परिचय-
भारत विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। आने वाले वर्षों में यह कार्यबल भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। किंतु यह तभी संभव है जब यह युवा वर्ग न केवल शिक्षित बल्कि रोजगारोन्मुखी कौशल में निपुण हो। वर्तमान में भारत की व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) प्रणाली गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।
- हाल ही में 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से जिन आर्थिक सुधारों की घोषणा की, उनका उद्देश्य घरेलू खपत और निवेश को बढ़ावा देना है। इसी संदर्भ में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली और उद्योग की अपेक्षाओं के बीच यह असंतुलन भारत की व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
पृष्ठभूमि:
· भारत में व्यावसायिक प्रशिक्षण की जड़ें स्वतंत्रता पूर्व काल तक जाती हैं, परंतु इसे संस्थागत स्वरूप 1950 के दशक में आईटीआई (Industrial Training Institutes) और पॉलिटेक्निक संस्थानों के रूप में मिला। बाद में 2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) की स्थापना और 2015 में स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत ने कौशल विकास को नीति का केंद्रबिंदु बनाया।
· फिर भी, विश्व आर्थिक मंच (WEF) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट के अनुसार भारत का कौशल अंतर (skill gap) 60–70% तक है। अर्थात्, उद्योग में जो कौशल चाहिए और प्रशिक्षण संस्थान जो उपलब्ध करा रहे हैं, उनमें काफ़ी असमानता है। यही कारण है कि स्नातक और डिप्लोमा धारक युवाओं में भी बेरोज़गारी दर अत्यधिक है।
· भारत की कार्यशील आयु वर्ग की आबादी 65% से अधिक है। फिर भी केवल 4% भारतीय कार्यबल ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है, जबकि जर्मनी, सिंगापुर और कनाडा जैसे देशों में यह आँकड़ा 70–90% के बीच है।
· भारत में 14,000 से अधिक आईटीआई (ITIs) और लगभग 25 लाख स्वीकृत सीटें हैं, किंतु 2022 में केवल 12 लाख छात्रों ने नामांकन किया अर्थात् 48% सीट का उपयोग हो पाया।
· 2018 में आईटीआई स्नातकों का रोजगार दर 63% था, जबकि जर्मनी और सिंगापुर में यह 80–90% तक है जो भारत की रोजगार परिणाम की कमजोरी को बताता हैं।
· ये आँकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि भारत की व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली युवाओं के लिए न तो आकर्षक है और न ही प्रभावी।
भारत की व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली की प्रमुख चुनौतियाँ:
1. शिक्षा प्रणाली में विलंबित एकीकरण
o जर्मनी जैसे देशों में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) को उच्च माध्यमिक स्तर पर ही शिक्षा के साथ जोड़ा जाता है।
o भारत में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण केवल हाई स्कूल के बाद विकल्प के रूप में उपलब्ध है, जिससे व्यावहारिक प्रशिक्षण की अवधि कम हो जाती है।
2. उच्च शिक्षा तक मार्ग का अभाव
o सिंगापुर और जर्मनी में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण से पारंपरिक विश्वविद्यालयों तक स्पष्ट शैक्षणिक प्रगति के रास्ते हैं।
o भारत में न तो क्रेडिट ट्रांसफर प्रणाली है और न ही व्यावसायिक शिक्षा से उच्च शिक्षा तक औपचारिक मार्ग।
3. गुणवत्ता और धारणा की समस्या
o भारत में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण को “द्वितीय श्रेणी शिक्षा” समझा जाता है।
o एक-तिहाई से अधिक आईटीआई प्रशिक्षक पद रिक्त हैं।
o पाठ्यक्रम पुराने और उद्योग की ज़रूरतों से असंगत हैं।
o गुणवत्ता मॉनिटरिंग व प्रशिक्षु प्रतिक्रिया (trainee feedback) की व्यवस्था कमजोर है।
4. सार्वजनिक–निजी भागीदारी का अभाव
o जर्मनी, सिंगापुर और कनाडा में नियोक्ता न केवल प्रशिक्षुओं को वेतन देते हैं, बल्कि पाठ्यक्रम डिज़ाइन में भी भाग लेते हैं।
o भारत में निजी क्षेत्र की भागीदारी न्यूनतम है और ITIs प्रायः सरकारी फंड पर निर्भर रहते हैं।
5. वित्तीय आवंटन में कमी
o भारत शिक्षा व्यय का मात्र 3% व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण पर खर्च करता है, जबकि जर्मनी, सिंगापुर और कनाडा 10–13% तक निवेश करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से सीख:
1. जर्मनी का द्वैध प्रणाली (Dual System):
– स्कूली शिक्षा और पेड अप्रेंटिसशिप का एकीकृत मॉडल।
2. सिंगापुर का कौशल–भविष्य कार्यक्रम (SkillsFuture Programme):
– जीवनपर्यंत कौशल उन्नयन के लिए सरकारी सब्सिडी और उद्योग-नेतृत्व पाठ्यक्रम डिज़ाइन।
3. कनाडा का प्रशिक्षण मॉडल (Apprenticeship Model):
– सरकार और नियोक्ताओं के बीच साझेदारी, जिसमें उद्योग लागत साझा करते हैं।
ये उदाहरण बताते हैं कि प्रारंभिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का एकीकरण, उद्योग–शिक्षा साझेदारी, और आजीवन कौशल उन्नयन रोजगार परिणामों को बेहतर बनाते हैं।
भारत में हालिया नीतिगत प्रयास:
1. रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (Employment Linked Incentive Scheme)
o नए EPFO पंजीकृत कर्मचारियों को प्रोत्साहन।
o Part A : श्रमिकों को ₹15,000 तक।
o Part B : नियोक्ताओं को प्रति नए भर्ती ₹3,000/माह।
o सीमाएँ: औपचारिक रोजगार को बढ़ावा देता है, पर इसमें कौशल घटक शामिल नहीं है।
2. प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (PM Internship Scheme)
o युवाओं को शीर्ष कंपनियों में एक वर्ष की इंटर्नशिप।
o सीमाएँ: स्थायी रोजगार की कोई गारंटी नहीं।
3. आईटीआई उन्नयन पहल (ITI Upgradation Initiative)
o 1,000 सरकारी आईटीआई का उद्योग साझेदारी के साथ आधुनिकीकरण।
o सीमाएँ: प्रशिक्षण की गुणवत्ता सुधारने की कोई ठोस योजना नहीं।
4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020
o स्कूली स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण का प्रावधान।
o सीमाएँ: प्रगति धीमी और राज्यों में कार्यान्वयन असमान।
स्पष्ट है कि अब तक की नीतियाँ हाशिए पर सुधार करती रही हैं, न कि बुनियादी संरचना को बदलने का प्रयास।
आगे की राह : सुधार के प्रमुख आयाम
1. प्रारंभिक एकीकरण
o NEP 2020 के प्रावधानों को तेज़ी से लागू कर उच्च माध्यमिक स्तर से ही VET को शिक्षा का हिस्सा बनाना।
2. क्रेडिट और प्रगति पथ
o राष्ट्रीय क्रेडिट ढांचा (National Credit Framework) को शीघ्र लागू करना, जिससे व्यावसायिक शिक्षा से उच्च शिक्षा तक औपचारिक मार्ग मिले।
3. गुणवत्ता सुधार और प्रशिक्षक भर्ती
o राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थान (NSTIs) का विस्तार और रिक्त प्रशिक्षक पदों की शीघ्र भर्ती।
o नियमित आईटीआई ग्रेडिंग में प्रशिक्षु प्रतिक्रिया (trainee feedback) को शामिल करना।
4. उद्योग–शिक्षा साझेदारी
o सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) को सक्रिय रूप से जोड़ना, कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंडिंग का उपयोग करना।
o क्षेत्रीय कौशल परिषद (Sector Skill Councils) को राज्य स्तर पर सशक्त करना।
5. डिजिटल और आजीवन शिक्षा
o AR/VR आधारित प्रशिक्षण और ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म।
o रोज़गार में ‘रीस्किलिंग’ और ‘अपस्किलिंग’ को प्रक्रिया बनाना।
6. वित्तीय निवेश में वृद्धि
o व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) पर शिक्षा व्यय को कम-से-कम 8–10% तक बढ़ाना।
o ITIs को स्वायत्तता देकर स्वयं की आय अर्जित करने का अवसर।
o प्रदर्शन आधारित फंडिंग।
7. सामाजिक धारणा परिवर्तन
o मीडिया और नीति स्तर पर व्यावसायिक प्रशिक्षण (vocational training) को “कैरियर–उन्मुख शिक्षा” के रूप में प्रस्तुत करना।
निष्कर्ष:
भारत की व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली इस समय जिस स्थिति में है, वह न तो युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करती है और न ही उद्योग की आवश्यकताओं को। यदि इसे वर्तमान ढाँचे में ही संचालित किया जाता रहा तो “डेमोग्राफिक डिविडेंड” शीघ्र ही “डेमोग्राफिक बर्डन” में बदल सकता है। अतः ज़रूरी है कि भारत अपनी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली का पुनर्निर्माण करे, शिक्षा प्रणाली के शुरुआती स्तर से ही व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का एकीकरण, उद्योग की सक्रिय भागीदारी, पर्याप्त वित्तीय निवेश और गुणवत्ता सुधार ही वह मार्ग है जिससे युवाओं की रोजगार योग्यता को बढाया जा सकता है। यह सुधार केवल कौशल विकास तक सीमित नहीं है; यह विकसित भारत की आधारशिला है।
मुख्य प्रश्न- मानव पूंजी निवेश और रोजगारोन्मुखी वृद्धि में व्यावसायिक शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। क्या सार्वजनिक–निजी भागीदारी भारत के व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण तंत्र को सुदृढ़ करने का सर्वोत्तम मार्ग हो सकता है? (250 शब्द) |