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Daily-current-affairs / 04 Dec 2025

अपंग अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता – समावेशी भारत | Dhyeya IAS

अपंग अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता – समावेशी भारत | Dhyeya IAS

प्रस्तावना:

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (3 दिसंबर) मानव गरिमा, समानता और समावेश के वैश्विक आदर्शों का प्रतीक है। भारत ने 1976 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू किए गए इस वैश्विक विमर्श को न केवल अपनाया, बल्कि अपने सामाजिक विकास मॉडल में इसे केन्द्रीय स्थान प्रदान किया। विविधताओं से निर्मित भारतीय समाज में दिव्यांगजन अधिकारों का मुद्दा सामाजिक-आर्थिक न्याय, मानवाधिकार और विकास-नीति, तीनों के संगम पर खड़ा है।

    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, सुगम्य भारत अभियान, यूडीआईडी परियोजना, दिव्य कला मेला और सांकेतिक भाषा के विकास जैसी पहलों ने यह स्पष्ट किया है कि भारत का लक्ष्य केवल कल्याणकारी व्यवस्था बनाना नहीं, बल्कि एक अवरोध-रहित, भेदभाव-रहित और अवसर-संपन्न समाज का निर्माण करना है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 2.68 करोड़ दिव्यांगजन (2.21%) हैं। यह संख्या नीतिगत दृष्टि से इतनी महत्त्वपूर्ण है कि किसी भी राष्ट्रीय विकास रणनीति में उनकी भागीदारी आवश्यक है। इसी जनसांख्यिकीय वास्तविकता ने भारत की दिव्यांगता नीति को कल्याण से अधिकार-आधारित ढांचे की ओर रूपांतरित किया है।

भारत का कानूनी ढांचा:

1. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016:

यह अधिनियम भारत में दिव्यांगता नीति का आधारस्तंभ है। यह 1995 के अधिनियम से आगे बढ़कर 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को मान्यता देता है। इसके प्रावधान

      • शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का विस्तार
      • समावेशी शिक्षा का कानूनन दायित्व
      • सार्वजनिक इमारतों, परिवहन और आईसीटी की अनिवार्य सुगमता
      • केंद्रीय प्रमाणन प्रणाली
      • संस्थागत देखरेख के बजाय सामुदायिक जीवन को बढ़ावा

यह अधिनियम भारत की प्रतिबद्धता को अंतरराष्ट्रीय मानकों, विशेषतः विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) के अनुरूप स्थापित करता है।

2. पुनर्वास और क्षमता-विकास हेतु संस्थागत ढांचा

      • भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) अधिनियम, 1992
         पुनर्वास पेशेवरों के प्रशिक्षण एवं प्रमाणन को मानकीकृत करता है।
      • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999
         ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांगता के लिए एक समर्पित संस्थान की स्थापना।
      • दिव्यांगजन अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए योजना (SIPDA)
         राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPD) अधिनियम के सुचारु क्रियान्वयन हेतु वित्तीय व तकनीकी सहायता।

ये कानून और योजनाएँ दिव्यांगजनों के लिए एक सुदृढ़ कल्याण संरचना तैयार करते हैं जो मात्र सेवाएँ प्रदान नहीं करतीं, बल्कि सशक्तिकरण और भागीदारी पर जोर देती हैं।

Disability Rights towards an Inclusive and Developed India

भारत की प्रमुख नीतिगत पहलें: 

1. सुगम्य भारत अभियान:

3 दिसम्बर 2015 में प्रारंभ यह अभियान तीन क्षेत्रों में सुगमता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है

      • निर्मित परिवेश
      • परिवहन प्रणाली
      • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT)

संशोधित सुगम्य भारत ऐप डिजिटल सुगमता को आगे बढ़ाते हुए सुगमता अभिलक्षण (Accessibility Mapping), शिकायत निवारण, बहुभाषी इंटरफेस और सरकारी योजनाओं की समेकित जानकारी उपलब्ध कराता है। यह भारत की प्रौद्योगिकी समावेशन रणनीति का उदाहरण है।

2. दिव्यांग व्यक्तियों को सहायक उपकरणों की खरीद/फिटिंग हेतु सहायता (ADIP) योजना एवं आर्टिफ़िशियल लिम्ब्स मैन्युफ़ैक्चरिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (ALIMCO):

ADIP योजना (1981) और ALIMCO का कार्य

      • कृत्रिम अंग
      • श्रवण मशीनें
      • व्हीलचेयर
      • आधुनिक सहायक उपकरण

इन सभी तक आर्थिक रूप से वंचित समूहों की पहुंच सुनिश्चित करना।

प्रधानमंत्री दिव्याशा केंद्रों की स्थापना इस पहुंच को स्थानीय स्तर तक विस्तृत करती है।

3. दीनदयाल दिव्यांगजन पुनर्वास योजना (DDRS)

स्वैच्छिक संगठनों को आर्थिक सहायता देकर शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास की सेवाओं का विस्तार किया जाता है। यह सरकारी-नागरिक सहभागिता का एक प्रभावी उदाहरण है।

4. राष्ट्रीय दिव्यांगजन वित्त एवं विकास निगम (NDFDC)

विशेष रूप से:

      • दिव्यांगजन स्वावलंबन योजना (DSY)
      • विशेष माइक्रोफाइनेंस योजना (VMY)

के माध्यम से स्वरोजगार, उद्यमिता और वित्तीय स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया जाता है।

भारत की दिव्यांगता नीति यह मानती है कि अर्थिक सशक्तिकरण समावेश की बुनियाद है।

डिजिटल और शैक्षिक समावेशन:

1. पीएम-दक्ष-DEPwD पोर्टल

यह एक वन-स्टॉप डिजिटल इकोसिस्टम है जो कौशल प्रशिक्षण, रोजगार, जियो-टैग्ड नौकरी रिक्तियों और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों तक आसान पहुंच सुनिश्चित करता है। 250+ स्किल कोर्स, NAP-SDP का कार्यान्वयन, और प्रमुख निजी कंपनियों से जुड़ाव, दिव्यांगजनों के आर्थिक समावेशन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

2. UDID परियोजना: पहचान प्रणाली का एकीकरण

UDID कार्ड के माध्यम से

      • सरकारी योजनाओं तक पारदर्शी पहुंच
      • डुप्लिकेट रिकॉर्ड की समाप्ति
      • ऑनलाइन प्रमाणन व नवीनीकरण
      • राष्ट्रीय स्तर पर रियल-टाइम डेटा

नीति निर्माण और सेवा वितरण दोनों में दक्षता आती है।

3. भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) का संस्थागत विकास

2015 में स्थापित भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) ने भारत में सांकेतिक भाषा आंदोलन को नई दिशा दी है।

प्रमुख उपलब्धियाँ

      • 10,000+ शब्दों वाली भारतीय सांकेतिक भाषा डिक्शनरी
      • 3,189 वीडियो सामग्री वाला भारतीय सांकेतिक भाषा डिजिटल रिपॉजिटरी
      • पीएम ई-विद्या चैनल 31 पर भारतीय सांकेतिक भाषा प्रशिक्षण
      • NCERT पुस्तकों के भारतीय सांकेतिक भाषा अनुवाद का प्रोजेक्ट (2026 तक पूरा होने की संभावना)

यह न केवल सांस्कृतिक और भाषाई समावेशन को बढ़ावा देता है, बल्कि शिक्षा में बराबरी का अवसर सुनिश्चित करता है।

सामाजिक-सांस्कृतिक सशक्तिकरण: कला, उद्यमिता और उत्सवों की भूमिका:

1. दिव्य कला मेला: वोकल फॉर लोकल का समावेशी विस्तार

2025 में आयोजित पटना, वडोदरा और जम्मू संस्करणों में

      • 20 राज्यों का प्रतिनिधित्व
      • दिव्यांग कारीगरों और उद्यमियों के 75+ स्टॉल
      • हस्तशिल्प, पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद, खाद्य सामग्री आदि का प्रदर्शन
      • रोजगार मेले व सहायक उपकरण केंद्र

 दिव्यांगजन आर्थिक गतिविधि के केंद्रीय सहभागी के रूप में उभर रहे हैं।

2. पर्पल फेस्ट 2025

यह भारत का सबसे बड़ा समावेशन महोत्सव है, जहाँ

      • सहायक तकनीक प्रदर्शन
      • सांस्कृतिक कार्यक्रम
      • वैश्विक सांकेतिक भाषा प्रशिक्षण
      • ज्ञान साझा मंच

 भारत को एक समावेशी नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।

नीतिगत विश्लेषण और चुनौतियाँ:

भारत द्वारा किए गए प्रयास व्यापक और बहु-आयामी अवश्य हैं, परन्तु कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां सुधार की आवश्यकता है:

·        सुगमता का वास्तविक क्रियान्वयन: कई सार्वजनिक भवन, परिवहन तंत्र और डिजिटल प्लेटफॉर्म अब भी पूर्ण सुगमता मानकों का पालन नहीं करते।

·        डेटा और नीति में अंतराल:  विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्र UDID कार्यक्रम के बावजूद, कई राज्यों में प्रमाणन और डेटा संग्रह की गति धीमी है।

·        शिक्षा में पूर्ण समावेशन का अभाव: समावेशी कक्षाएं, प्रशिक्षित विशेष शिक्षक और पर्याप्त संसाधन अभी भी चुनौतियाँ हैं।

·        रोजगार में संरचनात्मक बाधाएँ: निजी क्षेत्र में दिव्यांगजनों के रोजगार दर अब भी कम है; सामाजिक पूर्वाग्रह और कार्यस्थल सुविधा का अभाव बड़ी बाधाएँ हैं।

·        ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं का अभाव: सहायक उपकरण, पुनर्वास सेवाएँ और स्क्रीनिंग अक्सर शहरी केंद्रों तक सीमित रहती हैं।

आगे की राह:

·        सुगमता ऑडिट की बाध्यकारी प्रणाली: सभी सार्वजनिक संस्थानों हेतु रियल-टाइम डिजिटल ऑडिट अनिवार्य  होना चाहिए।

·        समावेशी शिक्षा रूपरेखा 2.0: शिक्षक प्रशिक्षण, कक्षा ढांचा और डिजिटल सामग्री का व्यापक विकास आवश्यक है।

·        उद्योग आधारित रोजगार योजनाएँ: कॉर्पोरेट सेक्टर में दिव्यांगजन रोजगार के लिए कर प्रोत्साहन और ठोस निगरानी व्यवस्था विकसित करनी चाहिए।

·        सहायक तकनीक नवाचार को बढ़ावा: स्टार्टअप्स और एमएसएमई को टैक्स छूट, अनुसंधान और विकास अनुदान और सरकारी प्रोक्योरमेंट में प्राथमिकता दी जाए।

·        सांस्कृतिक और खेल गतिविधियों में व्यापक भागीदारी: दिव्यांग खेल मिशन और समावेशी कला पहल जैसे नए राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रारंभ किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

दिव्यांगजन अधिकारों के लिए भारत की यात्रा केवल नीतियों का विस्तार नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण के परिवर्तन की कहानी भी है। कानूनी ढांचे, डिजिटल नवाचार, शिक्षा सुधार, वित्तीय समावेशन और सांस्कृतिक सशक्तिकरण इन सभी के संयुक्त प्रभाव से भारत एक ऐसी दिशा में बढ़ रहा है जहां हर नागरिक बाधा रहित, गरिमापूर्ण और सक्रिय जीवन जी सके। एक राष्ट्र तभी पूर्ण विकसित कहलाता है जब उसकी प्रगति के केंद्र में सबसे वंचित व्यक्ति भी समान अवसर प्राप्त करे। भारत के प्रयास दर्शाते हैं कि देश अब कल्याण के मॉडल से आगे बढ़कर अधिकार, क्षमता और भागीदारी-आधारित समावेशन की ओर बढ़ रहा है। भारत की यह यात्रा एक ऐसी समाज-व्यवस्था का निर्माण कर रहा है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति सम्मान, समानता और अवसर का अधिकारी है।

 

UPSC/PCS मुख्य प्रश्न:  भारत में सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign) के कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? डिजिटल और भौतिक दोनों स्तरों पर सुगमता सुनिश्चित करने हेतु उपाय सुझाइए।