संदर्भ:
हाल ही में भारत ने नई दिल्ली स्थित ऐतिहासिक लाल किले में यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage–ICH) के संरक्षण हेतु अंतर-सरकारी समिति के 20वें सत्र का सफलतापूर्वक आयोजन किया। छह दिनों तक चले इस सत्र का भारत में पहली बार आयोजन होना, सांस्कृतिक कूटनीति और वैश्विक विरासत शासन में भारत की बढ़ती नेतृत्व भूमिका को रेखांकित करता है।
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- इस सत्र के दौरान भारत के प्रमुख पर्व दीपावली (दीवाली) को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही यह भारत का 16वाँ अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्व बन गया। यह आयोजन भारत की मूर्त (tangible) और अमूर्त (intangible) विरासत के समन्वय को दर्शाता है तथा उसकी सभ्यतागत गहराई को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है।
- इस सत्र के दौरान भारत के प्रमुख पर्व दीपावली (दीवाली) को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही यह भारत का 16वाँ अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्व बन गया। यह आयोजन भारत की मूर्त (tangible) और अमूर्त (intangible) विरासत के समन्वय को दर्शाता है तथा उसकी सभ्यतागत गहराई को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है।
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यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
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- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) में परंपराएँ, प्रदर्शन कलाएँ, अनुष्ठान, शिल्प, भाषाएँ, पर्व-त्योहार तथा अन्य गैर-भौतिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ शामिल होती हैं, जिन्हें समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग मानते हैं।
- यह समिति नीतिगत संवाद, सूचीकरण, निगरानी तथा क्षमता निर्माण के माध्यम से तीव्र वैश्वीकरण के दौर में जीवंत विरासत के संरक्षण के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करती है।
- यह सत्र विशेष रूप से इसलिए उल्लेखनीय रहा क्योंकि भारत ने पहली बार इस समिति की मेज़बानी ऐतिहासिक लाल किले में की, जो सांस्कृतिक कूटनीति और विरासत संरक्षण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) में परंपराएँ, प्रदर्शन कलाएँ, अनुष्ठान, शिल्प, भाषाएँ, पर्व-त्योहार तथा अन्य गैर-भौतिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ शामिल होती हैं, जिन्हें समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग मानते हैं।
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20वें सत्र के प्रमुख परिणाम:
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- प्रमुख अभिलेखन और मान्यताएँ: भारत के प्रकाश पर्व दीपावली (दीवाली) को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में औपचारिक रूप से शामिल किया गया, जिससे इसके सांस्कृतिक, सामाजिक और प्रतीकात्मक वैश्विक महत्त्व को मान्यता मिली।
- नामांकन और सूचीकरण की व्यापकता: इस सत्र में विभिन्न देशों से प्राप्त बड़ी संख्या में विरासत नामांकनों की समीक्षा की गई तथा कई नए तत्वों को यूनेस्को की सूचियों में शामिल किया गया, जिससे विश्व की जीवंत परंपराओं की विविधता परिलक्षित हुई।
- भविष्य के सत्रों से संबंधित निर्णय: समिति ने निर्णय लिया कि 21वाँ सत्र 30 नवंबर से 5 दिसंबर 2026 के बीच श्यामेन (Xiamen), चीन में आयोजित किया जाएगा, जो वैश्विक सहभागिता और क्षेत्रीय संतुलन को दर्शाता है।
- प्रमुख अभिलेखन और मान्यताएँ: भारत के प्रकाश पर्व दीपावली (दीवाली) को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में औपचारिक रूप से शामिल किया गया, जिससे इसके सांस्कृतिक, सामाजिक और प्रतीकात्मक वैश्विक महत्त्व को मान्यता मिली।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
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- वैश्वीकरण, तीव्र सामाजिक परिवर्तन, शहरीकरण और सीमित संसाधनों के कारण जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं पर बढ़ते खतरे को देखते हुए, यूनेस्को ने 17 अक्टूबर 2003 को पेरिस में आयोजित अपने 32वें महासम्मेलन में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु अभिसमय (Convention) को अपनाया।
- इस अभिसमय ने यह स्वीकार किया कि मौखिक परंपराएँ, प्रदर्शन कलाएँ, अनुष्ठान, सामाजिक प्रथाएँ, शिल्पकला तथा पारंपरिक ज्ञान प्रणालियाँ सांस्कृतिक पहचान की रीढ़ हैं, किंतु संस्थागत संरक्षण के अभाव में वे असुरक्षित बनी रहती हैं।
- इस अभिसमय की एक प्रमुख विशेषता इसका समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण है, जिसमें स्वदेशी समुदायों, समूहों और व्यक्तिगत साधकों को संरक्षण प्रक्रिया के केंद्र में रखा गया।
- वैश्वीकरण, तीव्र सामाजिक परिवर्तन, शहरीकरण और सीमित संसाधनों के कारण जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं पर बढ़ते खतरे को देखते हुए, यूनेस्को ने 17 अक्टूबर 2003 को पेरिस में आयोजित अपने 32वें महासम्मेलन में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु अभिसमय (Convention) को अपनाया।
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इसने निम्नलिखित बातों पर बल दिया:
साकार और अमूर्त विरासत की पारस्परिक निर्भरता
• अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सहायता की आवश्यकता
• पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरण का महत्त्व, विशेषकर युवाओं के बीच
इस अभिसमय ने निम्नलिखित की आधारशिला रखी:
यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूचियाँ
• अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु अंतर-सरकारी समिति का कार्य
2003 के अभिसमय के उद्देश्य:
यह अभिसमय निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है:
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
• समुदायों, समूहों और व्यक्तियों की विरासत के प्रति सम्मान सुनिश्चित करना
• स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाना
• वैश्विक सहयोग और पारस्परिक सहायता को प्रोत्साहित करना
अंतर-सरकारी समिति के कार्य:
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु अंतर-सरकारी समिति, अभिसमय के कार्यान्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाती है। इसके प्रमुख कार्य हैं:
अभिसमय के उद्देश्यों की निगरानी और प्रोत्साहन
• अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु सर्वोत्तम प्रथाओं की अनुशंसा
• अमूर्त सांस्कृतिक विरासत कोष के उपयोग हेतु योजनाओं की तैयारी
• अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों का संचालन करना
• संचालनात्मक दिशा-निर्देशों का मसौदा तैयार करना और उनका अद्यतन
• राज्य पक्षों द्वारा प्रस्तुत आवधिक रिपोर्टों की समीक्षा
• यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूचियों में तत्वों के अभिलेखन पर निर्णय लेना
• अंतरराष्ट्रीय सहायता प्रदान करना
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत: एक राष्ट्रीय एवं वैश्विक धरोहर:
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत केवल सांस्कृतिक प्रतीक नहीं, बल्कि एक जीवंत संसाधन है।
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- सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत भाषाई, क्षेत्रीय, जनजातीय, धार्मिक और सामुदायिक पहचानों को संरक्षित करता है तथा विविध समाज में सामाजिक एकता और बहुलता को सुदृढ़ करता है।
- आजीविका एवं शिल्प अर्थव्यवस्था: पारंपरिक शिल्प, लोक कलाएँ, अनुष्ठान और सांस्कृतिक पर्यटन लाखों कारीगरों और कलाकारों की आजीविका का आधार हैं, विशेषकर ग्रामीण और हाशिए पर स्थित क्षेत्रों में। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) का संरक्षण समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देता है।
- शिक्षा एवं ज्ञान का हस्तांतरण: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान, मौखिक इतिहास, शिल्प तकनीकें और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ समाहित हैं, जो शिक्षा को समृद्ध करती हैं और पीढ़ीगत निरंतरता सुनिश्चित करती हैं।
- सांस्कृतिक कूटनीति एवं सॉफ्ट पावर: पर्व-त्योहार, नृत्य, शिल्प और अनुष्ठान भारत के मूल्यों और विविधता को प्रतिबिंबित करते हैं, जिससे सॉफ्ट पावर, जन-जन संपर्क और अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रभाव सशक्त होता है। यूनेस्को सत्र की मेज़बानी ने इस प्रभाव को और विस्तार दिया।
- वैश्विक विरासत नेतृत्व: भारत की सक्रिय भूमिका, समानता-आधारित और समुदाय-संवेदनशील वैश्विक विरासत शासन को सुदृढ़ करती है, जिससे वह विकासशील देशों की एक प्रमुख आवाज़ के रूप में उभरता है।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत भाषाई, क्षेत्रीय, जनजातीय, धार्मिक और सामुदायिक पहचानों को संरक्षित करता है तथा विविध समाज में सामाजिक एकता और बहुलता को सुदृढ़ करता है।
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अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में भारत के प्रयास:
संरक्षण प्रयासों को संस्थागत रूप देने के लिए संस्कृति मंत्रालय ने “भारत की अमूर्त विरासत और विविध सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण की योजना” प्रारंभ की।
मुख्य विशेषताएँ:
साधकों, संस्थानों, विद्वानों और समुदायों का पुनरोद्धार
• दस्तावेज़ीकरण, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का सूचीकरण, कार्यशालाओं, प्रदर्शनों और प्रशिक्षण को समर्थन
• यूनेस्को नामांकन डॉसियर तैयार करने में सहायता
• शिक्षा–संस्कृति समन्वय को बढ़ावा
• राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा योग्यता ढाँचा (NVEQF) के अंतर्गत कौशल विकास सहायता
इसके अतिरिक्त, संगीत नाटक अकादमी (SNA) क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है, साधकों को प्रशिक्षित करती है और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के मूल्यों के प्रति जागरूकता फैलाती है।
यूनेस्को द्वारा अभिलिखित भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:
भारत 2003 के अभिसमय का राज्य पक्ष है और अब उसके 16 तत्व यूनेस्को की ICH सूची में शामिल हैं, जिनमें नवीनतम दीपावली (2025) है।
भारत के अभिलिखित तत्वों का संक्षिप्त विवरण
पर्व एवं अनुष्ठान
• रामलीला (2008)
• राम्मण (2009)
• कुंभ मेला (2017)
• दुर्गा पूजा (2021)
• गरबा (2023)
• दीपावली (2025)
प्रदर्शन कलाएँ
• कुटियाट्टम (2008)
• छऊ नृत्य (2010)
• कालबेलिया (2010)
• मुडियेट्टू (2010)
• संकीर्तन (2013)
परंपराएँ एवं ज्ञान
• वैदिक मंत्रोच्चार (2008)
• लद्दाख का बौद्ध मंत्रोच्चार (2012)
• योग (2016)
शिल्प
• ठठेरा समुदाय का पीतल एवं तांबा शिल्प (2014)
बहुराष्ट्रीय
• नवरोज़ / नौरोज़ (2016)
यूनेस्को बैठक के निहितार्थ:
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- सांस्कृतिक कूटनीति एवं सॉफ्ट पावर: सांस्कृतिक शासन में भारत का नेतृत्व उसकी वैश्विक छवि को सुदृढ़ करता है और उसे जीवंत विरासत के संरक्षक राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करता है। बैठक की मेज़बानी ने भारत की सॉफ्ट पावर और जन-कूटनीति को विशेषकर विकासशील देशों में और मज़बूती दी।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं नीतिगत प्रभाव: इस बैठक ने भारत को यूनेस्को नीतियों को प्रभावित करने, समुदाय-संवेदनशील विरासत संरक्षण का समर्थन करने तथा वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने का मंच प्रदान किया।
- विरासत पर्यटन एवं अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: दीपावली सहित अन्य सांस्कृतिक प्रथाओं की मान्यता से विरासत पर्यटन को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे कारीगरों, कलाकारों और स्थानीय समुदायों को आर्थिक एवं सामाजिक लाभ प्राप्त होते हैं।
- घरेलू विरासत शासन को सुदृढ़ करना: इस आयोजन ने ICH योजना और संगीत नाटक अकादमी जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के महत्त्व को रेखांकित किया, जिससे दस्तावेज़ीकरण, क्षमता निर्माण और शिक्षा–संस्कृति समन्वय को बल मिला।
- समुदाय सशक्तिकरण: समुदायों को विरासत संरक्षण के केंद्र में रखकर, इस बैठक ने सहभागी संरक्षण की अवधारणा को सुदृढ़ किया, जिससे प्रयास अधिक समावेशी और टिकाऊ बने।
- सांस्कृतिक कूटनीति एवं सॉफ्ट पावर: सांस्कृतिक शासन में भारत का नेतृत्व उसकी वैश्विक छवि को सुदृढ़ करता है और उसे जीवंत विरासत के संरक्षक राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करता है। बैठक की मेज़बानी ने भारत की सॉफ्ट पावर और जन-कूटनीति को विशेषकर विकासशील देशों में और मज़बूती दी।
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निष्कर्ष:
भारत द्वारा यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत समिति की बैठक का सफल आयोजन, सांस्कृतिक शासन में उसकी उभरती नेतृत्व भूमिका, समुदाय-आधारित विरासत संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता तथा संस्कृति को सॉफ्ट पावर और कूटनीति के साधन के रूप में उपयोग करने की रणनीति को प्रतिबिंबित करता है। परंपरा और आधुनिक शासन ढाँचों के बीच सेतु बनाते हुए, भारत ने पुनः यह स्थापित किया है कि जीवंत विरासत का संरक्षण न केवल सांस्कृतिक निरंतरता के लिए आवश्यक है, बल्कि वैश्वीकृत विश्व में सतत और समावेशी विकास के लिए भी अपरिहार्य है।
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UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: वैश्वीकरण के दौर में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत संरक्षण की चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। इन चुनौतियों से निपटने में 2003 के यूनेस्को अभिसमय की प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए। |

