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Daily-current-affairs / 10 Dec 2025

दंड से पुनर्वास तक: भारतीय कारागार प्रणाली में सुधारित न्याय मॉडल

दंड से पुनर्वास तक: भारतीय कारागार प्रणाली में सुधारित न्याय मॉडल

सन्दर्भ:

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने हरियाणा की जेलों में राज्यव्यापी कौशल विकास केंद्रों, आईटीआई स्तर के व्यावसायिक प्रशिक्षण मॉड्यूल और पॉलिटेक्निक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का उद्घाटन किया। यह पहल भारत की जेलों की दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है जहाँ अब सजा-प्रधान कारावास की बजाय पुनर्वास, सुधार और पुन: एकीकरण केंद्रित मॉडल पर जोर दिया जा रहा है। यह पहल संयुक्त राष्ट्र के नेल्सन मंडेला नियमों (UN Nelson Mandela Rules) और सुधारात्मक न्याय (correctional justice) के आधुनिक दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो समानता, रोजगारयोग्यता और मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देती है।

आधुनिक जेलों के लिए नया दृष्टिकोण:

      • पुनर्वास के केंद्र में प्रौद्योगिकी और डिजिटल कौशल
        • जेल प्रशिक्षण भविष्य की अर्थव्यवस्थाके अनुरूप होना चाहिए। श्रम बाजार में तेजी से हो रहे परिवर्तनों के चलते उन्होंने तर्क दिया कि कैदियों को ऐसे कौशल विकसित करने चाहिए जिनकी प्रासंगिकता जेल से बाहर निकलने के बाद भी बनी रहे, जैसे डिजिटल साक्षरता, लॉजिस्टिक्स प्रबंधन और नवीन व्यावसायिक दक्षताएँ।
        • यह बदलाव पारंपरिक जेल-कौशलों से हटकर उच्च-मूल्य वाले कौशलों की ओर संकेत करता है, जो रोजगार क्षमता बढ़ाते हैं। उनके अनुसार लक्ष्य केवल प्रशिक्षण नहीं, बल्कि रिहाई के बाद वास्तविक अवसर उपलब्ध कराना है।
      • उद्योग सहयोग: प्रशिक्षुता के लिए जेलों को गोद लेनेका मॉडल
        • एक मुख्य प्रस्ताव यह है कि जेलों और निजी कंपनियों के बीच गहरा सहयोग बढ़ाया जाए। उद्योग जेलों को अपनाएँ”, प्रशिक्षण दें, प्रशिक्षुता उपलब्ध कराएँ और अंततः प्रशिक्षित कैदियों को रोजगार दें।
        • यह मॉडल पूर्व कैदियों को नौकरी देने से जुड़े कलंक को मिटा सकता है और कैदियों को संरचित कार्य अनुभव, स्थिर आय और गरिमा प्रदान कर सकता है।
      • निम्न-जोखिम अपराधियों के लिए यूके-शैली की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी
        • यूनाइटेड किंगडम की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली जिसमें अपराधियों को परिभाषित क्षेत्र के भीतर घर पर रहने की अनुमति देकर एक चिप और उन्नत सॉफ्टवेयर के माध्यम से निगरानी की जा सकती है।
        • यह मॉडल सहायता करता है:
          परिवारिक जीवन की निरंतरता
          भावनात्मक और वित्तीय स्थिरता
          मनोवैज्ञानिक क्षति में कमी
          बच्चों के बेहतर परिणाम, जो अक्सर मौन पीड़ा झेलते हैं
        • यह प्रणाली निगरानी और मानवीयता के बीच संतुलन बनाती है तथा कारावास के सामाजिक प्रभाव को कम करती है।
      • खुली जेलों का विस्तार
        • अधिक खुली जेलों की स्थापना की आवश्यकता है। ये निम्न-सुरक्षा संस्थाएँ जहाँ कैदी न्यूनतम नियंत्रण के साथ रहते हैं और उत्पादक कार्य में संलग्न होते हैं। राजस्थान में खुली जेलों की सफलता इसका उदाहरण है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इन्हें पुनरावृत्ति कम करने, जिम्मेदारी बढ़ाने और मानसिक कल्याण के लिए प्रभावी माना गया है।

From Punishment to Rehabilitation

सुधारात्मक न्याय क्यों आवश्यक है:

      • जब व्यक्ति बिना शिक्षा, कौशल, परामर्श या सामुदायिक समर्थन से जेल छोड़ते हैं, तो वे उपेक्षा, बेरोजगारी और अलगाव का सामना करते हैं जो उन्हें पुनः अपराध की ओर धकेल सकता है।
      • जेलों या सुधार गृहोंका उद्देश्य यह होना चाहिए कि वे असमानताओं को गहरा होने से रोकें। सुधारात्मक न्याय के लिए समन्वित कार्रवाई, मापनीय परिणाम और ऐसे संस्थान आवश्यक हैं जो पुनर्संरचना को प्राथमिकता दें, न कि पुनः कारावास को।

भारतीय जेलों का विधिक और प्रशासनिक ढांचा:

      • संवैधानिक प्रावधान
        • जेल, राज्य सूची (अनुच्छेद 7, प्रविष्टि 4) के अंतर्गत आती हैं। अतः राज्य सरकारें प्रशासन, अवसंरचना और कैदियों के प्रबंधन के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं।
        • हालाँकि, केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) नीतिगत दिशा-निर्देश, वित्तीय सहयोग और मॉडल ढाँचे प्रदान करता है ताकि राज्यों में समान मानक विकसित किए जा सकें।
      • उपनिवेशकालीन कानूनों से आधुनिक विधि तक
        • एक सदी से अधिक समय तक भारतीय जेलों का संचालन प्रिज़न्स एक्ट, 1894 और संबंधित राज्य नियमावली के आधार पर होता रहा, जो औपनिवेशिक नियंत्रण की मानसिकता पर आधारित थे। इस ढांचे को बदलने के लिए गृह मंत्रालय ने मॉडल प्रिज़न्स एंड करेक्शनल सर्विसेज़ एक्ट, 2023 प्रस्तुत किया।
        • यह नया कानून:
          औपनिवेशिक प्रावधानों को निरस्त करता है।
          प्रिजनर्स एक्ट, 1900 और ट्रांसफर ऑफ प्रिजनर्स एक्ट, 1950 को एकीकृत करता है।
          आधुनिक, मानवीय और सुधार-केंद्रित सिद्धांतों को अपनाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करता है।

जेल सुधार को आकार देने वाले प्रमुख न्यायिक निर्णय:

      • सुहास चकमा बनाम भारत संघ (2024): सुप्रीम कोर्ट ने खुली जेलों को भीड़भाड़ कम करने और पुनर्वास हेतु प्रभावी विकल्प के रूप में मान्यता दी।
      • हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979): इस ऐतिहासिक निर्णय ने त्वरित न्याय को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों विचाराधीन कैदियों की रिहाई संभव हुई।
      • मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत के पूर्व निर्णय: जसबीर सिंह मामले में उन्होंने कहा कि कैदियों के लिए दाम्पत्य मिलन (conjugal visits) या कृत्रिम गर्भाधान का अधिकार उनकी गरिमा का हिस्सा है, जो मौलिक अधिकारों के दायरे में आता है।

हालिया कदम और सरकारी पहलें:

      • मॉडल प्रिजन मैनुअल (2016) में संशोधन: सुकन्या संथा बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद जाति आधारित भेदभाव समाप्त करने हेतु नियमों में संशोधन किया गया जो मानवीय व्यवहार की दिशा में यह महत्त्वपूर्ण कदम था।
      • गरीब कैदी सहायता योजना: आर्थिक रूप से कमजोर कैदियों को जुर्माना भरने या जमानत प्राप्त करने में मदद हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे अनावश्यक कारावास कम होता है।
      • ई-प्रिजन परियोजना: NIC द्वारा विकसित एक राष्ट्रीय डिजिटल प्रणाली, जो कैदियों के विस्तृत रिकॉर्ड रखती है और प्रबंधन व पारदर्शिता को बेहतर बनाती है।
      • जेल अवसंरचना का आधुनिकीकरण: सुरक्षा, निगरानी और तकनीकी उपकरणों के उन्नयन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
      • सुप्रीम कोर्ट की फास्टर (FASTER) प्रणाली: FASTER (Fast and Secured Transmission of Electronic Records) यह सुनिश्चित करती है कि जमानत आदेश तुरंत जेल अधिकारियों तक पहुँचें, जिससे रिहाई में देरी न हो।

विशेषज्ञ समितियों की अनुशंसाएँ:

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत

कैदी अव्यक्तिनहीं हो जाता
कैदी सभी मानवाधिकारों का अधिकारी है, सिवाय उन अधिकारों के जिन्हें न्यायोचित रूप से सीमित किया गया है
कारावास की स्वाभाविक पीड़ा को राज्य द्वारा बढ़ाया नहीं जाना चाहिए

संसदीय समिति के सुझाव

बेल पर छोड़े गए अपराधियों के लिए ट्रैकिंग उपकरणों का उपयोग
ऐतिहासिक जेलों का नवीनीकरण और विरासत पर्यटन को बढ़ावा
कैदियों के कल्याण हेतु जेल विकास कोष की स्थापना

न्यायमूर्ति ए.एन. मुल्ला समिति

अखिल भारतीय कारागार एवं सुधार सेवा की स्थापना
आफ्टर-केयर, पुनर्वास और प्रोबेशन को केंद्र में रखना
पारदर्शिता हेतु प्रेस और जनता को निरीक्षण की अनुमति
विचाराधीन कैदियों को न्यूनतम रखना और उन्हें दोषियों से अलग रखना

न्यायमूर्ति अमिताभा रॉय समिति

लंबित और छोटे मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें
वृद्ध या बीमार कैदियों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग
महिला जेलों एवं ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए कल्याण कार्यक्रम
विचाराधीन, प्रथम-अपराधी और दोषियों के बीच स्पष्ट पृथक्करण

आगे की राह:

      • डेटा-आधारित सुधारात्मक व्यवस्था: CJI ने व्यवहारिक प्रगति और रिहाई बाद की स्थितियों को ट्रैक करने पर बल दिया है। डेटा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता मापने, सुधारों को दिशा देने और पुनरावृत्ति कम करने में मदद करता है।
      • मानवीय दंड और पुनर्वास: प्रणाली को गरिमा, मानसिक स्वास्थ्य, परामर्श और सामाजिक पुनर्संलयन पर ध्यान देना चाहिए। मानवीय वातावरण हिंसा घटाता है और परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है।
      • प्रौद्योगिकीसहायक, बाधक नहीं: इलेक्ट्रॉनिक निगरानी, डिजिटल कौशल और स्मार्ट प्रशासनिक उपकरण प्रणाली में पारदर्शिता और दक्षता ला सकते हैं।
      • उद्योग और समुदाय साझेदारी: रोजगार पुनरावृत्ति रोकने का सबसे बड़ा साधन है। जेलों, उद्योगों, स्वयंसेवी संगठनों और समुदायों के बीच मजबूत साझेदारी स्थायी समर्थन तंत्र बना सकती है।

निष्कर्ष:

भारत की दंड व्यवस्था एक अधिक मानवीय और भविष्य-उन्मुख दिशा में आगे बढ़ रही है। मॉडल प्रिज़न्स एक्ट, न्यायिक निर्णय और उभरती तकनीकी हस्तक्षेप इस बढ़ती मान्यता को दर्शाते हैं कि न्याय केवल दंड तक सीमित नहीं है यह गरिमा, अधिकारों और परिवर्तन की संभावना को भी समाहित करता है। यदि जेलों को सीखने, कौशल विकास, भावनात्मक उपचार और सामुदायिक पुनर्संलयन के केंद्रों में परिवर्तित किया जाए, तो वे अपराध के चक्र को तोड़ सकती हैं और समाज में सार्थक योगदान दे सकती हैं। चुनौती इन विचारों को निरंतरता, करुणा और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के साथ लागू करने की है।

 

UPSC/PCS मुख्य प्रश्न: भारत की दंड व्यवस्था में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली, डिजिटल प्रशिक्षण तथा डेटा-आधारित पुनर्वास उपकरणों के एकीकरण की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।