सन्दर्भ:
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम लंबे समय से अपनी वैज्ञानिक दक्षता और लागत-कुशलता के लिए जाना जाता रहा है। हाल ही में 24 दिसंबर 2025 को ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (ब्लूबर्ड-6) संचार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण, अंतरिक्ष के साथ भारत के जुड़ाव के स्वरूप में एक निर्णायक परिवर्तन को रेखांकित करता है, जिसमें राज्य-नेतृत्व वाली वैज्ञानिक पहल से आगे बढ़कर भारत अब एक व्यावसायिक रूप से प्रतिस्पर्धी और भू-राजनीतिक रूप से प्रभावशाली अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहा है। श्रीहरिकोटा से एलवीएम3-एम6 रॉकेट के माध्यम से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा निष्पादित यह मिशन मात्र एक नियमित उपग्रह प्रक्षेपण नहीं है।
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- यह वैश्विक स्तर पर भारी वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण और अगली पीढ़ी की अंतरिक्ष-आधारित कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भारत के आगमन का संकेत देता है। ब्लूबर्ड-6 मिशन को विशिष्ट बनाने वाला तत्व केवल इसकी तकनीकी सफलता नहीं है, बल्कि वह पारिस्थितिकी तंत्र है जिसका यह प्रतिनिधित्व करता है, एक ऐसा तंत्र जिसमें सार्वजनिक क्षमता, निजी उद्यम, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक महत्वाकांक्षा एक साथ मिल रहे हैं।
- यह वैश्विक स्तर पर भारी वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण और अगली पीढ़ी की अंतरिक्ष-आधारित कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भारत के आगमन का संकेत देता है। ब्लूबर्ड-6 मिशन को विशिष्ट बनाने वाला तत्व केवल इसकी तकनीकी सफलता नहीं है, बल्कि वह पारिस्थितिकी तंत्र है जिसका यह प्रतिनिधित्व करता है, एक ऐसा तंत्र जिसमें सार्वजनिक क्षमता, निजी उद्यम, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक महत्वाकांक्षा एक साथ मिल रहे हैं।
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ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह:
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- एएसटी स्पेसमोबाइल इनकारपोरेशन द्वारा विकसित ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह अगली पीढ़ी के ऐसे उपग्रह समूह का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वैश्विक संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना है। लगभग 6,500 किलोग्राम वज़न वाला ब्लूबर्ड-6 इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए गए अब तक के सबसे भारी वाणिज्यिक उपग्रहों में से एक है, जो भारत की प्रक्षेपण प्रणालियों की परिपक्वता और मजबूती को दर्शाता है। यह उपग्रह अंतरिक्ष से सीधे साधारण स्मार्टफ़ोन तक सेल्युलर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए अभिकल्पित है, जिससे विशेष ग्राउंड टर्मिनल या अवसंरचना की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- ब्लूबर्ड-6 उपग्रह की एक प्रमुख विशेषता इसका विशाल फेज़्ड-ऐरे एंटीना तंत्र है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 2,400 वर्ग फ़ुट है। ये उन्नत एंटीना व्यापक भौगोलिक क्षेत्रों में निरंतर और उच्च-गति कनेक्टिविटी सक्षम बनाते हैं, विशेषकर उन दूरस्थ, ग्रामीण और वंचित इलाक़ों में जहाँ स्थलीय नेटवर्क कमज़ोर या अनुपस्थित हैं। अंतरिक्ष से सीधे उपकरण तक संचार को संभव बनाकर, ब्लूबर्ड उपग्रह समूह वैश्विक डिजिटल विभाजन को पाटने का लक्ष्य रखता है तथा आपातकालीन संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और आपदा प्रतिक्रिया जैसी आवश्यक सेवाओं को समर्थन देता है।
- एएसटी स्पेसमोबाइल इनकारपोरेशन द्वारा विकसित ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह अगली पीढ़ी के ऐसे उपग्रह समूह का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वैश्विक संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना है। लगभग 6,500 किलोग्राम वज़न वाला ब्लूबर्ड-6 इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए गए अब तक के सबसे भारी वाणिज्यिक उपग्रहों में से एक है, जो भारत की प्रक्षेपण प्रणालियों की परिपक्वता और मजबूती को दर्शाता है। यह उपग्रह अंतरिक्ष से सीधे साधारण स्मार्टफ़ोन तक सेल्युलर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए अभिकल्पित है, जिससे विशेष ग्राउंड टर्मिनल या अवसंरचना की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
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एलवीएम-3 रॉकेट: भारत की भारी-वहन क्षमता का आधार:
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- ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह की सफल तैनाती इसरो के सबसे शक्तिशाली परिचालन प्रक्षेपण यान एलवीएम-3 के माध्यम से संभव हुई, जिसे पहले जीएसएलवी मार्क-3 के नाम से जाना जाता था। एलवीएम-3 एक त्रि-चरणीय, सर्व-मौसम रॉकेट है, जिसमें ठोस, द्रव और क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियाँ सम्मिलित हैं। यह निम्न पृथ्वी कक्षा में लगभग 8,000 किलोग्राम तथा भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में लगभग 4,000 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने में सक्षम है, जिससे यह भारत की भारी-वहन आवश्यकताओं का केंद्रीय आधार बनता है।
- एलवीएम-3 ने चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और वनवेब उपग्रहों के कई बैचों सहित अनेक उच्च-प्रोफ़ाइल अभियानों के माध्यम से अपनी विश्वसनीयता सिद्ध की है। यह भारत के महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान के लिए नामित प्रक्षेपण यान भी है। ब्लूबर्ड-6 जैसे जटिल और भारी वाणिज्यिक पेलोड का सफल प्रक्षेपण एलवीएम-3 को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रक्षेपण मंच के रूप में और अधिक सुदृढ़ करता है।
- ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह की सफल तैनाती इसरो के सबसे शक्तिशाली परिचालन प्रक्षेपण यान एलवीएम-3 के माध्यम से संभव हुई, जिसे पहले जीएसएलवी मार्क-3 के नाम से जाना जाता था। एलवीएम-3 एक त्रि-चरणीय, सर्व-मौसम रॉकेट है, जिसमें ठोस, द्रव और क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियाँ सम्मिलित हैं। यह निम्न पृथ्वी कक्षा में लगभग 8,000 किलोग्राम तथा भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में लगभग 4,000 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने में सक्षम है, जिससे यह भारत की भारी-वहन आवश्यकताओं का केंद्रीय आधार बनता है।
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इसरो की वाणिज्यिक शाखाएँ: एंट्रिक्स और एनएसआईएल:
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- वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत की बढ़ती उपस्थिति इसरो के अंतर्गत दो प्रमुख वाणिज्यिक संस्थाओं द्वारा संचालित है। पहली है एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड, जिसकी स्थापना 1992 में इसरो की मूल वाणिज्यिक एवं विपणन शाखा के रूप में की गई थी। एंट्रिक्स विश्व स्तर पर इसरो की मौजूदा क्षमताओं—जैसे प्रक्षेपण सेवाएँ, उपग्रह ट्रांसपोंडर, दूरसंवेदी आँकड़े और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण—का प्रचार-प्रसार करती है।
- दूसरी और अपेक्षाकृत नई संस्था है न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड, जिसकी स्थापना 2019 में अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों के तहत की गई। एनएसआईएल अधिक व्यापक भूमिका निभाती है, जिसमें उद्योग के माध्यम से उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण सेवाएँ और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक अनुबंधों का निष्पादन शामिल है। यह निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम बनाने, औद्योगिक क्षमता बढ़ाने और भारत को सरकारी-प्रधान अंतरिक्ष कार्यक्रम से वाणिज्यिक रूप से प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र में रूपांतरित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
- ब्लूबर्ड-6 मिशन एनएसआईएल की विकसित होती भूमिका का प्रमुख उदाहरण है, जहाँ भारत केवल प्रक्षेपण सेवा प्रदाता नहीं, बल्कि वाणिज्यिक, कूटनीतिक और औद्योगिक उद्देश्यों को एक ही मिशन में समेकित करता है।
- वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत की बढ़ती उपस्थिति इसरो के अंतर्गत दो प्रमुख वाणिज्यिक संस्थाओं द्वारा संचालित है। पहली है एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड, जिसकी स्थापना 1992 में इसरो की मूल वाणिज्यिक एवं विपणन शाखा के रूप में की गई थी। एंट्रिक्स विश्व स्तर पर इसरो की मौजूदा क्षमताओं—जैसे प्रक्षेपण सेवाएँ, उपग्रह ट्रांसपोंडर, दूरसंवेदी आँकड़े और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण—का प्रचार-प्रसार करती है।
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ब्लूबर्ड-6 प्रक्षेपण के रणनीतिक निहितार्थ:
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- रणनीतिक दृष्टि से, एक उन्नत अमेरिकी वाणिज्यिक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में भारत-अमेरिका सहयोग को रेखांकित करता है। अंतरिक्ष सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरा है, जिसमें उपग्रह प्रक्षेपण, नौवहन प्रणालियाँ, पृथ्वी अवलोकन और गहन अंतरिक्ष अन्वेषण सम्मिलित हैं। इतनी जटिलता वाले मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर भारत अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए एक विश्वसनीय और भरोसेमंद प्रक्षेपण साझेदार के रूप में अपनी साख मज़बूत करता है।
- यह मिशन स्थापित वैश्विक प्रक्षेपण प्रदाताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने की भारत की तत्परता का भी संकेत देता है, जहाँ किफ़ायती, भरोसेमंद और तकनीकी रूप से उन्नत समाधान प्रस्तुत किए जाते हैं। इससे भारत की भू-राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ होती है और एक उत्तरदायी अंतरिक्ष राष्ट्र के रूप में उसकी भूमिका और मज़बूत होती है।
- रणनीतिक दृष्टि से, एक उन्नत अमेरिकी वाणिज्यिक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में भारत-अमेरिका सहयोग को रेखांकित करता है। अंतरिक्ष सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरा है, जिसमें उपग्रह प्रक्षेपण, नौवहन प्रणालियाँ, पृथ्वी अवलोकन और गहन अंतरिक्ष अन्वेषण सम्मिलित हैं। इतनी जटिलता वाले मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर भारत अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए एक विश्वसनीय और भरोसेमंद प्रक्षेपण साझेदार के रूप में अपनी साख मज़बूत करता है।
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आर्थिक और वाणिज्यिक महत्व:
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- आर्थिक दृष्टि से, ब्लूबर्ड-6 मिशन भारत की वाणिज्यिक अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को बड़ा प्रोत्साहन देता है। एनएसआईएल के माध्यम से भारत उच्च-मूल्य अंतरराष्ट्रीय अनुबंध आकर्षित कर सकता है, विदेशी राजस्व अर्जित कर सकता है और अंतरिक्ष आपूर्ति शृंखला में रोज़गार तथा औद्योगिक भागीदारी का विस्तार कर सकता है। भारतीय कंपनियों को निर्माण, परीक्षण, एकीकरण और सहायक सेवाओं से जुड़े अवसर प्राप्त होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, यह मिशन भारत को तीव्र गति से बढ़ती वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था—विशेषकर निम्न पृथ्वी कक्षा आधारित ब्रॉडबैंड उपग्रह समूहों—में बड़ा हिस्सा प्राप्त करने की स्थिति में रखता है। विश्व-भर में उपग्रह-आधारित इंटरनेट कनेक्टिविटी की बढ़ती माँग के बीच, बड़े और उन्नत संचार उपग्रह प्रक्षेपित करने की भारत की क्षमता उसे मज़बूत प्रतिस्पर्धी स्थिति प्रदान करती है।
- आर्थिक दृष्टि से, ब्लूबर्ड-6 मिशन भारत की वाणिज्यिक अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को बड़ा प्रोत्साहन देता है। एनएसआईएल के माध्यम से भारत उच्च-मूल्य अंतरराष्ट्रीय अनुबंध आकर्षित कर सकता है, विदेशी राजस्व अर्जित कर सकता है और अंतरिक्ष आपूर्ति शृंखला में रोज़गार तथा औद्योगिक भागीदारी का विस्तार कर सकता है। भारतीय कंपनियों को निर्माण, परीक्षण, एकीकरण और सहायक सेवाओं से जुड़े अवसर प्राप्त होते हैं।
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भारत का उभरता अंतरिक्ष वाणिज्यीकरण पारिस्थितिकी तंत्र:
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- इसरो के नेतृत्व वाले सरकारी-प्रधान मॉडल से एक जीवंत, निजी क्षेत्र-संचालित अर्थव्यवस्था की ओर भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र एक गहरे परिवर्तन से गुजर रहा है। वर्ष 2022 में लगभग 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 2033 तक लगभग 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिसका लक्ष्य वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार का 8 से 10 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करना है। यह तीव्र वृद्धि नीतिगत सुधारों, स्टार्ट-अप नवाचार, वैश्विक निवेश और डाउनस्ट्रीम अनुप्रयोगों के विस्तार से प्रेरित है।
- इस परिवर्तन का एक प्रमुख चालक भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 है, जिसने निजी भागीदारी के द्वार खोले, कई क्षेत्रों में शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी और गैर-सरकारी इकाइयों के लिए स्पष्ट नियामक ढाँचा प्रदान किया। इन सुधारों से निजी पूँजी प्रवाह और नवाचार को बल मिला है। परिणामस्वरूप, भारत में अब 400 से अधिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप सक्रिय हैं, जो प्रक्षेपण सेवाओं, उपग्रह निर्माण, पृथ्वी अवलोकन, आँकड़ा विश्लेषण और अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों में कार्यरत हैं। पिक्सेल, स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस जैसी कंपनियाँ भारत की उभरती निजी प्रक्षेपण और उपग्रह क्षमताओं का उदाहरण हैं। वहीं, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र और एनएसआईएल जैसे सरकारी सहयोगी संस्थान अनुमोदन, अवसंरचना पहुँच और उद्योग सहयोग को सुगम बनाते हैं, जबकि नए उद्यम पूँजी कोष और वैश्विक निवेशक इस वृद्धि को और गति दे रहे हैं।
- इसरो के नेतृत्व वाले सरकारी-प्रधान मॉडल से एक जीवंत, निजी क्षेत्र-संचालित अर्थव्यवस्था की ओर भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र एक गहरे परिवर्तन से गुजर रहा है। वर्ष 2022 में लगभग 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 2033 तक लगभग 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिसका लक्ष्य वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार का 8 से 10 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करना है। यह तीव्र वृद्धि नीतिगत सुधारों, स्टार्ट-अप नवाचार, वैश्विक निवेश और डाउनस्ट्रीम अनुप्रयोगों के विस्तार से प्रेरित है।
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प्रमुख क्षेत्र और गतिविधियाँ:
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- भारत की वाणिज्यिक अंतरिक्ष वृद्धि कई क्षेत्रों में फैली हुई है। विनिर्माण क्षेत्र में निजी कंपनियाँ उपग्रहों, उपप्रणालियों और प्रक्षेपण यान घटकों का निर्माण बढ़ा रही हैं। प्रक्षेपण सेवाओं में स्टार्ट-अप छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यानों जैसे किफ़ायती समाधान विकसित कर रहे हैं, जिससे अंतरिक्ष तक पहुँच सरल हो रही है।
- अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोग भी एक प्रमुख विकास क्षेत्र हैं। उपग्रह आँकड़े कृषि, जल संसाधन प्रबंधन, आपदा राहत, शहरी नियोजन, जलवायु निगरानी और राष्ट्रीय सुरक्षा में सहायक हैं। भारत अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग जैसे अभियानों और दीर्घकालिक राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन योजनाओं के माध्यम से उच्च-स्तरीय क्षमताओं को भी आगे बढ़ा रहा है, जो उसकी बढ़ती तकनीकी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
- भारत की वाणिज्यिक अंतरिक्ष वृद्धि कई क्षेत्रों में फैली हुई है। विनिर्माण क्षेत्र में निजी कंपनियाँ उपग्रहों, उपप्रणालियों और प्रक्षेपण यान घटकों का निर्माण बढ़ा रही हैं। प्रक्षेपण सेवाओं में स्टार्ट-अप छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यानों जैसे किफ़ायती समाधान विकसित कर रहे हैं, जिससे अंतरिक्ष तक पहुँच सरल हो रही है।
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निष्कर्ष:
एलवीएम-3 एम-6 के माध्यम से ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (ब्लूबर्ड-6) संचार उपग्रह का प्रक्षेपण भारत के विकसित होते अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र की एक निर्णायक उपलब्धि है। यह इसरो की भारी-वहन क्षमता, एनएसआईएल की बढ़ती वाणिज्यिक भूमिका और भारत की विस्तारित अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को प्रदर्शित करता है। व्यापक रूप से, यह भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों की सफलता, निजी उद्यम के उदय और अगली पीढ़ी के उपग्रह संचार तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोगों में नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा को प्रतिबिंबित करता है।
| UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न: ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (ब्लूबर्ड-6) संचार उपग्रह का प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक गुणात्मक परिवर्तन को दर्शाता है। इस कथन के आलोक में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के वाणिज्यीकरण, निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका तथा इसके रणनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण कीजिए। |

