सन्दर्भ:
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हाल ही में 4–5 दिसंबर को दो दिवसीय भारत की राजकीय यात्रा पर थे। यह यात्रा 23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के साथ सम्पन्न हुई, जिसने दोनों देशों के बीच विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी की पुनः पुष्टि की। इस शिखर सम्मेलन ने यह स्पष्ट किया कि दशकों से चली आ रही रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहभागिता पर आधारित द्विपक्षीय संबंध, तीव्र वैश्विक भू-राजनीतिक परिवर्तनों के बावजूद, लचीले और सुदृढ़ बने हुए हैं।
भारत–रूस संबंध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
1. आधार और शीत युद्ध का संदर्भ:
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- स्वतंत्रता के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई, जिसका उद्देश्य शीत युद्ध के सैन्य गुटों से दूरी बनाए रखना था। किंतु व्यवहार में, रणनीतिक आवश्यकताओं के चलते भारत ने सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए। पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान, जब पश्चिमी देशों ने हथियार प्रतिबंध लगाए तब सोवियत संघ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा आपूर्तिकर्ता बना।
- सामग्री सहायता के साथ-साथ, सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र सहित बहुपक्षीय मंचों पर भारत को कूटनीतिक समर्थन प्रदान किया, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत हुई। सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान–प्रदान ने भी इस संबंध को सुदृढ़ किया।
- स्वतंत्रता के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई, जिसका उद्देश्य शीत युद्ध के सैन्य गुटों से दूरी बनाए रखना था। किंतु व्यवहार में, रणनीतिक आवश्यकताओं के चलते भारत ने सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए। पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान, जब पश्चिमी देशों ने हथियार प्रतिबंध लगाए तब सोवियत संघ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा आपूर्तिकर्ता बना।
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2. रणनीतिक साझेदारी:
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- आधुनिक भारत–रूस साझेदारी का औपचारिक रूप अक्टूबर 2000 में पुतिन की पहली भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के रूप में सामने आया। इस ढाँचे के अंतर्गत वार्षिक शिखर सम्मेलन, अंतर-मंत्रालयी समितियाँ और कार्य समूह स्थापित किए गए, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में नियमित और संरचित संवाद संभव हुआ।
- समय के साथ यह साझेदारी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तित हुई, जो सहयोग की गहराई और व्यापकता को दर्शाती है।
इस उन्नत साझेदारी में रक्षा सहयोग, कूटनीतिक परामर्श, ऊर्जा सहयोग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदान–प्रदान तथा जन–जन संपर्क शामिल रहे हैं। शीत युद्ध के बाद के दौर से लेकर रूस–यूक्रेन संघर्ष तक, वैश्विक भू-राजनीतिक उतार–चढ़ाव के बावजूद यह संबंध स्थिर बना है।
- आधुनिक भारत–रूस साझेदारी का औपचारिक रूप अक्टूबर 2000 में पुतिन की पहली भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के रूप में सामने आया। इस ढाँचे के अंतर्गत वार्षिक शिखर सम्मेलन, अंतर-मंत्रालयी समितियाँ और कार्य समूह स्थापित किए गए, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में नियमित और संरचित संवाद संभव हुआ।
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3. रक्षा और प्रौद्योगिकीय सहयोग:
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- दशकों से रूस भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है, जिसने लड़ाकू विमान, टैंक, पनडुब्बियाँ और मिसाइल प्रणालियाँ प्रदान की हैं। केवल आयात तक सीमित न रहते हुए, यह सहयोग प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-उत्पादन तक विस्तारित हुआ है, जिससे भारत की स्वदेशी क्षमताओं में वृद्धि हुई।
- टी-90 टैंकों और सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का सह-उत्पादन भारत के रक्षा आधुनिकीकरण में इस सहयोगी दृष्टिकोण का उदाहरण है। अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण, उपग्रह प्रक्षेपण और संयुक्त रॉकेट इंजन परियोजनाएँ, अंतरिक्ष क्षेत्र में भी दोनों देशों के सहयोग और गहन रणनीतिक परस्पर निर्भरता को दर्शाती हैं, जो भारत की सुरक्षा और प्रौद्योगिकीय आकांक्षाओं को सुदृढ़ करती हैं।
- दशकों से रूस भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है, जिसने लड़ाकू विमान, टैंक, पनडुब्बियाँ और मिसाइल प्रणालियाँ प्रदान की हैं। केवल आयात तक सीमित न रहते हुए, यह सहयोग प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-उत्पादन तक विस्तारित हुआ है, जिससे भारत की स्वदेशी क्षमताओं में वृद्धि हुई।
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4. ऊर्जा और आर्थिक संबंध
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- ऊर्जा, भारत–रूस संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ रही है। रूस ने भारत को कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, प्राकृतिक गैस और कोयला आपूर्ति किया है। 2022 के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रियायती तेल आपूर्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हुई और पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता घटी।
- हालाँकि, द्विपक्षीय व्यापार में एक संरचनात्मक असंतुलन बना हुआ है। भारत का आयात मुख्यतः ऊर्जा पर केंद्रित है, जबकि भारतीय निर्यात सीमित है। दोनों पक्ष व्यापार को पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़ाने की आवश्यकता स्वीकार करते रहे हैं।
- ऊर्जा, भारत–रूस संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ रही है। रूस ने भारत को कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, प्राकृतिक गैस और कोयला आपूर्ति किया है। 2022 के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रियायती तेल आपूर्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हुई और पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता घटी।
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23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन का रणनीतिक महत्व:
• 23वाँ भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन (4–5 दिसंबर 2025) कई पक्षों से रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि:
i. वर्ष 2000 की रणनीतिक साझेदारी घोषणा के 25 वर्ष पूरे हुए जो द्विपक्षीय संबंधों की दीर्घकालिकता और विश्वास-आधारित प्रकृति की पुष्टि करता है।
ii. विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई गई, जिसमें एक-दूसरे के मूल राष्ट्रीय हितों के सम्मान और रणनीतिक अभिसरण पर बल दिया गया।
iii. समान और अविभाज्य सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित भारत–रूस संबंधों को वैश्विक शांति और स्थिरता के एक स्तंभ के रूप में प्रस्तुत किया।
• संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि जटिल और अनिश्चित भू-राजनीतिक वातावरण के बावजूद, द्विपक्षीय संबंधों ने लचीलापन, अनुकूलनशीलता और निरंतरता प्रदर्शित की है। इसमें भारत–रूस संबंधों को साझा विदेश नीति प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया गया, जिसका उद्देश्य राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और मानवीय क्षेत्रों में सहयोग की पूर्ण क्षमता को साकार करना है।
• कज़ान और येकातेरिनबर्ग में भारतीय वाणिज्य दूतावासों का उद्घाटन, राजधानी-केंद्रित कूटनीति से आगे बढ़ते हुए, अंतर-क्षेत्रीय जुड़ाव, व्यापार सुविधा और जन–जन संपर्क पर बढ़ते पक्ष को दर्शाता है।
2025 शिखर सम्मेलन के प्रमुख परिणाम:
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- 2030 तक आर्थिक रोडमैप: शिखर सम्मेलन का एक प्रमुख आकर्षण विज़न 2030 आर्थिक सहयोग कार्यक्रम की घोषणा थी, जिसका उद्देश्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाना है। यह रोडमैप ऊर्जा से परे व्यापार विविधीकरण, गैर-शुल्क बाधाओं को कम करने, लॉजिस्टिक्स को सुगम बनाने और व्यावसायिक संपर्कों को बढ़ाने पर केंद्रित है। इसमें राष्ट्रीय मुद्राओं (रुपया और रूबल) के उपयोग और वैकल्पिक भुगतान तंत्र के विकास पर भी बल दिया गया है, ताकि बाहरी दबावों से व्यापार को सुरक्षित रखा जा सके।
- ऊर्जा और आपूर्ति आश्वासन: रूस ने भारत को निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति का आश्वासन दिया, जो वैश्विक ऊर्जा प्रतिस्पर्धा और रूसी ऊर्जा निर्यात पर प्रतिबंधों के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह आश्वासन भारत की बढ़ती घरेलू माँग और औद्योगिक निरंतरता के लिए आवश्यक है।
- रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग: शिखर सम्मेलन में रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग के आधुनिकीकरण पर भी ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें सुखोई-57 लड़ाकू विमान और वायु रक्षा प्रणालियों के संभावित सह-उत्पादन पर चर्चा शामिल थी। अंतरिक्ष सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा अनुसंधान पर संवाद ने सैन्य-तकनीकी सहयोग के भविष्यन्मुखी स्वरूप को रेखांकित किया।
- 2030 तक आर्थिक रोडमैप: शिखर सम्मेलन का एक प्रमुख आकर्षण विज़न 2030 आर्थिक सहयोग कार्यक्रम की घोषणा थी, जिसका उद्देश्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाना है। यह रोडमैप ऊर्जा से परे व्यापार विविधीकरण, गैर-शुल्क बाधाओं को कम करने, लॉजिस्टिक्स को सुगम बनाने और व्यावसायिक संपर्कों को बढ़ाने पर केंद्रित है। इसमें राष्ट्रीय मुद्राओं (रुपया और रूबल) के उपयोग और वैकल्पिक भुगतान तंत्र के विकास पर भी बल दिया गया है, ताकि बाहरी दबावों से व्यापार को सुरक्षित रखा जा सके।
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बहुपक्षवाद और वैश्विक शासन:
संयुक्त वक्तव्य में निम्नलिखित बिन्दुओं पर मजबूत सहमति बनी:
• संयुक्त राष्ट्र-केंद्रित बहुपक्षवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान।
• संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार, जिसमें भारत की स्थायी सदस्यता के लिए रूस का समर्थन दोहराया गया।
• जी-20, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन में सहयोग को सुदृढ़ करना, विशेषकर:
o वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताएँ
o बहुपक्षीय विकास बैंकों का सुधार
o आपूर्ति शृंखला लचीलापन और महत्वपूर्ण खनिज
• वैश्विक तथा एशियाई स्तर पर बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के प्रति साझा प्रतिबद्धता।
आतंकवाद-रोधी सहयोग:
• आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता का दृष्टिकोण।
• पहलगाम (2025) और मॉस्को (2024) में हुए आतंकी हमलों की संयुक्त निंदा।
• निम्नलिखित के लिए समर्थन:
o अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (सीसीआईटी) को शीघ्र अपनाना
o आतंकवादियों द्वारा उभरती प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग पर दिल्ली घोषणा का कार्यान्वयन
• राज्य उत्तरदायित्व पर बल और दोहरे मानदंडों की अस्वीकृति।
समग्र रूप से, संयुक्त वक्तव्य रणनीतिक स्वायत्तता, पुनर्गठित बहुपक्षवाद, आतंकवाद-रोधी सहयोग और वैश्विक स्थिरता पर भारत–रूस के बीच मजबूत सामंजस्य को रेखांकित करता है।
रणनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ:
भारत के लिए:
1. रणनीतिक स्वायत्तता: इस यात्रा ने यह स्पष्ट किया कि भारत रूस के साथ गहरे संबंध बनाए रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ भी मजबूत जुड़ाव रख सकता है।
2. आर्थिक विविधीकरण: व्यापार असंतुलन को दूर करने और रूस में भारतीय निर्यात बढ़ाने के प्रयास, अधिक संतुलित और रणनीतिक आर्थिक सहभागिता की ओर संकेत करते हैं।
रूस के लिए:
• रूस के लिए भारत, एशिया में एक अनिवार्य रणनीतिक साझेदार बना हुआ है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने में सहायक है। यह यात्रा रूस को एक प्रमुख एशियाई शक्ति के साथ संबंधों की पुनः पुष्टि और वैश्विक दबावों के बावजूद अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने का अवसर प्रदान करती है।
वैश्विक प्रभाव:
• यह शिखर सम्मेलन द्विध्रुवीय गुटों में विश्व को बाँटने के प्रयासों के विरुद्ध बहुध्रुवीय सहयोग के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता का संकेत देता है। इस यात्रा पर पड़ोसी देशों और वैश्विक शक्तियों की प्रतिक्रियाएँ इस तथ्य को रेखांकित करती हैं कि यूरेशियाई भू-राजनीति में भारत–रूस संबंधों की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है। चीन की संतुलित प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट हुआ कि क्षेत्रीय रणनीतिक समीकरण गतिशील हैं और वैश्विक दक्षिण की कूटनीति में भारत की भूमिका केंद्रीय है।
निष्कर्ष:
व्लादिमीर पुतिन की 2025 की भारत यात्रा केवल औपचारिक नहीं थी। इसने ऐतिहासिक विश्वास पर आधारित बहुआयामी साझेदारी की पुनः पुष्टि की, साथ ही समकालीन रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौतियों के अनुरूप उसके विकास को भी रेखांकित किया। यह यात्रा भारत की सूक्ष्म कूटनीति को दर्शाती है, जिसमें रणनीतिक स्वायत्तता के साथ बहुपक्षीय जुड़ाव संतुलित रूप से साधा गया है, जबकि रूस ने इस साझेदारी के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अलगाव के बीच अपनी स्थिरता और प्रासंगिकता बनाए रखने का प्रयास किया। भविष्य की ओर देखते हुए, विज़न 2030 रोडमैप, आर्थिक विविधीकरण, रक्षा एवं प्रौद्योगिकी सहयोग का विस्तार और ऊर्जा साझेदारी भारत–रूस संबंधों को एक तेजी से बदलती दुनिया में रणनीतिक स्थिरता का आधार बनाते हैं। यह सिद्ध करता है कि स्थायी साझेदारियाँ केवल इतिहास की देन नहीं होतीं, बल्कि दूरदर्शी और सतत कूटनीति का परिणाम भी होती हैं। 23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन ने इस साझेदारी को समय-परीक्षित, विश्वास-आधारित और भविष्यन्मुखी संबंध के रूप में पुनः स्थापित किया जहाँ रणनीतिक गहराई, आर्थिक व्यावहारिकता और बहुध्रुवीय विश्व के लिए साझा दृष्टि एक साथ समाहित हैं।
| UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: |

