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Daily-current-affairs / 25 Jan 2024

भारत का विकसित होता भू-रणनीतिक परिदृश्यः हिंद-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों का सामना

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संदर्भ -

एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक क्षेत्र के रूप में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के उद्भव के पश्चात भारत ने एक नए युग में प्रवेश किया है, इस परिदृश्य ने भारत को दक्षिण एशिया मे चीन और पाकिस्तान के प्रभुत्व वाले गठबंधन की गतिशीलता की बाधाओं से मुक्त कर दिया । हालांकि, लाल सागर में हाल की घटनाओं ने इस बात की बारीकी से जांच करने के लिए प्रेरित किया है, कि क्या यह विशाल समुद्री क्षेत्र, जिसे आरंभ में व्यापक अवसर के क्षेत्र के रूप में देखा जाता था, अब संघर्ष और नियंत्रण का क्षेत्र बन रहा है।

लाल सागर संकट

लाल सागर में चलने वाले वाणिज्यिक जहाजों, विशेष रूप से एम. वी. केम प्लूटो और एम. वी. साई बाबा पर हुए हौती आतंकवादी हमलों ने भारत को एक त्वरित राजनयिक और सैन्य प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य किया है।ध्यातव्य हो कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर की तेहरान यात्रा इन हमलों को रोकने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जबकि भारतीय नौसेना के जहाजों की इस क्षेत्र में तैनाती समुद्री हितों की रक्षा के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण को उजागर करती है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियां

वर्तमान चिंताओं से परे, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत के दीर्घकालिक दृष्टिकोण के विषय में एक बुनियादी सवाल उठता है। यद्यपि देश का महाद्वीपीय भू राजनीति से समुद्री भू राजनीति की ओर बदलाव सराहनीय है, लेकिन यह बदलाव विभिन्न चुनौतियों भी प्रस्तुत करता है, जो प्रतिक्रियाशील उपायों से परे एक व्यापक रणनीति की मांग करती है। राजनयिक प्रयासों से हौती चुनौती समाप्त हो सकती है, लेकिन भारत को महाद्वीपीय और समुद्री आयामों से जुड़ी अधिक सूक्ष्म और जटिल रणनीति की आवश्यकता है, जो दोनों मोर्चे की जटिल स्थितियों का सामना कर सके।

भारत के समक्ष दो मोर्चे की चुनौती

·       चीन का दोहरा मोर्चा दृष्टिकोणः पाकिस्तान और चीन से जुड़ी भारत की पारंपरिक दोहरे मोर्चे की चुनौती लंबे समय से बनी हुई है। लेकिन अब इसमें महाद्वीपीय और समुद्री चुनौतियों का एक दोहरा संयोजन शामिल हो गया है। चीन, अपने आक्रामक रुख के साथ, भारत को दोनों मोर्चों पर एक साथ नियंत्रित करना चाहता है। जहाँ एक तरफ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दबाव डाल रही है, वहीं दूसरी तरफ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है।  

·       नौसेना की चुनौतियाँ: वर्तमान में चीन और भारतीय नौसेनाओं के बीच एक स्पष्ट संख्यात्मक अंतर है, यह भारत के समक्ष बड़ी चुनौती को रेखांकित करता है। चीन की नौसेना में 370 से अधिक जहाज और पनडुब्बियां शामिल हैं, जबकि भारत के पास महज 132 युद्धपोतों का बेड़ा है। विभिन्न रिपोर्टों से संकेत मिलता है, कि 2030 तक चीन की नौसेना में 435 नए जहाज शामिल हो सकते है। ये संख्याएं न केवल चीन की बढ़ती समुद्री क्षमताओं को दर्शाती हैं, बल्कि हिंद-प्रशांत में उसके रणनीतिक इरादों को भी दर्शाती हैं।

·       विदेशी सैन्य अड्डेः चीन द्वारा जिबूती में सैन्य अड्डे की स्थापना उसकी व्यापक रणनीति का सिर्फ एक पहलू है। ग्वादर (पाकिस्तान), हम्बनटोटा (श्रीलंका), क्यौकप्यू (म्यांमार) में बढ़ी हुई गतिविधियाँ और मालदीव एवं सेशेल्स जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को घेरने के एक व्यवस्थित प्रयास को दर्शाती है। चीन का प्रभाव हॉर्न ऑफ अफ्रीका से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ है, जो इन समुद्री क्षेत्रों में भारत के ऐतिहासिक प्रभुत्व को चुनौती देता है।

·        ग्लोबल आउटरीचः भारत का नुकसान, चीन का लाभः- भारत के साथ ऐतिहासिक रूप से जुड़े क्षेत्रों में रणनीतिक निवेश, नौसैनिक ठिकानों और साझेदारी हेतु चीन का प्रयास चीन की व्यापक रणनीति का संकेत देता है। अफ्रीका से लेकर हिंद महासागर तक, चीन भारत को उन क्षेत्रों में विस्थापित कर रहा है, जहां कभी भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध मजबूत थे। जैसे-जैसे चीन पश्चिम एशिया और अफ्रीका के साथ संबंध मजबूत कर रहा है, भारत का इन पारंपरिक क्षेत्रों में प्रभाव कमजोर हो रहा है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीति

·       हिन्द प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते वैश्विक रुझान का उपयोगः भारत को समान विचारधारा वाले देशों के साथ गठबंधन बनाने के लिए हिंद-प्रशांत में बढ़ती वैश्विक रुचि का लाभ उठाना चाहिए। ज्ञातव्य हो कि, यह क्षेत्र प्रमुख शक्तियों के लिए आकर्षण एक केंद्र बन रहा है, इस संदर्भ में भारत के पास चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में समान चिंता वाले देशों के साथ जुड़ने का एक अवसर है।यह सहयोगात्मक प्रयास न केवल भारत के बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के हितों की भी रक्षा कर सकता हैं।

·       साझेदारीः हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, भारत को सक्रिय

रूप से उन देशों के साथ साझेदारी की तलाश करनी चाहिए जो चीन के उदय के बारे में समान चिंताओं को साझा करते हैं। क्वाड और मालाबार अभ्यास जैसी पहल इस दिशा में एक  सही कदम हैं, लेकिन एक अधिक मजबूत और सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता है। क्षेत्रीय भागीदारों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करके भारत, चीन की बढ़ती शक्ति का मुकाबला कर सकता है।

·       एक व्यापक हिंद-प्रशांत रणनीति का विकास: भारत की प्रतिक्रिया अस्थायी उपायों या प्रतिक्रियाशील रणनीतियों तक ही सीमित नहीं हो सकती है। इस संदर्भ में एक सुविचारित और एकजुट हिंद-प्रशांत रणनीति अनिवार्य है। यद्यपि वर्तमान पहल इस तरह की रणनीति के तत्व प्रदान करती है, लेकिन इन्हें एक व्यापक ढांचे में एकीकरण की आवश्यक है ,जो दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान कर सके । एक व्यापक दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए नौसैनिक अभ्यास और वृद्धिशील बजट वृद्धि से परे नवीन दृष्टि का विस्तार किया जाना चाहिए।

·       सामूहिक प्रयासों की दुविधाः U.S.-की अगुवाई में होने वाले 'ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन' में शामिल नहीं होने का भारत का निर्णय इसके दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बारे में सवाल उठाता है। हालांकि इस कदम को अल्पावधि में उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन सामूहिक प्रयासों में सक्रिय भागीदारी के बिना चीन की समुद्री महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करने की देश की प्रभावशीलता में कमी आ सकती है। राष्ट्रीय हितों और सहयोगात्मक प्रयासों के बीच संतुलन बनाना भारत की विकसित हो रही रणनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू होना चाहिए ।

निष्कर्ष

वर्तमान लाल सागर संकट कुछ समय पश्चात कम हो जाएगा, लेकिन भारत की दो-मोर्चे की चुनौती, जिसमें महाद्वीपीय और समुद्री दोनों आयाम शामिल हैं, लंबे समय तक बनी रहेगी जैसे-जैसे भू-राजनीतिक गतिशीलता विकसित होगी, नई दिल्ली को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा के लिए एक सक्रिय और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। भारत को एक व्यापक समुद्री रणनीति का निर्माण करना चाहिए जो वैश्विक मंच पर भारत की नई भूमिका के साथ संरेखित हो। आज अपनाए गए विकल्प आने वाले वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति को आकार देंगे।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

  1. विदेश मंत्री एस. जयशंकर की तेहरान यात्रा के महत्व पर बल देते हुए लाल सागर में हौती हमलों के जवाब में भारत की राजनयिक और सैन्य कार्रवाइयों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें।  (10 Marks, 150 Words)
  2. अमेरिका के नेतृत्व वाले 'ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन' से दूर रहने के फैसले पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए सामूहिक प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेने और एक स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाने के पक्ष और विपक्ष पर चर्चा करें।  (15 Marks, 250 Words)

Source- The Hindu

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