिश करती है। यह:
• संक्रामक रोगों की शीघ्र पहचान और रोकथाम के लिए तंत्र स्थापित करती है।
• सहयोगी अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय निगरानी नेटवर्क को प्रोत्साहित करती है।
• सीमा पार रोगजनक डेटा की अनिवार्य साझेदारी के माध्यम से प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को मजबूत करती है, जिससे वैश्विक प्रतिक्रिया क्षमताएँ बढ़ेंगी।
महामारी आपातकाल घोषित करने के मानदंड:
1. घटना को अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) माना जाना चाहिए।
2. यह अन्य देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय रोग प्रसार के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा करे।
3. इसमें एक समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता हो सकती है।
4. इसकी प्रकृति संक्रामक रोग की होनी चाहिए।
5. यह स्वास्थ्य प्रणालियों की क्षमता से अधिक हो या अधिक होने का गंभीर जोखिम हो।
6. यह सामाजिक और/या आर्थिक रूप से गंभीर विघटन उत्पन्न कर रही हो या कर सकती हो और इसके लिए तीव्र, समान और उन्नत अंतरराष्ट्रीय कार्यवाही की आवश्यकता हो।
ये मानदंड उन स्थितियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का प्रयास करते हैं, जहाँ वैश्विक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, ताकि वैश्विक प्रतिक्रिया प्रक्रिया को मानकीकृत किया जा सके।
चुनौतियाँ और सीमाएँ:
• प्रवर्तन तंत्र की कमी: WHO को संधि के प्रावधानों का पालन करवाने का अधिकार नहीं दिया गया है। इससे यह संधि COVID-19 महामारी के दौरान देखे गए वैक्सीन राष्ट्रवाद जैसी परिस्थितियों में अप्रभावी साबित हो सकती है।
• संयुक्त राज्य अमेरिका की अनुपस्थिति: अमेरिका, जो वैश्विक स्वास्थ्य नवाचार और उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा पदभार ग्रहण करने और WHO से बाहर निकलने के निर्णय के बाद वार्ताओं से हट गया। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के बिना संधि का वैश्विक प्रभाव काफी कमज़ोर पड़ सकता है।
• बौद्धिक संपदा अधिकारों को लेकर चिंताएँ: दवा उद्योग ने संधि के बौद्धिक संपदा (IP) पर प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। IP संरक्षण और कानूनी स्पष्टता, महामारी के दौरान उच्च जोखिम वाले अनुसंधान एवं विकास और स्वैच्छिक साझेदारियों को प्रोत्साहित करने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
• PABS प्रणाली का अस्पष्ट क्रियान्वयन: PABS प्रणाली के संचालन ढांचे को लेकर अब भी अस्पष्टता बनी हुई है। अभी भी यह अस्पष्ट है कि भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों में रोगजनक नमूने और उनके लाभ किस प्रकार साझा किए और निगरानी में रखे जाएंगे।
निष्कर्ष:
WHO की यह महामारी संधि वैश्विक स्वास्थ्य असमानताओं को दूर करने और भविष्य की महामारियों में बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह समान पहुंच, स्थानीय उत्पादन और अनुसंधान वित्तपोषण में पारदर्शिता को प्राथमिकता देकर COVID-19 संकट के दौरान सामने आई प्रणालीगत विफलताओं को सुधारने का लक्ष्य रखती है। यह संधि वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, वैज्ञानिक सहयोग और कानूनी सिद्धांतों को भी उजागर करती है। हालांकि इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश कितनी राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाते हैं, अमेरिका जैसे प्रभावशाली देश इसमें कैसे शामिल होते हैं, और क्रियान्वयन तथा प्रवर्तन तंत्र कितने प्रभावी बनते हैं।
जैसे-जैसे वैश्विक समुदाय इस संधि के अनुमोदन की ओर बढ़ रहा है, यह देखना बाकी है कि क्या यह कानूनी ढांचा महामारी की तैयारी में एक निर्णायक मोड़ साबित होगा या अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पाने में असफल रहेगा।
मुख्य प्रश्न: WHO महामारी संधि को अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन में एक कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन के रूप में कितना महत्वपूर्ण माना जा सकता है? चर्चा कीजिए। |