परिचय:
डेयरी भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पोषण तंत्र की रीढ़ रही है। भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है और वैश्विक उत्पादन में लगभग एक-चौथाई योगदान देता है। पिछले 11 वर्षों में डेयरी क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में लगभग 5 प्रतिशत का योगदान करता है और नेशनल अकाउंट्स स्टैटिस्टिक्स के अनुसार 8 करोड़ से अधिक किसानों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। महिला किसान उत्पादन और संग्रहण में प्रमुख भूमिका निभाती हैं, जिससे डेयरी समावेशी और लैंगिक-संवेदनशील विकास का एक महत्वपूर्ण साधन बन जाता है।
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- हाल ही में 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस मनाया गया जो श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज़ कुरियन की जयंती का स्मरण है। यह उन लाखों किसानों को सम्मान देता है जिनका श्रम भारत की दुग्ध उत्पादन में नेतृत्व को बनाए रखता है और देश को एक लचीले, समावेशी और पोषण-सुरक्षित भविष्य की ओर ले जाता है। सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश होने के बाद भी संरचनात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे कम उत्पादकता, चारे की कमी, जलवायु जनित तनाव और बार-बार होने वाली पशु बीमारियाँ दीर्घकालिक प्रदर्शन को सीमित करती रहती हैं।
- हाल ही में 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस मनाया गया जो श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज़ कुरियन की जयंती का स्मरण है। यह उन लाखों किसानों को सम्मान देता है जिनका श्रम भारत की दुग्ध उत्पादन में नेतृत्व को बनाए रखता है और देश को एक लचीले, समावेशी और पोषण-सुरक्षित भविष्य की ओर ले जाता है। सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश होने के बाद भी संरचनात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे कम उत्पादकता, चारे की कमी, जलवायु जनित तनाव और बार-बार होने वाली पशु बीमारियाँ दीर्घकालिक प्रदर्शन को सीमित करती रहती हैं।
भारत में दूध उत्पादन:
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- भारत का दूध उत्पादन लगातार बढ़ती दिशा में रहा है। 2014–15 में 146.30 मिलियन टन से बढ़कर 2023–24 में 239.30 मिलियन टन हो गया, जो 63% की वृद्धि को दर्शाता है। प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 471 ग्राम/दिन तक पहुँच गई है, जो वैश्विक औसत 329 ग्राम/दिन से काफी अधिक है जो घरेलू आपूर्ति और पोषण पहुँच में सुधार का संकेत है।
- पाँच राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश कुल उत्पादन में 53% से अधिक भागीदारी रखते हैं। पशुधन आधार भी उतना ही महत्वपूर्ण है: भारत में 303.76 मिलियन गौवंश हैं, जिनमें देशी भैंसें राष्ट्रीय उत्पादन में 32% और क्रॉसब्रेड गायें लगभग 30% योगदान देती हैं। उत्पादकता अंतर अभी भी गंभीर है- क्रॉसब्रेड गायें 8.55 किग्रा/दिन देती हैं जबकि देशी गायें औसतन 3.44 किग्रा/दिन, जो आनुवंशिक सुधार की निरंतर आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- भारत का दूध उत्पादन लगातार बढ़ती दिशा में रहा है। 2014–15 में 146.30 मिलियन टन से बढ़कर 2023–24 में 239.30 मिलियन टन हो गया, जो 63% की वृद्धि को दर्शाता है। प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 471 ग्राम/दिन तक पहुँच गई है, जो वैश्विक औसत 329 ग्राम/दिन से काफी अधिक है जो घरेलू आपूर्ति और पोषण पहुँच में सुधार का संकेत है।
डेयरी का आर्थिक और सामाजिक महत्व:
1. ग्रामीण आय की रीढ़: डेयरी भारत के कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में लगभग 40% का योगदान देती है, जिसका मूल्य ₹11.16 लाख करोड़ है। लगभग 8 करोड़ किसानों, अधिकतर लघु और सीमान्त के लिए दूध आय का दैनिक और स्थिर स्रोत है, जबकि फसली आय मौसमी होती है।
2. पोषण सुरक्षा: दूध में प्रोटीन, कैल्शियम, आवश्यक विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं। यह भारत में कुपोषण, विशेषकर प्रोटीन की कमी, अवरुद्ध विकास और एनीमिया से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उच्च प्रति व्यक्ति उपलब्धता से घरेलू आहार में व्यापक समावेश संभव होता है।
3. महिलाओं का सशक्तिकरण: भारत के डेयरी कार्यबल में 70% महिलाएँ हैं। वे 48,000 से अधिक सहकारी समितियों का प्रबंधन करती हैं और 16 ऑल-वुमन मिल्क प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन्स (MPOs) चलाती हैं। आंध्र प्रदेश की श्रीजा MPO जैसे मॉडल दिखाते हैं कि डेयरी ग्रामीण महिलाओं की स्वायत्तता, आय स्थिरता और सामुदायिक नेतृत्व को कैसे मजबूत करती है।
4. सतत कृषि में योगदान: पशुधन गोबर, बायो-CNG और जैविक उर्वरक प्रदान करता है। गोबर-धन जैसे कार्यक्रम अपशिष्ट को आर्थिक मूल्य में बदल रहे हैं, रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटा रहे हैं और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार कर रहे हैं।
सहकारी ढाँचा और मूल्य श्रृंखला:
भारत का सहकारी डेयरी नेटवर्क पैमाने में अद्वितीय है। इसमें शामिल हैं:
• 22 मिल्क फेडरेशन
• 241 जिला यूनियन
• 31,908 डेयरी सहकारी समितियाँ
• 1.72 करोड़ उत्पादक
• 61,677 गाँव स्तरीय परीक्षण प्रयोगशालाएँ
यह ढाँचा पारदर्शी खरीद और उचित मूल्य सुनिश्चित करता है। हालाँकि, संगठित क्षेत्र केवल एक-तिहाई बाजार योग्य दूध का प्रसंस्करण करता है; असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व गुणवत्ता, कोल्ड-चेन दक्षता और किसानों की आय पर प्रभाव डालता है।
सरकारी समर्थन और क्षेत्रीय सुधार:
1. श्वेत क्रांति (White Revolution) 2.0
2024–25 में शुरू हुई यह पाँच वर्षीय मिशन योजना सहकारी तंत्र के आधुनिकीकरण पर केंद्रित है। इसके लक्ष्य हैं:
• 75,000 नई डेयरी सहकारी समितियों का गठन
• 46,422 मौजूदा समितियों का सुदृढ़ीकरण
• चारा, जैव-उर्वरक और उप-उत्पाद उपयोग के लिए बहु-राज्य सहकारी संस्थाएँ
• 2028–29 तक खरीद क्षमता 1,007 लाख किग्रा/दिन तक बढ़ाना
• प्रसंस्करण क्षमता को 100 मिलियन लीटर/दिन तक विस्तारित करना
रोहतक में साबर डेयरी जैसी नई बड़ी इकाइयाँ दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े बाजारों को समर्थन देती हैं और आपूर्ति अवरोधों को कम करती हैं।
2. राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM)
मार्च 2025 में संशोधित RGM वैज्ञानिक प्रजनन के माध्यम से नस्ल सुधार और उत्पादकता वृद्धि पर केंद्रित है। ₹3,400 करोड़ के व्यय के साथ यह:
• 9.2 करोड़ पशुओं को लाभान्वित किया
• 5.6 करोड़ किसानों को सहायता प्रदान किया
• 14.12 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान करवाया
• 22 IVF प्रयोगशालाएँ स्थापित किया
• सेक्स-शॉर्टेड सीमेन की 1 करोड़ से अधिक खुराकें तैयार किया
यह भारत के पशुधन को अधिक उत्पादक और आनुवंशिक रूप से उन्नत बनाने के केंद्र में है।
3. राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD)
2021 में संशोधित NPDD खरीद और प्रसंस्करण प्रणालियों को मजबूत करने पर केंद्रित है। इसके प्रमुख परिणाम:
• 31,908 सहकारी समितियों का पुनरुद्धार
• 17.63 लाख नए उत्पादकों का जुड़ाव
• लगभग 6,000 बल्क मिल्क कूलर की स्थापना
• 279 प्रयोगशालाओं का उन्नयन
नई पाउडर प्लांट, UHT यूनिट और ग्रीनफील्ड डेयरियों ने क्षमता में वृद्धि की है। 2025–26 के लिए ₹400 करोड़ से अधिक के समर्थन के साथ 21,902 नई सहकारी समितियों की योजना है।
4. जीएसटी युक्तिकरण (GST Rationalisation) 2025
56वीं GST परिषद ने प्रमुख डेयरी उत्पादों पर कर कम किए:
• UHT दूध और पैक्ड पनीर पर 0% GST
• घी, बटर, चीज़, कंडेंस्ड मिल्क और डेयरी पेय पर 5%
• आइसक्रीम 18% से घटाकर 5%
• मिल्क कैन 12% से घटाकर 5%
इन कटौतियों से उपभोक्ता लागत घटती है, औपचारिक क्षेत्र का विस्तार होता है और किसानों की आय बढ़ती है।
डेयरी और पशुधन क्षेत्र की चुनौतियाँ:
1. कम उत्पादकता: औसत उत्पादकता (1,777 किग्रा/वर्ष) वैश्विक औसत (2,699 किग्रा/वर्ष) से बहुत कम है। केवल 33% पशुओं का AI कवरेज होने से आनुवंशिक सुधार धीमा है।
2. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: चिलिंग यूनिट, परीक्षण प्रयोगशालाओं, पशु चिकित्सा सेवाओं और आधुनिक प्लांटों की कमी से बाद-फसल हानि बढ़ती है और विस्तार बाधित होता है।
3. जलवायु तनाव: तापमान वृद्धि, अनियमित वर्षा और चारे की कमी से उत्पादन प्रभावित होता है। मीथेन उत्सर्जन भी चिंता का विषय है और जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं की आवश्यकता है।
4. पशु रोग: FMD, ब्रुसेलोसिस और लंपी स्किन डिज़ीज़ उत्पादन घटाते हैं। भारत का लक्ष्य 2030 तक उन्मूलन है, पर टीकाकरण व्यवस्था में कमियाँ बनी हुई हैं।
5. चारा कमी: हरे चारे की 12%, सूखे चारे की 23% और केंद्रित फ़ीड की 30% की कमी है, जिससे पशु स्वास्थ्य और उत्पादन प्रभावित होता है।
6. मूल्य अस्थिरता और कम ऋण पहुंच: दूध कीमतें अस्थिर रहती हैं और कृषि ऋण में पशुधन का हिस्सा केवल 4% है।
7. वृद्धि में मंदी: दूध उत्पादन वृद्धि 2018–19 के 6.47% से घटकर 2022–23 में 3.83% रह गई—यह गहरी संरचनात्मक समस्याओं की ओर संकेत करता है।
आगे की राह:
1. सहकारी संस्थाओं को मजबूत करना: व्यापक कवरेज से बेहतर मूल्य, पारदर्शिता और औपचारिकता बढ़ती है।
2. वैज्ञानिक प्रजनन का विस्तार: AI, IVF, सेक्स्ड सीमेन और जीनोमिक चयन का बढ़ा उपयोग सतत उत्पादकता बढ़ा सकता है।
3. आधुनिक अवसंरचना: कोल्ड-चेन, गुणवत्ता परीक्षण और कुशल प्रसंस्करण मूल्य संवर्धन और अपशिष्ट कमी के लिए आवश्यक हैं।
4. जलवायु-स्मार्ट प्रथाएँ: बायो-CNG, खाद प्रबंधन और गर्मी-सहिष्णु नस्लें पर्यावरणीय जोखिमों को कम कर सकती हैं।
5. चारा सुरक्षा: उच्च-उपज चारा किस्में, चारा बैंक और बेहतर सिंचाई उपलब्धता पुरानी समस्या को कम कर सकती है।
6. अधिक ऋण और बीमा: पशुधन वित्त, जोखिम कवरेज और कार्यशील पूंजी सहायता किसानों की आय स्थिर करती है।
7. मूल्य-वर्धित उत्पादों को बढ़ावा: चीज़, दही, पनीर, व्हे और आइसक्रीम कच्चे दूध से अधिक आय प्रदान करते हैं।
8. देशी नस्लों का समर्थन: बेहतर संरक्षण और चयनात्मक प्रजनन से उनकी प्राकृतिक सहनशीलता और रोग-प्रतिरोधक क्षमता का लाभ लिया जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत का डेयरी क्षेत्र एक निर्णायक चरण में प्रवेश कर रहा है। उत्पादन में वृद्धि, सहकारी नेटवर्क का विस्तार, मजबूत प्रजनन कार्यक्रम और महत्वपूर्ण नीति समर्थन एक आशाजनक आधार तैयार कर चुके हैं। फिर भी उत्पादकता अंतर, जलवायु दबाव, चारा कमी और रोग जोखिम अब भी बाधाएँ हैं। व्हाइट रेवोल्यूशन 2.0 का लक्ष्य आधुनिक अवसंरचना और वैज्ञानिक प्रथाओं के माध्यम से इन अंतरालों को भरना है, जबकि किसानों, विशेषकर महिलाओं को जमीनी स्तर पर सशक्त बनाना है।
| UPSC/PCS Main Question: भारत में डेयरी क्षेत्र ग्रामीण आय, महिलाओं के सशक्तिकरण और पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देता है। विश्लेषण कीजिए कि सहकारी मॉडल ने इस विकास को कैसे आकार दिया है। जलवायु तनाव और बाजार अस्थिरता जैसी नई चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत डेयरी सहकारी समितियों को कैसे मजबूत कर सकता है? |


