सन्दर्भ:
आतंकवाद लंबे समय से भारत के समक्ष सबसे जटिल और स्थायी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक बना हुआ है। दशकों से चल रहे आतंकवाद-रोधी अभियानों, विधायी उपायों, खुफिया सुधारों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बावजूद खतरे का स्वरूप निरंतर बदलता और विकसित होता रहा है जिसे सीमापार आतंकवाद, वैचारिक उग्रवाद, साइबर-कट्टरपंथीकरण तथा परिष्कृत आतंक वित्तपोषण नेटवर्क आकार दे रहे हैं। ऐसे में भारत द्वारा अपनी पहली व्यापक राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी नीति को अंतिम रूप देना, आतंकवाद से निपटने के दृष्टिकोण में एक ऐतिहासिक परिवर्तन का संकेत है।
-
- पूर्ववर्ती प्रतिक्रियाएँ प्रायः अलग-अलग कानूनों, संस्थाओं या छिटपुट सैन्य कार्रवाइयों पर आधारित रही हैं, जबकि प्रस्तावित नीति आतंकवाद की रोकथाम, प्रतिक्रिया और जांच के लिए एकीकृत, दूरदर्शी और संस्थागत ढांचा स्थापित करने का प्रयास करती है। इसका उद्देश्य कानूनी, खुफिया, परिचालन, वित्तीय, तकनीकी और सामाजिक आयामों को एक सुसंगत राष्ट्रीय रणनीति में समाहित करना है। प्रतिक्रियात्मक आतंकवाद-रोधी दृष्टिकोण से सक्रिय और पूर्व-निरोधक सुरक्षा शासन की ओर यह संक्रमण राष्ट्रीय एकता, लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक-आर्थिक स्थिरता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- पूर्ववर्ती प्रतिक्रियाएँ प्रायः अलग-अलग कानूनों, संस्थाओं या छिटपुट सैन्य कार्रवाइयों पर आधारित रही हैं, जबकि प्रस्तावित नीति आतंकवाद की रोकथाम, प्रतिक्रिया और जांच के लिए एकीकृत, दूरदर्शी और संस्थागत ढांचा स्थापित करने का प्रयास करती है। इसका उद्देश्य कानूनी, खुफिया, परिचालन, वित्तीय, तकनीकी और सामाजिक आयामों को एक सुसंगत राष्ट्रीय रणनीति में समाहित करना है। प्रतिक्रियात्मक आतंकवाद-रोधी दृष्टिकोण से सक्रिय और पूर्व-निरोधक सुरक्षा शासन की ओर यह संक्रमण राष्ट्रीय एकता, लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक-आर्थिक स्थिरता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।
व्यापक आतंकवाद-रोधी नीति की आवश्यकता:
ऐतिहासिक रूप से भारत की आतंकवाद-रोधी संरचना प्रमुख आतंकी घटनाओं की प्रतिक्रिया में विकसित हुई है, जैसे- संसद पर हमला (2001), 26/11 मुंबई आतंकी हमला (2008), उरी हमला (2016), पुलवामा हमला (2019) तथा हाल के वर्षों में नागरिकों और सुरक्षा बलों को लक्षित हमले। प्रत्येक घटना के बाद कुछ सुधार अवश्य हुए, किंतु समग्र ढांचा नीति-आधारित होने के बजाय क्षेत्रीय और घटना-केंद्रित ही बना रहा।
कई संरचनात्मक सीमाओं ने एक व्यापक नीति की आवश्यकता को रेखांकित किया:
• केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों का विखंडन
• राज्यों में असंगत प्रोटोकॉल, जिसके कारण तैयारी में असमानता
• रोकथाम की बजाय प्रतिक्रिया पर केंद्रित दृष्टिकोण
• साइबर आतंकवाद, एकल-व्यक्ति आतंकवाद और क्रिप्टोकरेंसी आधारित आतंक वित्तपोषण जैसे उभरते खतरे
• खुफिया, कानून प्रवर्तन और न्यायिक प्रक्रियाओं के बीच समन्वय की कमी
प्रस्तावित नीति इन कमियों को दूर करते हुए एक ऐसा मार्गदर्शक ढांचा प्रदान करती है, जो पूरे देश में कानूनों, संस्थाओं और परिचालन प्रक्रियाओं को एकसूत्र में पिरोता है।
आतंकवाद-रोधी नीति के मूल उद्देश्य:
इस नीति का व्यापक उद्देश्य केवल प्रतिक्रिया देने के बजाय एकीकृत दृष्टिकोण और पूर्वानुमान के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करना है। इसके प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं:
1. आतंकवाद-रोधी कार्यवाही के लिए एकीकृत राष्ट्रीय ढांचे की स्थापना
2. खुफिया समन्वय और सूचना साझा करने की क्षमता में वृद्धि
3. राज्यों में परिचालन प्रोटोकॉल का मानकीकरण
4. प्रारंभिक पहचान और विघटन सहित निवारक क्षमताओं को सुदृढ़ करना
5. आतंक वित्तपोषण के पारिस्थितिकी तंत्र को लक्षित करना
6. सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से समाज स्तर पर कट्टरपंथीकरण का समाधान
इन उद्देश्यों के माध्यम से नीति यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आतंकवाद-रोधी प्रयास एक सतत, पूर्वानुमेय और संस्थागत प्रक्रिया बनें, न कि केवल आपातकालीन प्रतिक्रिया।
आतंकवाद-रोधी नीति के प्रमुख स्तंभ:
1. एकीकृत योजना और संघीय समन्वय
इस नीति की एक प्रमुख विशेषता सभी राज्यों के लिए मानकीकृत प्रोटोकॉल पर बल देना है, जिससे तैयारी, जांच और प्रतिक्रिया में समानता सुनिश्चित हो सके। यद्यपि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है, फिर भी आतंकवाद को एक राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसके लिए केंद्र-राज्य के बीच निर्बाध सहयोग आवश्यक है।
नीति सहकारी संघवाद को सुदृढ़ करती है:
• साझा परिचालन सिद्धांतों की स्थापना
• राज्य पुलिस, आतंकवाद-रोधी दस्तों और केंद्रीय एजेंसियों के बीच अंतर-संचालन क्षमता का विकास
• आतंकी घटनाओं के दौरान स्पष्ट कमान संरचना का निर्धारण
इससे राष्ट्रीय समन्वय और राज्य स्वायत्तता के बीच संतुलन बना रहता है।
2. खुफिया-आधारित और प्रौद्योगिकी-सक्षम सुरक्षा
आधुनिक आतंकवाद गति, गुमनामी और डिजिटल मंचों पर निर्भर करता है। इसे ध्यान में रखते हुए नीति खुफिया तंत्र को आतंकवाद-रोधी रणनीति के केंद्र में रखती है।
मुख्य तत्वों में शामिल हैं:
• वास्तविक समय डेटा पहुंच के लिए राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड का एकीकरण
• पैटर्न और नेटवर्क पहचान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित विश्लेषण
• चेहरे की पहचान प्रणाली और उन्नत निगरानी उपकरणों का उपयोग
• राष्ट्रीय जांच एजेंसी जैसी संस्थाओं के साथ समन्वय को सुदृढ़ करना
यह खुफिया-आधारित दृष्टिकोण खतरे के मूर्त रूप लेने से पहले ही उसे निष्क्रिय करने का प्रयास करता है।
3. विशेषीकृत आतंकवाद-रोधी इकाइयों को सुदृढ़ करना
प्रभावी आतंकवाद-रोधी कार्रवाई के लिए उच्च प्रशिक्षित, सुसज्जित और त्वरित प्रतिक्रिया देने वाली इकाइयाँ आवश्यक हैं। नीति इस दिशा में निम्नलिखित पर ध्यान देती है:
• विशेष इकाइयों के लिए उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रम
• स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रियाएँ
• केंद्रीय और राज्य बलों के बीच बेहतर समन्वय
• शहरी और ग्रामीण आतंकवादी परिदृश्यों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र
इससे विभिन्न प्रकार के आतंकी हमलों से निपटने की भारत की क्षमता बढ़ती है।
4. वित्तीय आतंकवाद-रोधी उपाय
आतंकवाद की जीवनरेखा धन है। नीति पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के आतंक वित्तपोषण नेटवर्क को बाधित करने हेतु एक व्यापक ढांचा प्रस्तुत करती है।
मुख्य क्षेत्र हैं:
• हवाला और नकद आधारित नेटवर्क की निगरानी
• क्रिप्टोकरेंसी लेन-देन और डिजिटल वॉलेट पर नियंत्रण
• वित्तीय खुफिया इकाइयों के साथ समन्वय
• अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप घरेलू उपाय
वित्तीय स्रोतों को अवरुद्ध कर नीति आतंकवाद के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को लक्षित करती है।
5. सामुदायिक सहभागिता और डी-रेडिकलाइजेशन
नीति यह स्वीकार करती है कि आतंकवाद केवल सुरक्षा समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या भी है। कट्टरपंथीकरण अक्सर अलगाव, गलत सूचना और पहचान संकट से उत्पन्न होता है।
इसलिए नीति निम्नलिखित पर बल देती है:
• सामुदायिक पुलिसिंग पहल
• उग्रवादी प्रचार के विरुद्ध प्रतिनैरेटिव
• डी-रेडिकलाइजेशन और पुनर्वास कार्यक्रम
• नागरिक समाज, शिक्षकों और स्थानीय नेतृत्व के साथ सहभागिता
यह निचले स्तर से रोकथाम का दृष्टिकोण सामाजिक लचीलापन बढ़ाता है।
6. कानूनी एकीकरण और सामंजस्य
भारत के पास पहले से ही एक मजबूत कानूनी ढांचा है, जिसमें गैरकानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम, 1967, भारतीय न्याय संहिता, 2023 और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की शक्तियाँ शामिल हैं। किंतु ये कानून प्रायः अलग-अलग संचालित होते रहे हैं।
नई नीति का उद्देश्य इन प्रावधानों का सामंजस्य स्थापित करना है, जिससे:
• जांच और अभियोजन में तेजी आए
• प्रक्रियागत विलंब कम हों
• प्रवर्तन एजेंसियों को स्पष्ट दिशा मिले
साथ ही संवैधानिक सुरक्षा भी बनी रहे।
|
भारतीय संदर्भ में आतंकवाद भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 113 के अंतर्गत आतंकवाद को ऐसे कृत्यों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनका उद्देश्य भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालना या जनता में भय उत्पन्न करना हो। व्यवहार में भारत में आतंकवाद कई रूपों में प्रकट होता है: • सीमापार आतंकवाद इन सभी के लिए लचीली और बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। |
भारत पर आतंकवाद का प्रभाव:
आतंकवाद के प्रभाव तत्काल जनहानि से कहीं आगे तक जाते हैं:
• मानवीय प्रभाव: जान-माल की हानि और मानसिक आघात
• सामाजिक प्रभाव: भय, ध्रुवीकरण और संस्थाओं पर अविश्वास
• आर्थिक प्रभाव: अवसंरचना क्षति, पर्यटन में गिरावट, बाजार अस्थिरता
• कूटनीतिक प्रभाव: अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तनाव
• राजकोषीय भार: सुरक्षा और रक्षा पर बढ़ता व्यय
इसलिए सक्रिय नीति सतत विकास के लिए भी आवश्यक है।
आतंकवाद-रोधी नीति के समक्ष चुनौतियाँ:
-
- राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रताओं का संतुलन: आतंकवाद-रोधी उपायों को लागू करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि वे संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन न करें।
- केंद्र–राज्य समन्वय: आतंकवाद राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा विषय है, जबकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है; ऐसे में प्रभावी सहकारी संघवाद के बिना नीति का सफल क्रियान्वयन संभव नहीं होगा।
- साइबर आतंकवाद और तकनीकी जोखिम: एन्क्रिप्टेड संचार और ऑनलाइन डिजिटल प्लेटफॉर्म नई प्रकार की सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहे हैं।
- प्रशासनिक दक्षता और राजनीतिक इच्छाशक्ति: प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मजबूत संस्थागत ढाँचा, प्रशासनिक दक्षता और निरंतर राजनीतिक समर्थन अनिवार्य है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रताओं का संतुलन: आतंकवाद-रोधी उपायों को लागू करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि वे संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन न करें।
निष्कर्ष:
भारत की पहली व्यापक आतंकवाद-रोधी नीति का अंतिम रूप लेना राष्ट्रीय सुरक्षा शासन में एक परिवर्तनकारी क्षण है। खुफिया, कानून प्रवर्तन, कानूनी ढांचे, वित्तीय नियंत्रण, प्रौद्योगिकी और सामाजिक हस्तक्षेपों के एकीकरण के माध्यम से यह नीति भारत को प्रतिक्रियात्मक नियंत्रण से सक्रिय रोकथाम की ओर ले जाती है।
| UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत द्वारा पहली व्यापक आतंकवाद-रोधी नीति को अंतिम रूप देना आंतरिक सुरक्षा शासन में एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है। इस कथन के आलोक में नीति की प्रमुख विशेषताओं, उद्देश्यों और इसके रणनीतिक महत्व का विश्लेषण कीजिए। |

