संदर्भ:
भारत का कृषि व्यापार हाल के वर्षों में मिश्रित रुझानों का साक्षी रहा है। एक ओर जहाँ देश चावल, मसाले, समुद्री उत्पाद और कॉफी जैसे कई कृषि उत्पादों का शीर्ष निर्यातक बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर वह खाद्य तेल, दालें, कपास और फलों के मामले में आयात पर लगातार निर्भर होता जा रहा है। यद्यपि कृषि निर्यात में वृद्धि हो रही है, परंतु आयात उससे कहीं तेज़ गति से बढ़ रहा है, जिससे भारत का कृषि व्यापार अधिशेष घटता जा रहा है।
इस बदलते हुए व्यापारिक स्वरूप के पीछे कई कारण हैं जैसे कि घरेलू उत्पादन की चुनौतियाँ, वैश्विक बाजार में बदलाव, और भारत की बदलती व्यापार नीतियाँ। अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ चल रही मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ताएँ भारत के भविष्य के कृषि व्यापार को और अधिक प्रभावित कर सकती हैं।
हाल के निर्यात और आयात रुझान (2024–25):
- वर्ष 2024–25 में भारत के कृषि निर्यात में 6.4% की वृद्धि हुई, जो $48.8 बिलियन से बढ़कर $51.9 बिलियन हो गया।
- इसी अवधि में कुल वस्तु निर्यात (merchandise exports) में मात्र 0.1% की वृद्धि हुई।
- दूसरी ओर, कृषि आयात में 17.2% की तेज़ वृद्धि हुई, जो $32.9 बिलियन से बढ़कर $38.5 बिलियन हो गया।
- परिणामस्वरूप, भारत का कृषि व्यापार अधिशेष घटकर $13.4 बिलियन रह गया, जो कि 2013–14 में $27.7 बिलियन था।
दीर्घकालिक रुझान (2013–14 से 2024–25):
- पिछले एक दशक में कृषि निर्यात $43.3 बिलियन से बढ़कर $51.9 बिलियन हो गया, लगभग 20% की वृद्धि।
- इसके विपरीत, कृषि आयात $15.5 बिलियन से बढ़कर $38.5 बिलियन हो गया (148% की वृद्धि)।
- यह बढ़ता अंतर भारतीय कृषि की संरचनात्मक समस्याओं को दर्शाता है, जैसे उत्पादकता में ठहराव और कुछ प्रमुख वस्तुओं के लिए आयात पर बढ़ती निर्भरता।
प्रमुख निर्यात वस्तुएँ और रुझान:
- समुद्री उत्पाद: भारत का शीर्ष कृषि निर्यात बना रहा, परंतु 2022–23 के $8.1 बिलियन से घटकर $7.4 बिलियन रह गया।
- चावल: बासमती और गैर-बासमती चावल का निर्यात 2024–25 में रिकॉर्ड $12.5 बिलियन तक पहुँचा।
- बासमती मुख्यतः पश्चिम एशिया को निर्यात किया जाता है।
- गैर-बासमती चावल का निर्यात अधिकांशतः अफ्रीकी देशों को होता है।
- मसाले, तंबाकू, कॉफी, फल और सब्ज़ियाँ: इन सभी का निर्यात पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा।
- कॉफी का निर्यात ब्राज़ील और वियतनाम में फसल खराब होने के कारण बढ़ा।
- तंबाकू को ब्राज़ील और जिम्बाब्वे में कमजोर फसल से लाभ हुआ।
कुछ निर्यात वस्तुओं को समस्याओं का सामना करना पड़ा:
- गेहूँ और चीनी: पहले प्रमुख निर्यातक वस्तुएँ थीं, परंतु अब घरेलू आपूर्ति की चिंता के चलते उन पर प्रतिबंध या नियंत्रण लगा हुआ है।
- कपास: निर्यात में भारी गिरावट के कारण भारत अब इसका शुद्ध आयातक बन गया है।
- भैंस का मांस: इसका निर्यात $4 बिलियन से अधिक तक पुनः पहुँचा है, परंतु अब भी पुराने उच्च स्तर से नीचे है।
प्रमुख आयात वस्तुएँ और कारण:
- वनस्पति तेल (Vegetable Oils): भारत में तिलहन की कम उत्पादकता के कारण भारी आयात निर्भरता बनी हुई है।
- दालें: घरेलू उत्पादन की कमी के कारण 2024–25 में दालों का आयात रिकॉर्ड $5.5 बिलियन तक पहुँच गया।
- कपास और रबर: घरेलू उत्पादन में गिरावट के कारण इनका आयात बढ़ रहा है।
- कपास का उत्पादन 2013–14 में 398 लाख गांठों से घटकर 2024–25 में 291 लाख गांठ रह गया है।
- रबर का उत्पादन भी घट रहा है, जबकि मांग बढ़ती जा रही है।
अन्य प्रमुख आयात:
- फल और सूखे मेवे: बादाम, सेब, खजूर और अखरोट का नियमित रूप से आयात होता है।
- मसाले: भारत शीर्ष मसाला निर्यातक होते हुए भी काली मिर्च और इलायची का आयात करता है।
- मादक पेय: शराब और स्पिरिट्स का आयात लगातार बढ़ रहा है।
भारत के कृषि निर्यात को बढ़ावा देना:
मार्च 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान भारत का कृषि निर्यात 6.5% बढ़कर $37.5 बिलियन तक पहुँच गया, जबकि कृषि आयात 18.7% की तेज़ वृद्धि के साथ $29.3 बिलियन हो गया। इससे कृषि व्यापार घाटा और गहरा हो गया है।
प्रमुख बदलाव:
- कपास: जो एक समय भारत का सबसे प्रमुख निर्यातक कृषि उत्पाद था, उसके निर्यात में भारी गिरावट आई है—2011–12 में $4.3 बिलियन से घटकर 2023–24 में मात्र $1.1 बिलियन रह गया।
- व्यापक अधिशेष में गिरावट: 2013–14 में $27.7 बिलियन का कृषि व्यापार अधिशेष घटकर 2023–24 में $16 बिलियन रह गया।
- वैश्विक मूल्य प्रवृत्तियाँ: 2013–14 से 2019–20 के बीच वैश्विक कृषि उत्पादों की कीमतों में गिरावट से भारत के निर्यात राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। COVID-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कीमतों में तेजी आई, जिससे 2022–23 में निर्यात $53.2 बिलियन तक पहुँच गया।
निर्यात और आयात के गंतव्य:
निर्यात:
- 2023 में भारत ने कुल $48 बिलियन मूल्य के कृषि उत्पाद निर्यात किए।
- एशिया: कुल निर्यात का 58%, जिसमें चीन और यूएई को $3 बिलियन और वियतनाम को $2.6 बिलियन का निर्यात।
- अफ्रीका: कुल निर्यात का 15% हिस्सा।
- अमेरिका: 13.4% हिस्सा, मुख्य निर्यात—चावल, तिल और ताज़े फल।
- यूरोप: 12.6%, मुख्य निर्यात—तंबाकू, फल और सजावटी पौधे।
आयात:
- वैश्विक दक्षिण (Global South): कुल कृषि आयात का 48% ब्राज़ील, चीन, मैक्सिको, अर्जेंटीना और इंडोनेशिया से आया।
- विकसित देश: मुख्य आपूर्तिकर्ता—अमेरिका, नीदरलैंड और जर्मनी।
भारत के कृषि निर्यात में चुनौतियाँ:
1. असमान प्रतिस्पर्धा का माहौल (Uneven Playing Field):
- पश्चिमी देश अपने किसानों को भारी सब्सिडी देते हैं और भारतीय उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाते हैं।
- अमेरिका: प्रति किसान औसतन $61,286 की वार्षिक सहायता।
- भारत: केवल $282 प्रति किसान—इससे भारतीय कृषि उत्पाद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाते।
2. डब्ल्यूटीओ में एमएसपी विवाद:
- अमेरिका और कनाडा जैसे देश भारत की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीति को WTO नियमों का उल्लंघन मानते हैं।
- भारत “विकास बॉक्स” (Development Box) के अंतर्गत असीमित इनपुट सब्सिडी दे सकता है, लेकिन विकसित देश इस पर भी कड़े नियम चाहते हैं—जिससे छोटे किसानों को खतरा हो सकता है।
3. निर्यात प्रतिबंध:
- भारत महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अक्सर निर्यात पर प्रतिबंध या शुल्क लगाता है (जैसे प्याज़)।
- इससे भारत की छवि एक भरोसेमंद निर्यातक के रूप में खराब होती है और खाद्य प्रसंस्करण व आपूर्ति श्रृंखला में निवेश को हतोत्साहित करती है।
4. गैर-शुल्क बाधाएँ (Non-Tariff Barriers – NTBs):
- विकसित देश अक्सर सख्त स्वच्छता (SPS) और तकनीकी बाधाएँ (TBT) लगाते हैं।
- उदाहरण:
- यूरोप ने कीटनाशक संबंधित चिंताओं के चलते कुछ बासमती चावल और चाय पर प्रतिबंध लगा दिया।
- जापान ने भारत से फूलों के निर्यात पर कीट कारणों से प्रतिबंध लगाया, जबकि वही कीट वहां पहले से मौजूद हैं।
एफटीए कारक: अवसर या खतरा?
भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर बातचीत कर रहा है। ये देश भारत के बाजार में अधिक पहुँच चाहते हैं—कम टैरिफ, कम गैर-शुल्क बाधाएँ। वे वाइन, चीज़, फल और आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (GM) फसलों (जैसे मक्का और सोयाबीन) पर शुल्क में कटौती चाहते हैं।
संभावित लाभ:
- भारत के चावल, चाय, कॉफी और मसालों के निर्यात को नए बाज़ार मिल सकते हैं।
संभावित जोखिम:
- भारतीय किसान सब्सिडी प्राप्त विदेशी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं।
- उदाहरण: अमेरिकी सूखे मेवे और वाइन पर शुल्क में कटौती से उनके आयात में वृद्धि होगी—जिससे भारतीय बाग़वान और पेय उत्पादक प्रभावित हो सकते हैं।
- अमेरिका भारत पर जीएम फसलों पर प्रतिबंधों में ढील देने का दबाव बना रहा है जिससे खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता विश्वास पर सवाल उठ सकते हैं।
निष्कर्ष:
भारत का कृषि व्यापार एक निर्णायक मोड़ पर है। जहाँ कई क्षेत्रों में निर्यात बढ़ रहा है, वहीं बढ़ते आयात और नीतिगत बाधाएँ व्यापार अधिशेष को कम कर रही हैं। आगामी एफटीए समझौते अवसर भी ला सकते हैं और खतरे भी। ऐसे में जरूरी है कि भारत स्थिर और पूर्वानुमेय (predictable) निर्यात नीति अपनाए, कृषि उत्पादकता में निवेश करे और एक मज़बूत नियामक प्रणाली विकसित करे। इसी संतुलन के ज़रिए भारत एक प्रतिस्पर्धी कृषि निर्यातक के रूप में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सकता है।
मुख्य प्रश्न: अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ चल रहे मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के भारत की कृषि पर संभावित प्रभाव का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। घरेलू किसानों और खाद्य संप्रभुता की रक्षा के लिए किन सुरक्षा उपायों पर विचार किया जाना चाहिए? |