सन्दर्भ:
खाद्य सुरक्षा किसी भी राष्ट्र की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक कल्याण का आधार होती है। विश्व स्तर पर बदलते खाद्य पैटर्न, बढ़ती जनसंख्या, तीव्र होती खाद्य आपूर्ति शृंखला, और वैश्विक व्यापार की जटिलताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गुणवत्तायुक्त और सुरक्षित खाद्य तक सार्वभौमिक पहुँच केवल नैतिक दायित्व ही नहीं, बल्कि नीतिगत प्राथमिकता भी है।
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- भारत, जहाँ जनसंख्या 140 करोड़ के आसपास है, के लिए सुरक्षित खाद्य उपलब्ध कराना और उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना विकास के लिए पूर्वापेक्षा है। इसी संदर्भ में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा देशभर में 100 एनएबीएल-मान्यता प्राप्त खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं और विकिरण इकाइयों की स्थापना हेतु प्रस्ताव आमंत्रित करना एक महत्त्वपूर्ण, दूरदर्शी और संरचनात्मक सुधार है। सरकार ने इसके लिए 500 करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया है, जो खाद्य गुणवत्ता परीक्षण अवसंरचना को सुदृढ़ करने हेतु एक ठोस निवेश है।
- भारत, जहाँ जनसंख्या 140 करोड़ के आसपास है, के लिए सुरक्षित खाद्य उपलब्ध कराना और उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना विकास के लिए पूर्वापेक्षा है। इसी संदर्भ में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा देशभर में 100 एनएबीएल-मान्यता प्राप्त खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं और विकिरण इकाइयों की स्थापना हेतु प्रस्ताव आमंत्रित करना एक महत्त्वपूर्ण, दूरदर्शी और संरचनात्मक सुधार है। सरकार ने इसके लिए 500 करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया है, जो खाद्य गुणवत्ता परीक्षण अवसंरचना को सुदृढ़ करने हेतु एक ठोस निवेश है।
खाद्य सुरक्षा: एक बहुआयामी चुनौती:
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- खाद्य सुरक्षा केवल खाद्य उपलब्धता और पहुंच से संबंधित नहीं है; यह खाद्य की पोषणात्मक गुणवत्ता, सुरक्षा, मानक, और उपभोक्ता संरक्षण से भी जुड़ी है। भारत में खाद्य प्रदूषण, मिलावट, कीटनाशक अवशेष, रासायनिक संरक्षक, गलत लेबलिंग, और सप्लाई चेन की कमजोर निगरानी जैसी समस्याएँ लगातार सामने आती रही हैं।
- विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में पैक्ड एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग, और ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक खाद्य उत्पादों में मानकीकरण की कमी, दोनों ही गुणवत्तापूर्ण खाद्य परीक्षण को अनिवार्य बनाते हैं।
- इसी पृष्ठभूमि में खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ नेटवर्क, खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नियामकीय ढांचे को संचालनात्मक दक्षता प्रदान करता है। खाद्य गुणवत्ता परीक्षण के अभाव में उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा, वैश्विक खाद्य व्यापार में प्रतिस्पर्धा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा—तीनों ही चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं।
- खाद्य सुरक्षा केवल खाद्य उपलब्धता और पहुंच से संबंधित नहीं है; यह खाद्य की पोषणात्मक गुणवत्ता, सुरक्षा, मानक, और उपभोक्ता संरक्षण से भी जुड़ी है। भारत में खाद्य प्रदूषण, मिलावट, कीटनाशक अवशेष, रासायनिक संरक्षक, गलत लेबलिंग, और सप्लाई चेन की कमजोर निगरानी जैसी समस्याएँ लगातार सामने आती रही हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा ढांचे में प्रयोगशालाओं की भूमिका:
· खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं खाद्य सुरक्षा तंत्र का आधार हैं। इनकी मुख्य भूमिकाएँ हैं:
1. खाद्य की रासायनिक, जैविक और भौतिक शुद्धता का परीक्षण
2. मानक मापदंडों के अनुसार खाद्य उत्पादों का सत्यापन
3. खतरनाक मिलावट, विषाक्त पदार्थों एवं सूक्ष्मजीव संक्रमण की पहचान
4. उद्योगों और विनिर्माताओं को गुणवत्ता सुधार दिशानिर्देश प्रदान करना
5. निर्यातोन्मुख उत्पादों की वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रमाणन प्रक्रिया में सहायता
· एनएबीएल (National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories) की मान्यता यह सुनिश्चित करती है कि प्रयोगशालाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली का पालन करती हैं।
· इस दिशा में 100 नई प्रयोगशालाओं का लक्ष्य न केवल खाद्य परीक्षण क्षमता का विस्तार करेगा, बल्कि भौगोलिक रूप से विस्तृत राज्यों और दूरस्थ क्षेत्रों में भी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। इससे परीक्षण में विलंब कम होगा और खाद्य उद्योग के लिए समय व लागत दोनों की बचत होगी।
खाद्य उद्योग के लिए प्रोत्साहन:
मंत्रालय द्वारा 500 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय उद्योग जगत, स्टार्ट-अप, अनुसंधान संस्थानों, निजी संगठनों और राज्य सरकारों के लिए अवसर प्रदान करता है। यह सहायता निम्न क्षेत्रों में अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकती है:
· आधुनिक परीक्षण उपकरणों की स्थापना: क्रोमैटोग्राफी, माइक्रोबायोलॉजी, टॉक्सिकोलॉजी, और नैनो-विश्लेषण उपकरण
· प्रशिक्षित मानव संसाधन की उपलब्धता: खाद्य तकनीशियन, लैब विश्लेषक, गुणवत्ता विशेषज्ञ
· अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप इंफ्रास्ट्रक्चर: उन्नत उपकरण, मानकीकृत प्रक्रियाएँ और वैश्विक गुणवत्ता प्रोटोकॉल अपनाकर प्रयोगशालाएँ विश्वस्तरीय परीक्षण क्षमता सुनिश्चित करती हैं।
· विकिरण इकाइयों की स्थापना: भोजन की शैल्फ-लाइफ बढ़ाने, कीटाणु मुक्त करने और निर्यात मानकों को पूरा करने हेतु
यह निवेश भारत को “गुणवत्तायुक्त खाद्य प्रसंस्करण केंद्र” के रूप में उभरने में मदद करेगा, जिससे कृषि आय में वृद्धि, MSMEs की प्रतिस्पर्धात्मकता, और निर्यात क्षमता में उल्लेखनीय सुधार होगा।
खाद्य विकिरण:
भारत में खाद्य विकिरण पर लोगों का संदेह एक बड़ी चुनौती है। आम धारणा है कि विकिरण से खाद्य “हानिकारक” या “रेडियोएक्टिव” हो जाता है, जबकि वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार नियंत्रित विकिरण:
· खाद्य की गुणवत्ता को सुरक्षित रखता है
· सूक्ष्मजीव संक्रमण हटाता है
· फफूंद और कीड़ों के जोखिम को समाप्त करता है
· खाद्य की शैल्फ-लाइफ को बढ़ाता है
FAO, WHO और IAEA इसे एक सुरक्षित और प्रभावी तकनीक के रूप में स्वीकार करते हैं।
इस प्रकार, मंत्रालय द्वारा विकिरण इकाइयों की स्थापना हेतु प्रोत्साहन किसानों, निर्यातकों, तथा प्रसंस्करण उद्योग के लिए एक संरचनात्मक लाभ होगा।

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खाद्य विकिरण सब्जियों और फलों को आयनकारी विकिरण की एक नियंत्रित मात्रा के संपर्क में लाना जो बैक्टीरिया, मोल्ड और कीड़ों को मारता है तथा फल को 'रेडियोधर्मी' या असुरक्षित बनाए बिना निधानी आयु बढ़ाता है। भारत में, खाद्य विकिरण का उपयोग आलू, प्याज, मसाले, आम, अनाज, दलहन और तिलहन जैसी वस्तुओं को संरक्षित और संसाधित करने के लिए किया जाता है। खाद्य विकिरण में, अनुप्रयोग के आधार पर तीन प्रकार के विकिरण स्रोतों, गामा किरणें, एक्स-रे, इलेक्ट्रॉन बीम (ई-बीम), का उपयोग किया जाता है। |
यह कदम क्यों महत्त्वपूर्ण है?
1. खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2006 के लक्ष्यों को गति
FSSAI द्वारा निर्धारित मानकों की निगरानी प्रयोगशाला नेटवर्क के बिना अधूरी है।
2. उपभोक्ता अधिकार संरक्षण
भारत में खाद्य मिलावट से संबंधित शिकायतें लगातार बढ़ती रही हैं; परीक्षण क्षमता में वृद्धि से नियंत्रण संभव होगा।
3. निर्यात प्रतिस्पर्धा में वृद्धि
वैश्विक बाजार में खाद्य उत्पादों को उच्च गुणवत्ता प्रमाणन की आवश्यकता होती है।
o यूरोपीय संघ
o अमेरिका
o गल्फ राष्ट्र
सभी सख्त मानक अपनाते हैं।
4. एमएसएमई और स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम को बढ़ावा
भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र MSMEs पर आधारित है, जिनके पास निजी परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करने की क्षमता नहीं होती।
5. दूरदराज़ क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना
पूर्वोत्तर, पहाड़ी राज्यों, आदिवासी क्षेत्रों में परीक्षण अवसंरचना की कमी परीक्षण में विलंब का मुख्य कारण है।
6. वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहन
विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को अत्याधुनिक परीक्षण उपकरण उपलब्ध होंगे।
संभावित चुनौतियाँ और सुधार:
नीतिगत सुधार तभी प्रभावी होते हैं जब उनके कार्यान्वयन में संरचनात्मक बाधाओं का समाधान किया जाए। कुछ प्रमुख चुनौतियाँ:
1. प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी
उच्च-स्तरीय लैब उपकरणों को संचालित करने के लिए कौशल आधारित प्रशिक्षण आवश्यक है।
2. राज्यों के बीच अवसंरचना का असमान वितरण
कुछ राज्य अत्यधिक लैब-समृद्ध हैं, जबकि कई राज्यों में सुविधाएँ न्यूनतम हैं।
3. उद्योगों की भागीदारी में असमानता
बड़े उद्योग आसानी से निवेश कर सकते हैं, किन्तु छोटे उद्योगों को अतिरिक्त सहायता आवश्यक होगी।
4. संचालन लागत का दीर्घकालिक प्रबंधन
प्रयोगशालाओं की स्थापना जितनी महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण है उनकी निरंतर कार्यक्षमता।
इसलिए निम्न सुधार सुझाए जा सकते हैं:
· राज्य-स्तरीय खाद्य लैब क्लस्टर मॉडल विकसित किया जाए।
· सार्वजनिक–निजी भागीदारी (PPP) में प्रयोगशालाओं का संचालन प्रभावी हो।
· नियामकीय पारदर्शिता और ई-गवर्नेंस आधारित निगरानी प्रणाली विकसित की जाए।
· स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के माध्यम से लैब स्टाफ को प्रशिक्षित किया जाए।
निष्कर्ष:
भारत आज कृषि उत्पादन में विश्व के अग्रणी देशों में से एक है, लेकिन खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता जहां चाहिये, वहां अभी भी सुधार की आवश्यकता है। खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना और विकिरण इकाइयों के लिए वित्तीय सहायता का यह कदम केवल अवसंरचना निर्माण नहीं, बल्कि खाद्य सुरक्षा शासन, कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था, उपभोक्ता संरक्षण, और वैश्विक खाद्य व्यापार को नए स्तर पर ले जाने की दिशा में निर्णायक पहल है।
