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Daily-mcqs 10 Dec 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 December 2020 10 Dec 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 December 2020


(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 December 2020



कोरोना वैक्सीन इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन क्या है?

  • कोरोना बायरस महामारी से जूझ रही दुनिया को वैक्सिन का बेसब्री से इंतजार है, जिसमें कई कंपनियाँ सफल होने का भी दावा कर रही हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 4 दर्जन वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे या तीसरे चरण में हैं, जिसमें से कई कंपनियों ने उच्च क्षमता के वैक्सिन निर्माण का दावा किया है।
  • भारत में भी कई कंपनियाँ वैक्सीन निर्माण में लगी है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने कई कंपनियों के लेब का दौरा किया तथा वैक्सिन निर्माण प्रगति का जायजा लिया।
  • राजनीतिक दलों के साथ अपनी बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि 8 वैक्सिन पर भारत में काम चल रहा है और सफलता बस कुछ हफ्रते की दूरी है।

कुछ प्रमुख वैक्सिन-

फाइजर की BNT 162B2 वैक्सिन

  • इस वैक्सिन का निर्माण अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर और जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक ने संयुक्त रूप से किया है। ब्रिटेन ने अपने यहां इसके आपातकालीन उपयोग की अनुमति दे दी है। यह दुनिया की पहली वैक्सिन बन गई है, जिसका आम उपयोग हो सकेगा। बहरीन में भी इसके उपयोग को अनुमति मिल गई है।
  • इस वैक्सिन का टीकारण प्रारंभ हो गया हें इसे बेल्जियम में तैयार किया गया है, जहां से ब्रिटेन भेजा जा रहा है। RNA बेस्ड इस वैक्सिन को 95 प्रतिशत तक प्रभावी पाया गया है।
  • फाइजर ने अपनी कोरोना वैक्सिन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया से मांगी है। भारत में इस प्रकार की अनुमति मांगने वाली यह पहली कंपनी है।
  • इस वैक्सिन को स्टोर करने के लिए माइनस 70 डिग्री की आवश्यकता होगी।
  • फाइजर ने कुछ दिन पहले अमेरिका खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) से अनुमति मागी थी।
  • कोरोना का पहला वैश्विक टीका मध्य ब्रिटेन के कोवेंट्री में स्थित यूनिवर्सिटी अस्पताल में मारग्रेट कीनान नामक महिला को दिया गया।
  • ब्रिटेन में 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों और हेल्थ केयर में लगे कर्मचारियों को पहले वैक्सिन दिये जाने का निर्णय लिया गया है।

COVAXIN

  • इसका निर्माण भारत बायोटेक-ICMR ओरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी मिलकर कर रहे है।
  • यह वैक्सिन अपने ट्रायल के तीसरे फेज में है। देश के 22 सेंटर पर वैक्सिन के तीसरे फेज का ट्रायल हो रहा हैं जिसमें 26 हजार वालंटियर्स शामिल है।
  • पहले दो चरण में इस वैक्सिन का कोई साइड इफ्रफेक्ट नहीं दिखा है तथा कारगर भी सिद्ध हुई है।
  • डाक्टारों के मुताबिक यह दवा जनवरी-फरवरी तक बाजार में या प्रयोग के लिए आ सकती है।

COVESHIELD

  • इसका निर्माण ऑक्सफोर्ड और Astrazeneca द्वारा किया जा रहा है। भारत में सीरम इंस्टिट्यूट में विकसित कर रहा है।
  • इसके दो चरण के ट्रायल हो चुके है तथा जल्द ही तीसरे चरण के भी आकडें आ जायेंगे।
  • पहले डोज की/चरण की सफलता 90 प्रतिशत, दूसरे चरण की 62 प्रतिशत है।
  • पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट में इसका बड़े स्तर पर उत्पादन हो रहा है।
  • भारत में हर डोज की कीमत 500-600 रुपये अनुमानित है।
  • सीरम इंस्ट्यिूट ऑफ इंडिया ने इसके भारत में इसके इमरजेंसी अप्रूवल मांगा है। इस तरह अप्रूवल मांगने वाली यह पहली कंपनी बन गई है।

mRNA-1273

  • इसका निर्माण अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना ने किया है। कंपनी ने बार-बार दावा किया है कि इसकी कोरोना वैक्सीन 94 प्रतिशत से ज्यादा कारगर है।
  • यह कंपनी भी अमेरिका और पूरे यूरोप में अपनी कोविड वैक्सिन के उपयोग के लिए अनुमति मांगने जा रही है।
  • इसे स्टोर करने के लिए -20 डिग्री तक का तापमान चाहिए। इसकी अनुमानित कीमत 25-37 डॉलर हो सकती है।

इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन क्या है?

  • किसी बीमारी के टीके, दवा, नैदानिक परीक्षण या चिकित्सीय उपकरणों को भारत में उपयोग के लिए मंजूरी लेनी पड़ती है जो केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization) द्वारा दी जाती है।
  • अनुमाति देने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है, जिसमें बहुत समय लगता है। वहीं आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (EUA) एक ऐसी प्रणाली है जिसका प्रयोग विनियामक निकायों द्वारा द्वारा आपात स्थिति के मामले में अंतरिम मंजूरी प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह केवल तब किया जाता है जब पर्याप्त सबूत हों कि दवा/टीका/परीक्षण कारगर और सुरक्षित है।
  • भारत में सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने Favipiravir और रेमेडीसविर के लिए जून में और Italizumab के लिए जुलाई में सीमित आपातकालीन स्वीकृति प्रदान की थी।
  • यहां यह समझना आवश्यक है कि भारत में आपातकालीन के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
  • अमेरिका में इसकी जिम्मेदारी खाद्य और औषधि प्रशासन (FDA) के पास है, जहां इसके संबंध में स्पष्ट प्रावधान है। यह अनुमति तब देता है जाये जब यह सबित हो जाये कि टीके के संभावित लाभ उसके संभावित जोखिमों से ज्यादा है।
  • अनुमति तभी प्रदान की जाती है जब तीनों चरणों के परिणाम आ जायें।
  • कोविड वैक्सिन के संदर्भ में खाद्य और औषधि प्रसाधन का यह कहना है कि वह उस आवेदन पर विचार करेगा जिसमें तीसरे चरण के परीक्षण के डेटा में 50 प्रतिशत प्रभावकारिता साबित हो।

मेघालय कोयला उत्पादन क्षेत्र चर्चा में क्यों है?

  • विश्व में सबसे अधिक कोयला भंडार उपलब्धता वाले देशों की सूची में भारत का 5वाँ स्थान है।
  • वर्तमान समय में भारत में कोयले का वार्षिक उत्पादन लगभग 700-800 मिलियन टन है जबकि हमारी आवश्यकता ज्यादा है, इसी कारण प्रतिवर्ष औसतन लगभग 150-200 मिलियन टन कोयले का आयात किया जाता है।
  • हमारे यहां विद्युत उत्पादन लगभग (50-60 प्रतिशत) कोयले पर निर्भर है, जिसके कारण कोयले की आवश्यकता ज्यादा है। इसके अलावा औद्योगिक एवं घरेलू आवश्यकता के लिए भी बड़ी मात्र में इसकी जरूरत पड़ती है।
  • वर्तमान समय में देश के कुल कोयला उत्पादन में 82 प्रतिशत भूमिका कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की है। वर्ष 2011 में इसे महारत्न कंपनी का दर्जा दिया गया था।
  • भारत में अधिकांश खनिजों का राष्ट्रीयकरण किया गया है, जिसका मतलब यह है कि इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के पश्चात ही किया जाता है किंतु उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रें में खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत स्तर पर व समुदायों को प्राप्त है, जिसके कारण इनका खनन निजी स्तर पर या समुदाय के स्तर पर किया जाता है।
  • मेघालय पूर्वोत्तर राज्य का एक प्रमुख कोयला भण्डार वाला राज्य है जहां कोयले का अनुमानित भंडार 576-48 मिलियन मिट्रिकटन है।
  • यहां की गारो खासी, जयंतियाँ पहाड़ी क्षेत्र कोयला उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। मेघालय एक आदिवासी राज्य है, इसके कारण इस क्षेत्र में संविधान की 6वीं अनुसूची लागू होती है जिसके तहत संपूर्ण भूमि निजी स्वामित्व के अधीन है। फलस्वरूप कोयला खनन पूर्णतः आम लोगों द्वारा ही किया जाता है। हालांकि यहां यह ध्यान आवश्यक है कि छठी अनुसूची में स्पष्ट तौर खनन का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • यहां अन्य प्रकार के औद्योगिक विकास तथा सेवा से जुड़े क्षेत्रें का विकास नहीं हो पाया है फलस्वरूप यहां के आदिवासी समुदाय की निर्भरता इस पर ज्यादा है।
  • मेघालय का अधिकांश कोयला भंडार (मुख्यतः जयंतिया कोयला क्षेत्र) जमीन से केवल कुछ फीट नीचे मौजूद है, जिसके कारण कोयला खनन एक कम गहरी नालीनुमा संस्वना में की जाती है जिसे रैट होल खनन कहा जाता है।
  • यहां पर कोयले की जो खदान होती हैं उन तक पहुँचने के लिए एक संकरा रास्ता बनाया जाता है, जिसमें एक बार में एक आदमी ही नीचे उतर सकता है, कई बार तो इसमें रेंग कर प्रवेश करना होता है। इस तरह के छेद या होल को Rat Hole (रैट होल) कहा जाता है। 3-4 फीट चौड़े इन छिद्रों में न सिर्फ प्रवेश करना कठिन होता है बल्कि बहुत जोखिमपूर्ण भी होता है, जिसके कारण कई बार इसमें मजदूरों की मौत हो जाती है। दरअसल यह पूरी संरचना जानलेवा होती है।
  • यहां का कोयला व्यक्तिगत और समुदाय स्तर पर निकाला जाता है, इस कारण तकनीकी और आधारभूत संरचना पर बहुत न्यूनतम खर्च किया जाता है।
  • इस प्रकार के खनन में संलग्न अधिकांश श्रमिक (बच्चे भी शामिल) असम के गरीब इलाकों, नेपाल तथा बांग्लादेश के गरीब इलाके से आते हैं जिन्हें जीविका के लिए इस प्रकार के जोखिमपूर्ण कार्य को करना पड़ता है। मेघालय की एक सामाजिक संरचना भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार है। यहां गरीब आदिवासी और गैर आदिवासी लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है, इसलिए उनकी सुरक्षा के प्रति ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • दिसंबर 2018 में यहां 15 मजदूर फंस गये थे, जिन्हें एक माह तक भी नहीं निकाला जा सका था। यह घटना एक अवैध खनन के दौरान हुई थी । यहां पर इस प्रकार के अवैध खनन बड़ी मात्र में होते हैं।
  • वर्ष 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (NGT) ने मेघालय में खदानों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। इस रोक से पहले मेघालय को हर साल करीब 70 करोड़ रुपये की आमदनी खदान मालिकों की ओर से होती थी। फलस्वरूप NGT के इस फैसले के खिलाफ कुछ कोयला खदान मालिक सुप्रीम कोर्ट गये। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में फैसला दिया कि खनन नहीं हो सकता है लेकिन जिस कोयले का खनन हो चुका है उसे 31 जनवरी, 2019 तक उठा लिया जाये। यहां के कोयला खदान मालिक अवैध उत्पादन कर के उसे पुराना उत्पादन दिखाते आते थे, जिसके कारण यह हादसा हुआ था।
  • जयंतिया कोल माइनर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन का दावा है कि पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले के 360 गांवों में लगभग 60,000 कोयला खदानें है।
  • हाल ही में यहां (जयंतिया) के एक गांव मूलमिलिआंग (Moolamylliang) गांव ने रैट-होल खनन से प्रभावित होने के बावजूद पर्यावरणीय नुकसान को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
  • यहां के उत्पादित को कोयले को हटाया जा चुका है। रैट होल को भरा जा चुका है। गड्डे-तालाबों को साफ किया जा चुका है। वृक्ष और घास लगाये जा चुके है और यह क्षेत्र अब कोयला उत्पादन क्षेत्र के स्थान पर एक आवासीय क्षेत्र वन चुका है।
  • यहां पहले पेड़ों को काटा जा चुका था, कोयला चारों तरफ बिखरा था, गड्डों का निर्माण हो गया था। जिसकी वजह से जल प्रदूषण की समस्या भी उत्पादन हो गई थी।
  • इन क्षेत्रें में फाइब्रोसिस, न्यूमोकोनिओसिस और सिलिकोसि की समस्या तथा श्वसन संबंधी समस्याएं आम हो गईं थी, जिसमें अब सुधार आने की संभावना है।
  • इसका एक बड़ा परिवर्तन बच्चों एवं महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार के रूस में आ सकता है, क्योंकि यह अभी इन खदानों से सर्वाधिक प्रभावित थे इससे बालश्रम रूकेगा, शिक्षा स्तर बढ़ेगा, महिला सशक्तिकरण होगा।
  • मेघालय की प्राकृतिक धरोहर-नदियों, झरनों, जैवविविधता केंद्रष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है, जिसका विकास कर वैकल्पिक रोजगार और हरित पर्यटन से उत्पन्न होने वाले लाभों को आदिवासी समाज तक पहुंचाया जा सकता है।
  • एक यहां महत्वपूर्ण बदलाव छठवीं अनुसूची के संदर्भ में करना होगा और खनन संबंधी प्रावधानों को स्पष्ट करना होगा जिससे इन खदानों का विनियमन आसान हो सके।

9PM Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 December 2020



भारत को रूस ने पश्चिमी देशों का मोहरा कहा

  • रुस ने भारत से अपने द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर बड़ा बयान दिया है। रूस की सरकारी थिंक-टैंक रशियन इंटरनेशनल अफेयर्स काउंसिल के एक कार्यक्रम में रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत पश्चिम की चीन विरोधी नीति का मोहरा बन गया है। उन्होनें अपने बयान में कहा कि पश्चिमी देशों की चीन के खिलाफ लगातार, आक्रामक और छलपूर्वक नीति का मोहरा भारत को बनाया जा रहा है और भारत लगभग मोहरा बन भी गया है।
  • सर्गेई लावरोव ने कहा कि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के कारण रूस के साथ भारत की करीबी साझेदारी और विशेष संबंध कमजोर हो रहे हैं। और अमेरिका के कारण भारत रूस से दूर होता जा रहा है।
  • सर्गेई लावरोव का कहना है कि अमेरिका और उसके नेतृत्व में चलने वाले पश्चिमी देश एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बहाल करना चाहते है। लेकिन रूस और चीन इस एक ध्रुवीय व्यवस्था के अधीन नहीं आयेंगे।
  • रूसी विदेश मंत्री का मानना है कि पश्चिमी देश भारत को तथाकथित क्वाड और हिंद-प्रशांत रणनीति के खेल में शामिल करके भारत का यूज़ कर रहे है।
  • इनका (रूसी विदेश मंत्री) मानना है कि इस वक्त पश्चिमी देश खासकर अमेरिका, भारत-रूस सैन्य और तकनीकी सहयोग को कमजोर कर अपना लाभ और हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की बढ़ती सक्रियता का रूस पहले से ही विरोध करता आया है, इसी कारण वह क्वाड को भी सही मानता है। रूस का मानना है कि यह सिर्फ चीन को घेरने, रूसी प्रभाव को कम करने तथा अमेरिका की एक ध्रुवीय व्यवस्था का हिस्सा है।
  • अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने वर्ष 2017 में जब इसे मूर्त रूप दिया था तभी से चीन और रूस इसमें भारत के शामिल होने का विरोध करते आये है। यही बात या चिंता इन दोनों देशों की मालाबार सैन्य अभ्यास के संदर्भ में भी दिखाई देती है।
  • अमेरिका इस गठबंधन (क्वाड, मालाबार) के संदर्भ में यह कहता आया है कि यह कोई गठबंधन नहीं है बल्कि ऐसे देशों का समूह है जो साझा हितों एवं मूल्यों से संचालित होते है तथा रणनीतिक रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था को मजबूत करने में रूचि रखते है।
  • लावारोव का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाहार G-20 एकमात्र संगठन है जहां हितों के संतुलन के आधार पर संतुलित तरीके से चला जा सकता है और बहुध्रुवीयता को कायम रखा जा सकता है।
  • रूस के भारत के संदर्भ में दिये गये इस बयान से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस समय-रूस-चीन गठजोड़ अत्यधिक मजबूत होने के कारण रूस जानबूझकर चीनी आक्रामकता को नजर अंदाज कर रहा है,जबकि पिछले 8 माह से भारत का चीन के साथ जो सीमा तनाव बढ़ा है वह चीन की आक्रामकता और विस्तारवादी नीति के कारण ही है।
  • अक्टूबर 2018 में भारत ने अमेरिकी प्रतिबंध लगाये जा सकने की ट्रंप प्रशासन की चेतावनी की परवाह किये बिना एस-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की पांच यूनिट खरीदने के लिए पांच अरब डॉलर का सौदा रूस से किया था।
  • रूस ने पिछले कुछ महीनों में कई बार भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को शांत करने की कोशिश जरूर की लेकिन उसने चीन पर कोई दबाव भारत की तरफ से नहीं बनाया, जिसके कारण कोई समाधान नहीं निकल पाया। भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को महत्व देने हुए ही रूस की अध्यक्षता में शंघाई सहयोग संगठन के तहत विदेश मंत्री और रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया जबकि चीन द्वारा उत्पन्न किये गये तनाव के कारण वह इस बैठक से अपने आप को अलग कर सकता था।
  • भारत के तरफ से अभी कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया तो नहीं आई है लेकिन यह माना जा रहा है कि रूस-चीन संबंधों की मजबूती के कारण रूस अपनी खीझ भारत और अमेरिका पर निकाल रहा है।
  • भारत-रूस संबंध आजादी के समय से ही मजबूत रहे है। रूस ने कश्मीर के मुद्दे संयुक्त राष्ट्र में वीटो पॉवर का प्रयोग कर इसे और मजबूत किया।
  • 1955 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति खुश्चेव ने विवादित भू भागों यथा पुर्तगाली अधिकृत क्षेत्रों पर भारत के पक्ष का समर्थन किया था।
  • हालांकि भारत-चीन युद्ध के समय इन संबंधों में गिरावट आई थी जब रूस ने तटस्थ रहने की नीति अपनाई।
  • 1965 में भारत पाक युद्ध के समय रूस ने भारत का समर्थन किया तथा 1971 के युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • रूस ने भारत के असैन्य परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में काफी मदद की तथा नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना तथा संचालन में सहयोग दिया है।
  • रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता तथा सैन्य सहयोगी है।
  • अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का सबसे ज्यादा सहयोग रूस ने ही किया है।
  • हाल के समय में जब भारत ने रक्षा क्षेत्र से संबंधित आयात को रूस तक सीमित न रखकर अन्य देशों तक विस्तारित करने की नीति अपनाई है जिससे रूस की चिंताएं बढ़ी हैं।
  • हाल के समय में चीन के साथ तनाव बढ़ने पर भारत-अमेरिका संबंधों में निकटता आई है तो रूस के साथ दूरी बढ़ी है। हालांकि कि भारत दोनों को समायोजित करने का प्रयास करता आया है।

संपूर्ण लक्षदीप जैविक कृषि क्षेत्र घोषित

  • लक्षद्वीप भारत की मुख्य भूमि के दक्षिण में हिंद महासागर में भारत का संघ शासित क्षेत्र है। लक्षद्वीप का अर्थ संस्कृत और मलयालम भाषा में एक लाख द्वीप होता है।
  • यह भारत का सबसे छोटा संघ राज्य क्षेत्र है जो 36 द्वीपों पर विस्तृत है। इसका कुल क्षेत्रफल 32 वर्ग किलोमीटर है।
  • इसके अंतर्गत प्रमुख रूपसे तीन उप-द्वीप समूह-अमीनदीव, मिनिकॉय एवं लकादिव द्वीप समूह शामिल किये जाते हैं। अमीनदीव सबसे उत्तर में है जबकि मिनिकांय सबसे दक्षिण में है। यहां की राजधानी कवरत्ती हैं ।लक्षद्वीप सर्वाधिक साक्षरता वाला संघ शासित राज्य है।
  • इन 36 द्वीपों में से 12 द्वीप एटॉल, तीन रीफ (भित्ती), पांच जलमग्न बैंक और दस बसे हुए या आवासीय द्वीप हैं ।देशी पर्यटकों को केवल 6 द्वीपों तथा विदेशी पर्यटकों को केवल 2 द्वीपों (अगाती व बंगाराम) पर जाने की अनुमती है। मानव बस्ती वाले द्वीप-अंदरौत, कदमत, मिनिकॉय, कवरत्ती, अगप्ती, अमिनी, कल्पेनी, किल्टन, चेटलाट एवं बित्रा है।
  • प्रवाल निर्मित यह द्वीपीय क्षेत्र पर्यटन, जैवविविधता और नारियल के वृक्षों के कारण प्रसिद्ध है। यहां के निवासी केरल के निवासियों से मिलते-जुलते है। यह केरल उच्च न्यायालय के अधीन आता है।
  • यहां की जलवायु उष्णकटिबंधीय है जिस पर सागरीय प्रभाव ज्यादा है। जिसकी वजह से तापमान में उतार-चढ़ाव ज्यादा नहीं होता है। इसका औसत तापमान 27-32 डिग्री सेल्सियस है।
  • लक्षद्वीप पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से बहुत संवेदनशील है। वर्ष 2017 में आई एक सूचना में पता चला था कि परली अथवा पराली-I (Parali-I) द्वीप अपरदन के कारण गायब हो गया था। यह बंगारम एटॉल का हिस्सा था। लंबे समय से अपरदन के कारण यह द्वीप जब जलप्लावित हो गया तो उसके बाद यहां कई प्रकार के प्रयास यहां के द्वीपों को बचाने के लिए प्रारंभ किया गया।
  • हाल ही में यहां से एक अच्छी सूचना सामने आई है, वह यह है कि केंद्र सरकार की भागीदारी गारंटी प्रणाली (PGS) के तहत संपूर्ण लक्षद्वीप को एक जैविक क्षेत्र घोषित कर दिया गया है।
  • लक्षद्वीप शत-प्रतिशत जैविक क्षेत्र बनने वाला देश का पहला केंद्रशासित प्रदेश है, जहां सभी प्रकार की कृषि गतिविधियाँ जैविक पदार्थों का प्रयोग करके की जाती हैं अर्थात रसायनों और सिंथेटिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है। वर्ष 2016 में सिक्किम को भारत का पहला जैविक राज्य घोषित किया गया था।
  • अक्टूबर 2017 में लक्षद्वीप प्रशासन ने सभी द्वीपों को रासायनिक मुक्त क्षेत्र बनाने के उद्देश्य से सभी प्रकार के कृषि संबंधी रसायनों के बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद यहां की सरकार ने उन विधियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जिससे जैविक कृषि को बढ़ावा मिले।
  • इसके बाद लक्षद्वीप कृषि विभाग ने केंद्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय को प्रदेश के पूरे भौगोलिक क्षेत्र को जैविक क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव भेजा था। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालयने जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने संबंधी योजना के तहत परीक्षण और प्रमाणन के बाद संपूर्ण क्षेत्र को जैविक क्षेत्र घोषित कर दिया।
  • लक्षद्वीप को जैविक कृषि क्षेत्र केंद्र सरकार के भागीदारी गारंटी प्रणाली (PGS) के तहत घोषित किया गया। PGS जैविक उत्पादों को प्रमाणित करने की एक प्रक्रिया है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कृषि उत्पादन निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुसार ही हो रहा है।
  • यहां यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि PGS कृषि गतिविधियों जैसे- फसल उत्पादन, प्रसंस्करण, पशु-पालन और ऑफ-फार्म प्रसंस्करण पर ही लागू होता है तथा यह उन किसानों या समुदायों को ही दिया जाता है जो एक क्षेत्र विशेष में कार्य करते है।
  • लक्षद्वीप को जैविक टैग प्राप्त होने से यहां के कृषि उत्पादों की मांग और मूल्य में बढ़ोत्तरी होगी, जिससे यहां के किसानों को फायदा मिलेगा।
  • यहां की जनसंख्या की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत नारियल और उससे बने उत्पाद है, इस टैग के कारण अब इनकी मांग बढेगी, विपणन बढेगा, आय बढेगी और विकास सुनिश्चित हो पायेगा।
  • इसी के साथ-साथ लक्षद्वीप को केंद्र सरकार के एक जिला-एक उत्पाद कार्यक्रम का भी लाभ मिल पायेगा।
  • यहां हमें यह भी समक्षना होगा कि लक्षद्वीप का प्रमुख कृषि उत्पाद नारियल है, जो छह माह तक ही सक्रिय रहता है। यह नारियल उत्पादन और प्रसंस्करण मई से दिसंबर के बीच ठहर सा जाता है इसलिए प्रसंस्करण की तकनीकी, भण्डारण क्षमता, विपणन चैन को विकसित करना होगा जिससे यहां के किसानों को हमेशा लाभ मिल सके।
  • जैविक कृषि से तात्पर्य उस कृषि विधि से है जिसमें रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है या फिर न्यूनतम प्रयोग किया जाता है। इसके तहत हरी खाद, जैविक कंपोस्ट, फसल चक्र, घरेलू कृषि अपशिष्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • जैविक कृषि, कृषि की परंपरागत विधि है जिसमें भूमि की प्राकृतिक उत्पादन क्षमता का प्रयोग कृषि के लिए किया जाता है।
  • इस विधि को अपनाने से पर्यावरण प्रदूषण कम होता है, शरीर में रसायनों का प्रवेश कम होता है, भू जल प्रदूषण कम होता है और कृषि का धारणीय तथा सतत विकास सुनिश्चित हो पाता है।
  • भारत में कृषि पर निर्भरता ज्यादा है इस कारण अधिक उत्पादन के लिए रसायनों का अति प्रयोग किया जाता है, इसी कारण हमारे यहां जैविक कृषि को लेकर कम जागरूकता दिखायी देती है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मोमेंट के अनुसार जैविक कृषि को अपनाने वाले देशों की सूची में भारत का 9वाँ स्थान है।
  • किसानों के बीच इसे लोकप्रिय बनाने के लिए किसानों को शिक्षित करने की आवश्यकता है तथा इसके लाभों से परिचित कराना होगा और इन उत्पादों का उचित मूल्य मिल पाये यह सुनिश्चित करना होगा।

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