सन्दर्भ:
विश्व एड्स दिवस के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय समारोह में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने हाल ही में भारत की एचआईवी/एड्स प्रतिक्रिया को लेकर महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ रेखांकित की हैं। देश में एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में 32 प्रतिशत तथा एड्स से होने वाली मृत्यु में 69 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। यह प्रगति बेहतर निदान सेवाओं, किफायती दवाओं की उपलब्धता और देशव्यापी एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) केंद्रों के विस्तार के परिणामस्वरूप संभव हुई है। टेस्ट एंड ट्रीट नीति के अंतर्गत प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति को आजीवन, निःशुल्क उपचार उपलब्ध है, जिससे मृत्यु दर में निर्णायक गिरावट दर्ज की गई है। भारत व्यापक अभियानों, सामुदायिक सहभागिता और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) की पहलों के माध्यम से देशव्यापी जागरूकता को सुदृढ़ करता है।
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- वर्ष 1988 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रारंभ किया गया यह दिवस हर वर्ष 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य एचआईवी/एड्स के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाना, एड्स से मरने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देना और एचआईवी के साथ जीवन जी रहे लोगों के प्रति संवेदनशीलता एवं सहयोग को प्रोत्साहित करना है। इस वर्ष की थीम “व्यवधान पर विजय: एड्स प्रत्युत्तर में सुधार” है जो महामारी, संघर्ष, असमानताओं तथा स्वास्थ्य प्रणालियों में व्यवधान के कारण कमजोर पड़ते एचआईवी/एड्स कार्यक्रमों को पुनर्गठित करने की तात्कालिक आवश्यकता पर जोर देती है।
भारत का एड्स नियंत्रण कार्यक्रम:
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- भारत का एड्स नियंत्रण कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर एक सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य मॉडल के रूप में प्रतिष्ठित है। एचआईवी के प्रारंभिक मामलों की पहचान से लेकर एक विकेन्द्रीकृत, समुदाय-संचालित कार्यक्रम के निर्माण तक, भारत ने बीते चार दशकों में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- 1985–1991 के बीच भारत ने संक्रमण पहचान, सुरक्षित रक्त आधान और लक्षित जागरूकता गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया। 1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) के गठन के साथ भारत ने एक संरचित, बहु-क्षेत्रीय रणनीति अपनाई, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, श्रम और विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित की गई।
- समय के साथ, एनएसीपी का दृष्टिकोण केंद्रीकृत नीति से आगे बढ़कर समुदाय-आधारित और विकेन्द्रीकृत मॉडल की ओर विकसित हुआ, जहाँ गैर-सरकारी संगठनों तथा एचआईवी के साथ रहने वाले लोगों (PLHIV) के नेटवर्क की भागीदारी को प्राथमिकता दी गई।
- भारत की उपलब्धियाँ मात्र नीतिगत नहीं हैं; वे व्यवहारिक पहलुओं में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। 2010 में 1.73 लाख वार्षिक मृत्यु से 2024 में 32,200 पर पहुंचना अर्थात 81% की कमी जो भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) का सार्वभौमिक और निःशुल्क प्रावधान, 94% ART रिटेंशन तथा 97% वायरल सप्रेशन जैसे परिणाम भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाते हैं।
- 2024 में वैश्विक मृत्यु (6.3 लाख) की तुलना में भारत का योगदान मात्र 5% होना यह दर्शाता है कि किफायती जेनेरिक दवा निर्माण जो वैश्विक एआरटी का लगभग 70% है, भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है। भारत की प्रगति UNAIDS के 95-95-95 लक्ष्य के अनुरूप है, जो 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करने के उद्देश्य को सुदृढ़ करते हैं।
- भारत का एड्स नियंत्रण कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर एक सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य मॉडल के रूप में प्रतिष्ठित है। एचआईवी के प्रारंभिक मामलों की पहचान से लेकर एक विकेन्द्रीकृत, समुदाय-संचालित कार्यक्रम के निर्माण तक, भारत ने बीते चार दशकों में उल्लेखनीय प्रगति की है।
एचआईवी और एड्स
ह्यूमन इम्यूनो डेफ़िसिएंसी वायरस (HIV) एक ऐसा रेट्रोवायरस है, जो मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को लक्ष्य बनाकर धीरे-धीरे उसे निष्क्रिय करता है। यह मुख्यतः CD4+ टी-लिम्फोसाइट्स जो रोग प्रतिरोधक प्रणाली की केंद्रीय कोशिकाएँ हैं, पर आक्रमण करता है और उनकी संख्या को क्रमिक रूप से कम करता है। जैसे-जैसे CD4+ कोशिकाएँ नष्ट होती हैं, शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है। यदि एचआईवी संक्रमण का समय पर और उचित उपचार न किया जाए, तो यह संक्रमण अपनी उन्नत अवस्था में एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम (AIDS) में परिवर्तित हो जाता है। एड्स वह स्थिति है जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी कमजोर हो जाती है कि रोगी सामान्य संक्रमणों, अवसरवादी रोगाणुओं, तथा कुछ प्रकार के कैंसर तक से लड़ने में सक्षम नहीं रहता। यही वह चरण है जहाँ एचआईवी संक्रमण जीवन-घातक बन जाता है। प्रारंभिक पहचान, नियमित परीक्षण, एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) तक समयबद्ध पहुँच और वायरल सप्रेशन, एचआईवी से एड्स में प्रगति को रोकने की सबसे प्रभावी रणनीतियाँ मानी जाती है। |
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम:
1. एनएसीपी -I (1992–1999): प्रारंभिक आधारशिला
इस चरण का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के फैलाव को धीमा करना और रोगजन्य प्रभाव को कम करना था। इसमें सुरक्षित रक्त आपूर्ति, जागरूकता और संक्रमण रोकथाम पर जोर दिया गया।
2. एनएसीपी -II (1999–2006): संस्थागत क्षमता का निर्माण
• देश में एचआईवी संक्रमण को कम करना।
• एचआईवी/एड्स के खिलाफ दीर्घकालिक राष्ट्रीय क्षमता विकसित करना।
इस चरण में स्वास्थ्य प्रणालियों की मजबूती, प्रशिक्षण और व्यवहार परिवर्तन संचार (BCC) को प्राथमिकता दी गई।
3. एनएसीपी -III (2007–2012): महामारी को उलटने का लक्ष्य
इसका उद्देश्य 2012 तक संक्रमण दर में गिरावट लाना था।
• उच्च जोखिम समूहों (HRGs) में लक्षित रोकथाम
• देखभाल, सहायता एवं उपचार सेवाओं का एकीकरण
इस काल में जिला एड्स रोकथाम एवं नियंत्रण इकाइयों (DAPCU) का गठन उल्लेखनीय रहा, जिसने विकेन्द्रीकृत निगरानी एवं कलंक-रिपोर्टिंग प्रणाली को मजबूत किया।
4. एनएसीपी IV (2012-2017)
· लक्ष्य: महामारी के उलटने में तेजी लाना और एक एकीकृत प्रतिक्रिया सुनिश्चित करना।
· उद्देश्य:
o नए संक्रमणों में 50 प्रतिशत की कमी (2007 की बेस लाइन की तुलना में)।
o सभी पीएलएचआईवी के लिए व्यापक देखभाल, सहायता और उपचार।
· 2017 तक एड्स को समाप्त करने के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए विस्तारित (2021-2030)।
· विस्तार के दौरान प्रमुख पहल:
o एचआईवी/एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017) – यह एचआईवी (पीएलएचआईवी) के साथ रहने वाले लोगों के प्रति भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, गोपनीयता सुनिश्चित करता है और रोकथाम और देखभाल तक पहुंच को बढ़ावा देते हुए परीक्षण और उपचार के लिए सूचित सहमति को अनिवार्य करता है।
o मिशन संपर्क- इसका उद्देश्य एचआईवी (पीएलएचआईवी) के साथ रहने वाले लोगों को "वापस लाना" था, जिन्होंने एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) को बंद कर दिया था।
5. एनएसीपी V (2021-2026)
15,471.94 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में शुरू किए गए पांचवें चरण का उद्देश्य पिछली उपलब्धियों को आगे बढ़ाना और चुनौतियों का लगातार समाधान करना है। इस चरण का लक्ष्य व्यापक रोकथाम, परीक्षण और उपचार सेवाओं के माध्यम से 2030 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में एचआईवी/एड्स महामारी को समाप्त करने में मदद करके संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 3.3 का समर्थन करना है।
जागरूकता एवं रोकथाम की दिशा में सरकारी प्रयास:
भारत में एचआईवी/एड्स जागरूकता बहु-स्तरीय रणनीति पर आधारित है।
1. राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान
NACO द्वारा टेलीविजन, रेडियो, सोशल मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रिंट मीडिया के माध्यम से व्यापक संदेश प्रसारित किए जाते हैं, जिससे युवा वर्ग विशेष रूप से प्रभावित होता है।
2. आउटडोर आउटरीच एवं सामुदायिक संवाद
होर्डिंग, बस पैनल, लोक प्रदर्शन, मोबाइल IEC वैन आदि के माध्यम से जनसंपर्क बढ़ाया जाता है। ये साधन दूरदराज क्षेत्रों में भी जानकारी पहुँचाते हैं।
3. जमीनी स्तर की संस्थाओं की सहभागिता
स्वयं सहायता समूह, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता, पंचायती राज संस्थाएँ—ये सभी समुदाय में व्यवहारगत परिवर्तन, परीक्षण को प्रोत्साहन और कलंक-निवारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
4. उच्च जोखिम समूहों के लिए लक्षित हस्तक्षेप
जुलाई 2025 तक 1,619 लक्षित परियोजनाएँ संचालित की गईं, जिनका उद्देश्य रोकथाम और उपचार सेवाओं तक समान पहुँच सुनिश्चित करना है।
5. कलंक एवं भेदभाव के विरुद्ध अभियान
भेदभाव मानवाधिकारों का उल्लंघन है और उपचार तक पहुँच में सबसे बड़ी बाधा है। इसे ध्यान में रखते हुए कार्यस्थलों, शैक्षणिक संस्थानों और समुदायों में विषयगत अभियान चलाए जा रहे हैं।
6. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लोकपाल की नियुक्ति
HIV/AIDS Act, 2017 के तहत लोकपालों की स्थापना PLHIV के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण प्रगति है।
चुनौतियाँ और आगे की राह:
यद्यपि भारत ने महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं, फिर भी कुछ चुनौतियाँ नीति-निर्माताओं और स्वास्थ्य प्रणाली का ध्यान आकृष्ट करती हैं:
1. छुपे हुए संक्रमण (Hidden Epidemic) – सामाजिक कलंक के कारण परीक्षण में संकोच है।
2. उत्तर-पूर्व और शहरी झुग्गियों में उच्च संक्रमण दर – विशेष रणनीतियों की आवश्यकता।
3. महिला एवं किशोरियों की संवेदनशीलता – लैंगिक-आधारित असमानताएँ जोखिम बढ़ाती हैं।
4. माइग्रेंट और मोबाइल आबादी – उपचार निरंतरता एक बड़ी चुनौती।
5. डिजिटल स्वास्थ्य साक्षरता – अपनाए जा रहे नए डिजिटल प्लेटफॉर्मों तक सीमित पहुँच।
2030 लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भारत को रोकथाम-केंद्रित रणनीति, सामुदायिक साझेदारी, लैंगिक समानता आधारित स्वास्थ्य सेवाएँ और सामाजिक कलंक उन्मूलन पर अधिक ध्यान देना होगा।
निष्कर्ष:
भारत की एचआईवी/एड्स यात्रा एक ऐसे राष्ट्र की कहानी है जिसने संकट को अवसर में बदलते हुए, स्वास्थ्य नीति, विज्ञान, समुदाय और प्रशासन को एक साझा लक्ष्य की ओर गतिशील रूप से संयोजित किया। यह यात्रा संक्रमण के प्रसार को समझने से आगे बढ़कर अधिकार-आधारित स्वास्थ्य प्रणाली की स्थापना तक पहुँचती है।
| UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: भारत की एचआईवी/एड्स प्रतिक्रिया पिछले तीन दशकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन का एक सफल मॉडल मानी जाती है। एसडीजी 3.3 के अनुरूप 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करने के लिए भारत को किन बहु-स्तरीय रणनीतियों को प्राथमिकता देनी चाहिए? |

