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Daily-current-affairs / 22 Dec 2025

जैव-आतंकवाद और जैव-सुरक्षा: भारत की आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में जैविक हथियार सम्मेलन की प्रासंगिकता

जैव-आतंकवाद और जैव-सुरक्षा: भारत की आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में जैविक हथियार सम्मेलन की प्रासंगिकता

सन्दर्भ:

जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) को वैश्विक स्तर पर जैविक हथियारों के निषेध की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है। वर्ष 2025 जैविक हथियार सम्मेलन (Biological Weapons Convention – BWC) की 50वीं वर्षगांठ ऐसे समय में आई है जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तीव्र प्रगति के साथ-साथ सुरक्षा चुनौतियाँ भी जटिल होती जा रही हैं। यह एक ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य जैविक हथियारों का पूर्ण उन्मूलन करना है। इस अवसर को चिह्नित करने के लिए हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक उच्चस्तरीय कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री ने गंभीर चिंता को रेखांकित किया कि विश्व अभी भी जैव-आतंकवाद से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं है तथा गैर-राज्य तत्वों से उत्पन्न खतरा निरंतर बढ़ रहा है। आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी, सिंथेटिक बायोलॉजी तथा दोहरे उपयोग (dual-use) अनुसंधान के  तीव्र प्रगति ने जैविक हथियार के खतरे की प्रकृति को बदल दिया है, जिससे अधिक सशक्त, समन्वित वैश्विक जैव-सुरक्षा ढाँचे तथा सक्रिय अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता उत्पन्न हुई है।

जैव-आतंकवाद: उभरता हुआ खतरा

इंटरपोल (INTERPOL) जैव-आतंकवाद को रोग, भय या राजनीतिक दबाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से जैविक एजेंटों या विषाक्त पदार्थों के जानबूझकर उपयोग करने के रूप में परिभाषित करता है। यह कई विशिष्ट चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है:

      • उच्च जनहानि की संभावना: तीव्र प्रसार सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर अत्यधिक दबाव डाल सकता है।
      • पहचान और दोषारोपण में कठिनाई: जैविक हमले प्रायः प्राकृतिक प्रकोप जैसे प्रतीत होते हैं।
      • द्वि-उपयोग अनुसंधान के जोखिम: जीन संपादन और सिंथेटिक बायोलॉजी में प्रगति से दुरुपयोग की संभावना बढ़ती है।
      • कम लागत, उच्च प्रभाव की प्रकृति: जैविक हथियार परमाणु या रासायनिक विकल्पों की तुलना में कहीं अधिक सस्ते होते हैं।
      • मनोवैज्ञानिक और आर्थिक व्यवधान: घबराहट और दुष्प्रचार समाज और अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकते हैं।

कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर प्रकोप पहचान, प्रतिक्रिया और समन्वय की गंभीर कमजोरियों को उजागर किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि अत्यधिक संक्रामक रोगजनकों का प्रबंधन कितना चुनौतीपूर्ण है।

जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) के बारे में:

      • जैविक हथियार सम्मेलन, जिसका औपचारिक नाम बैक्टीरियोलॉजिकल (जैविक) एवं विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन और भंडारण के निषेध तथा उनके विनाश पर सम्मेलनहै, एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो जैविक एवं विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, हस्तांतरण, भंडारण और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है।
      • इस सम्मेलन की एक विशिष्ट विशेषता अनुच्छेद-I के अंतर्गत निहित सामान्य उद्देश्य मानदंड (General Purpose Criterion) है, जिसके तहत किसी विशिष्ट एजेंट या प्रौद्योगिकी को सूचीबद्ध करने के बजाय उन सभी जैविक एजेंटों, विषाक्त पदार्थों और संबंधित सामग्री पर प्रतिबंध लगाया गया है जिनका कोई वैध शांतिपूर्ण, सुरक्षात्मक या निवारक उपयोग नहीं है। यह लचीला और प्रौद्योगिकी-निरपेक्ष दृष्टिकोण सम्मेलन को तीव्र वैज्ञानिक प्रगति के युग में भी प्रासंगिक बनाए रखता है।
      • BWC को 1972 में हस्ताक्षर के लिए लाया गया और यह 1975 में प्रभाव में आया। भारत ने इसे 1974 में अनुमोदित किया था। सम्मेलन के प्रावधानों को वैज्ञानिक, तकनीकी और सुरक्षा संबंधी परिवर्तनों के अनुरूप बनाए रखने के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में समीक्षा सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। महत्वपूर्ण रूप से, BWC 1925 के जिनेवा प्रोटोकॉल का पूरक है, जिसने केवल जैविक हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित किया था, न कि उनके विकास या भंडारण को।
      • एक व्यापक निषेध व्यवस्था स्थापित कर BWC हथियारों के सामूहिक विनाश की एक पूरी श्रेणी को समाप्त करने वाली पहली बहुपक्षीय संधि बनी।

जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) की प्रमुख विशेषताएँ:

      • जैविक एवं विषैले हथियारों की परिभाषा: जैविक हथियारों को ऐसे सूक्ष्मजीवों (जैसे वायरस, बैक्टीरिया और फफूँद) या विषाक्त पदार्थों के रूप में परिभाषित किया गया है जिन्हें मनुष्यों, पशुओं या पौधों में रोग या मृत्यु उत्पन्न करने के लिए जानबूझकर प्रयोग किया जाता है।
      • सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) श्रेणी पर व्यापक प्रतिबंध: BWC हथियारों के सामूहिक विनाश की एक संपूर्ण श्रेणी पर प्रतिबंध लगाने वाली पहली संधि है, जिसने भविष्य के हथियार नियंत्रण ढाँचों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया। सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) वे हथियार हैं जो बड़े पैमाने पर जनसंहार और विनाश करने की क्षमता रखते हैं, जिनमें परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियार शामिल हैं।
      • गतिविधियों पर प्रतिबंध: यह जैविक हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, भंडारण, हस्तांतरण और उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
      • शांतिपूर्ण सहयोग का संवर्धन: सम्मेलन चिकित्सा, कृषि, जन-स्वास्थ्य और वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है तथा इस सिद्धांत को सुदृढ़ करता है कि जैव-विज्ञान का उपयोग जीवन के लिए होना चाहिए, न कि विनाश के लिए।

इन प्रावधानों के माध्यम से BWC जैविक विज्ञान के दुरुपयोग के विरुद्ध एक सशक्त मानकात्मक ढाँचा स्थापित करता है।

Biological Weapons Convention (BWC) from India’s Internal Security Perspective

भारत और जैविक हथियार सम्मेलन:

      • भारत ने जैविक हथियार सम्मेलन के प्रावधान को घरेलू स्तर पर लागू करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं, जो वैश्विक जैव-सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। भारत के नियामक ढाँचे के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
        • खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण से संबंधित नियम, 1989
        • सामूहिक विनाश के हथियार और उनकी डिलीवरी प्रणालियाँ (अवैध गतिविधियों का निषेध) अधिनियम, 2005
        • विशेष रसायन, जीव, सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकियाँ (SCOMET) सूची के अंतर्गत निर्यात नियंत्रण
      • ये उपाय अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुपालन, द्वि-उपयोग अनुसंधान के विनियमन और राष्ट्रीय जैव-सुरक्षा तैयारी को सुदृढ़ करते हैं। भारत BWC मंचों में भी सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है और सिंथेटिक बायोलॉजी तथा उभरती जैव-प्रौद्योगिकियों से उत्पन्न चुनौतियों को संबोधित करने के लिए संधि तंत्र के आधुनिकीकरण की लगातार वकालत करता रहा है।

जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) में अंतराल और सीमाएँ:

अपनी अग्रणी भूमिका के बावजूद, BWC में कुछ संरचनात्मक सीमाएँ विद्यमान हैं:

      • सत्यापन तंत्र का अभाव: रासायनिक हथियार सम्मेलन (CWC) के विपरीत, जिसे रासायनिक हथियारों के निषेध के लिए संगठन (OPCW) के माध्यम से लागू किया जाता है, BWC में कोई स्वतंत्र सत्यापन एवं निरीक्षण व्यवस्था नहीं है।
      • ISU का सीमित अधिकार क्षेत्र: कार्यान्वयन सहायता इकाई (ISU) मुख्यतः प्रशासनिक कार्य करती है और उसके पास प्रवर्तन का कोई अधिकार नहीं है।
      • उभरते विज्ञान की अपर्याप्त निगरानी: जैव-प्रौद्योगिकी, आनुवंशिक अभियांत्रिकी और सिंथेटिक बायोलॉजी में तीव्र प्रगति की संधि के अंतर्गत व्यवस्थित निगरानी नहीं की जाती।
      • गैर-राज्य तत्वों के प्रति संवेदनशीलता: जैविक हथियारों की सुलभता, कम लागत और उच्च प्रभाव के कारण आतंकवादी संगठनों द्वारा उनके दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है।

वैश्विक जैव-सुरक्षा को सुदृढ़ करने के उपाय:

      • जैविक हथियार सम्मेलन और वैश्विक जैव-सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए बहुआयामी रणनीति आवश्यक है:
        • सुदृढ़ राष्ट्रीय कार्यान्वयन: द्वि-उपयोग अनुसंधान की निगरानी, उच्च-जोखिम रोगजनकों की अनिवार्य रिपोर्टिंग और संरचित आपात प्रतिक्रिया तंत्र।
        • जैव-फोरेंसिक एवं दोषारोपण क्षमता: प्रकोपों के स्रोत की पहचान और जांच में सहायक वैज्ञानिक अवसंरचना।
        • ग्लोबल साउथ पर विशेष ध्यान: टीकों, औषधियों और प्रौद्योगिकियों तक समान पहुँच के माध्यम से सामूहिक लचीलापन बढ़ाना।
        • द्वि-उपयोग अनुसंधान का नियमन: नैतिक समीक्षा और नियामक तंत्र के माध्यम से दुरुपयोग की रोकथाम।
        • अनुच्छेद VII सहायता तंत्र: जैविक खतरों का सामना कर रहे देशों की सहायता हेतु भारत-फ्रांस द्वारा प्रस्तावित वैश्विक सहायता डेटाबेस।
        • अंतरराष्ट्रीय सहयोग का सुदृढ़ीकरण: रोग निगरानी, सूचना साझाकरण और क्षमता निर्माण में सहयोग।
        • विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs): डेटा साझा करना, सुविधा घोषणाएँ और विधायी पारदर्शिता।
        • समर्थक समझौते: 2000 का कार्टाजेना जैव-सुरक्षा प्रोटोकॉल जैसे समझौते आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के सुरक्षित प्रबंधन को बढ़ावा देते हैं।
      • इन उपायों का प्रभावी क्रियान्वयन तीव्र तकनीकी परिवर्तन के युग में जैविक हथियार सम्मेलन की प्रासंगिकता को सुनिश्चित करेगा।

भारत का दृष्टिकोण:

      • यद्यपि जैविक हथियार सम्मेलन  ने जैविक हथियारों के विरुद्ध एक वैश्विक मानक स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है फिर भी  वर्तमान खतरे का परिदृश्य अधिक अनुकूलनशील और सक्रिय दृष्टिकोण की माँग करता है। जैव-प्रौद्योगिकी की द्वि-उपयोग प्रकृति यह संकेत देती है कि पारंपरिक सत्यापन तंत्र मात्र पर्याप्त नहीं हो सकते। साथ ही, खतरे की प्रकृति भी बदल चुकी है, जहाँ गैर-राज्य तत्वों के पास ऐसे उपकरण और सूचनाएँ उपलब्ध हैं जिनकी परिकल्पना संधि के प्रारंभिक दौर में नहीं की गई थी।
      • मजबूत अनुपालन तंत्र, नैतिक निगरानी और ग्लोबल साउथ देशों की अधिक भागीदारी के लिए भारत की वकालत केवल मानकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। संवेदनशील देश जैविक खतरों से असमान रूप से प्रभावित होने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे उन्हें वैश्विक जैव-सुरक्षा योजना में सम्मिलित करना अनिवार्य हो जाता है। इस संदर्भ में, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वैज्ञानिक क्षमता-निर्माण और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र प्राकृतिक प्रकोपों और जानबूझकर जैविक दुरुपयोगदोनों को नियंत्रित करने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

निष्कर्ष:

जैविक हथियार सम्मेलन की 50वीं वर्षगांठ उपलब्धियों को स्वीकार करने के साथ-साथ निरंतर और उभरती कमजोरियों का सामना करने का अवसर प्रदान करती है। यद्यपि जैविक हथियार सम्मेलन ने जैविक हथियारों को अवैध ठहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, फिर भी जैव-आतंकवाद, द्वि-उपयोग जैव-प्रौद्योगिकी और गैर-राज्य तत्वों से उत्पन्न बढ़ते खतरे सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। सत्यापन तंत्र को सुदृढ़ करना, उभरते विज्ञान की निगरानी, त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ पर बल देते हुए एक लचीली, न्यायसंगत और प्रभावी वैश्विक जैव-सुरक्षा संरचना के निर्माण के लिए अनिवार्य है।

 

UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न: जैव-आतंकवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक उभरता हुआ खतरा है। इस संदर्भ में, जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) की प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए तथा इसकी सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए भारत के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए।