संदर्भ:
पाकिस्तान द्वारा पहलगाम में हालिया उकसावे पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया ने क्षेत्रीय भू-राजनीति की जटिल और बदलती गतिशीलताओं पर नई रोशनी डाली है। यह केवल एक सैन्य प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि भारतीय विदेश और सुरक्षा नीति के लिए एक निर्णायक मोड़ का संकेत है। यह स्थिति इस बात को रेखांकित करती है कि भारत को बदलते यथार्थों, विशेष रूप से गहराते चीन-पाकिस्तान गठबंधन, अमेरिका की भूमिका में परिवर्तन और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था, के मद्देनज़र अपनी क्षेत्रीय रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करना होगा।
उभरता हुआ चीन-पाकिस्तान गठबंधन
चीन-पाकिस्तान संबंध अब केवल एक पारंपरिक रणनीतिक साझेदारी नहीं रह गए हैं, यह एक व्यावहारिक और सैन्य-आधारित गठबंधन बन चुका है। यह समीकरण भारत के लिए चिंताजनक है क्योंकि:
• परंपरागत समानता: भारत की बड़ी और उन्नत पारंपरिक सैन्य शक्ति के बावजूद, परमाणु सीमा के भीतर सीमित लेकिन उच्च जोखिम वाले संघर्षों में यह बढ़त कम हो जाती है। पाकिस्तान, व्यवहारिक दृष्टिकोण से, अब लगभग समकक्ष प्रतिस्पर्धी बन चुका है।
• चीनी सैन्य समर्थन: चीन ने अपने सैन्य क्षेत्र में भारी निवेश किया है, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, खुफिया तंत्र, लंबी दूरी की मिसाइलें और उन्नत विमान। इन क्षमताओं में से कई अब पाकिस्तान को उपलब्ध कराई गई हैं, जिससे उसकी पारंपरिक सैन्य शक्ति और सशक्त हो गई है।
o रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान द्वारा भारतीय राफेल लड़ाकू विमानों को गिराने का दावा करने से ठीक पहले, चीन ने उपग्रह और वायु-रक्षा सहायता प्रदान की थी।
o पाकिस्तान ने कथित तौर पर चीनी PL-15 मिसाइल का युद्ध में पहली बार उपयोग किया और चीन के J-35A स्टील्थ जेट के त्वरित अधिग्रहण की योजना की घोषणा की।
o पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने चीनी J-10C जेट की तैनाती की पुष्टि की और संघर्ष के दौरान चीनी राजदूत से निकट समन्वय की बात कही।
• भविष्य की आशंकाएँ: चीन का बढ़ता समर्थन पाकिस्तान को निगरानी, वायु शक्ति और मिसाइल तकनीक जैसे क्षेत्रों में भारत की बराबरी या उससे आगे निकलने में सक्षम बना सकता है।
o निवेश का पैमाना: अब तक 46 अरब डॉलर से अधिक का निवेश ग्वादर बंदरगाह और कराची को शिनजियांग से जोड़ने वाली आधारभूत संरचना, ऊर्जा और संपर्क परियोजनाओं में किया गया है।
o CPEC 2.0: जनवरी में घोषित इस परियोजना के दूसरे चरण में औद्योगीकरण, कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और आजीविका से जुड़े कार्यक्रम शामिल हैं।
त्रिपक्षीय कूटनीति: चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान
साथ ही, चीन क्षेत्रीय कूटनीति में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, विशेष रूप से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मध्यस्थता के माध्यम से:
• पृष्ठभूमि: पाकिस्तान ने अफगान तालिबान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के आतंकियों को शरण देने का आरोप लगाया है, जो 2024 में हमलों में 70% वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। अफगानिस्तान ने इन आरोपों से इनकार किया है।
• चीनी मध्यस्थता: मई 2025 में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक में 2023 में स्थापित संवाद तंत्र को पुनर्जीवित किया गया। इसके बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान ने सहमति व्यक्त की:
o राजनयिक मिशनों की पुनःस्थापना।
o CPEC का विस्तार अफगानिस्तान तक।
भारत के सैन्य विकल्प और सीमाएँ
• विविध रक्षा साझेदारियाँ: पश्चिमी देशों की तुलना में, रूस के साथ भारत का रक्षा सहयोग कम राजनीतिक शर्तों से बंधा हुआ है। इससे भारत को उन्नत तकनीकी आयात के साथ अपनी स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को विकसित करने में मदद मिलती है।
• परमाणु और पारंपरिक प्रतिरोधक क्षमता: भारत की रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता, परमाणु और पारंपरिक दोनों, मज़बूत और स्थिर है, जो बड़े स्तर के संघर्षों से निपटने में सक्षम है।
हालाँकि, चीन या पाकिस्तान के साथ हथियारों की दौड़ में पड़ना न तो व्यावहारिक है और न ही रणनीतिक। असली चुनौती विषम युद्ध (asymmetric warfare) से है, जैसे आतंकवादी हमले, साइबर हमले और अन्य परंपरागत न होने वाले खतरे, विशेष रूप से पाकिस्तान की ओर से। यहां भारत को संयमित लागत थोपने की रणनीति अपनानी होगी, जहाँ प्रतिक्रियाएँ इस प्रकार हों कि वास्तविक क्षति पहुँचाई जा सके, बिना पूर्ण युद्ध को आमंत्रित किए।
नीतिनिर्धारकों के लिए चुनौतियाँ-
• अमेरिका के साथ संरेखण: बीते दशक में भारत ने चीन के विरुद्ध संतुलन के लिए अमेरिका की ओर झुकाव बढ़ाया। लेकिन इस चीन-केंद्रित रणनीति ने बीजिंग को पाकिस्तान के करीब ला दिया। साथ ही, अमेरिका की दक्षिण एशिया में चीन से सीधा टकराव लेने की कोई विशेष रुचि नहीं रही, उसकी प्राथमिकता हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की समुद्री भूमिका रही है।
o अतीत में अमेरिका की मध्यस्थता से हुए संघर्षविरामों को स्वीकार किया गया, लेकिन पाकिस्तान को F-16 बेचने और उसके खनिज संसाधनों में अमेरिकी रुचि से चीन की रणनीतिक ताकत का कोई प्रभावी मुकाबला नहीं हुआ।
• उपेक्षित क्षेत्रीय रणनीति: अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती निकटता क्षेत्रीय प्रभाव में नहीं बदल पाई। इसके उलट, चीन और अमेरिका दोनों ने पाकिस्तान की क्षेत्रीय भूमिका, विशेष रूप से पाकिस्तानी सेना की केंद्रीय भूमिका, को मौन स्वीकृति दे दी।
• चूके हुए अवसर: भारत को पश्चिमी जगत के साथ संरेखण से रणनीतिक लाभ की आशा थी, लेकिन इसके परिणाम मिश्रित रहे। पहलगाम संकट के दौरान न तो चीन और न ही अमेरिका ने भारत के पक्ष में स्पष्ट रुख अपनाया।
रणनीति में पुनर्संतुलन
1. चीन के साथ रचनात्मक संवाद
चीन की प्रमुख सुरक्षा प्राथमिकता पूर्व में, ताइवान जलडमरूमध्य और पश्चिमी प्रशांत में केंद्रित है। यह भारत के लिए एक अवसर है। भारत 2024 के राजनयिक सुधार पर आगे बढ़ते हुए चीन के साथ संबंध सामान्य करने की रूपरेखा तैयार कर सकता है। उद्देश्य अंधविश्वास नहीं, बल्कि शत्रुता कम करना और पाकिस्तान को चीन का क्षेत्रीय मोहरा बनने से रोकना होना चाहिए।
2. अमेरिका से यथार्थवादी अपेक्षाएँ
चाहे अमेरिका में कोई भी प्रशासन हो, ट्रंप हो या अन्य, वह दक्षिण एशिया में चीन से सीधे टकराने की संभावना नहीं रखता। भारत को यह धारणा छोड़नी चाहिए कि अमेरिकी समर्थन से उसे क्षेत्रीय वर्चस्व अपने आप प्राप्त हो जाएगा।
3. स्वदेशी शक्ति का निर्माण
रणनीतिक प्रभाव हासिल करने का एकमात्र स्थायी मार्ग घरेलू ताकत, औद्योगिक क्षमता, उच्च प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन और आर्थिक पैमाने, के माध्यम से है। यही वह तरीका है जिससे बड़ी शक्तियाँ वास्तविक प्रभाव हासिल करती हैं। बाहरी सहयोग सहायक हो सकते हैं, लेकिन वे आंतरिक क्षमताओं का विकल्प नहीं हो सकते।
निष्कर्ष
भारत को पाकिस्तान सेना के साथ एक सतत, निम्न-स्तरीय संघर्ष में उलझने या अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता में परोक्ष भूमिका निभाने से बचना चाहिए। वर्तमान संकट भारत के लिए अपनी ग्रैंड स्ट्रैटेजी को बहुध्रुवीय विश्व के अनुकूल ढालने का एक दुर्लभ अवसर है। इसका अर्थ है:
• भू-राजनीतिक शॉर्टकट से परहेज़।
• घरेलू क्षमताओं में निवेश।
• चीन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण।
• बाहरी संधियों की सीमाओं को समझना।
भारत का भविष्य एक बड़ी शक्ति के रूप में तात्कालिक लाभों पर नहीं, बल्कि यथार्थवाद, लचीलापन और क्षेत्रीय बुद्धिमत्ता पर आधारित दीर्घकालिक, परिष्कृत रणनीति पर निर्भर करेगा।
मुख्य प्रश्न: चीन की अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बढ़ती कूटनीतिक भूमिका भारत की दक्षिण एशिया में रणनीतिक गणनाओं को कैसे जटिल बनाती है? चर्चा करें। इस संदर्भ में भारत की अपनी पड़ोसी नीति का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। |