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Brain-booster / 17 Jun 2020

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: भारतीय श्रम कानून और आईएलओ (ILO and Indian Labour Laws)

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यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): भारतीय श्रम कानून और आईएलओ (ILO and Indian Labour Laws)

भारतीय श्रम कानून और आईएलओ (ILO and Indian Labour Laws)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization ILO) ने भारत में श्रम कानूनों की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए भारत सरकार से कहा है कि केन्द्र और राज्य सरकारों को श्रम कानूनों को बनाए रखना चाहिए।
  • गौरतलब है कि देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संघों ने पत्र के माध्यम से देश में श्रम कानूनों के निलंबन के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के समक्ष उठाया था और साथ ही इस विषय पर ILO के हस्तक्षेप की मांग की थी।

प्रमुख बिन्दु

  • गौरतलब है कि यूपी, एमपी व गुजरात ने लगभग तीन वर्ष (1000 दिन) के लिए उद्योगों को न केवल श्रम कानून से छूट दी है, बल्कि उनके रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को भी ऑनलाइन व सरल कर दिया है।

भारत में श्रम कानून

  • श्रम विषय को भारत के संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है, जो विभिन्न श्रम संबंधी मामलों पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को कानून बनाने हेतु अधिकार प्रदान करती है। इसलिए राज्य को कानून बनाने से पहले केंद्र की मंजूरी लेनी पड़ती है।

आलोचना

  • भारत में श्रमिकों के आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए मिनिमम वेजेज एक्ट 1948, पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936, वर्कमेंस कंपनसेशन एक्ट 1923, पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट 1965 जैसे दसियों अधिनियम पिछले सौ साल में काफी लंबे विचार विमर्श के बाद बनाए गए। ये कानून भारतीय मजदूरों के आर्थिक हित सुरक्षित रखने के लिए नियोक्ताओं को प्रतिबद्ध रखते हैं। लिहाजा अब अगर इनमें बदलाव किया जाएगा या इन्हें हटाया जाएगा तो मजदूरों को मिली आर्थिक सुरक्षा खतरे में आ सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन पूरे विश्व के लिए श्रमिक कल्याण के कई कन्वेंशन पास करता आया है। आजादी के बाद से भारत आईएलओ के कई कन्वेंशन अपने यहां कानूनी रूप से लागू भी कर चुका है। ऐसा ही एक जरूरी कन्वेंशन है ट्राईपारटाइट कंसल्टेशन का। यानी श्रमिकों के लिए किए जाने वाले फैसलों को लेते समय त्रिपक्षीय विमर्श किया जाए, जिसमें नियोक्ता, सरकार और मजदूरों की समतुल्य भागीदारी हो।
  • इसे 1978 में भारत ने अपने उपर लागू किया। भारत आईएलओ के इन कन्वेंशनों का पालन करने के लिए वचनबद्ध है। लेकिन इस समय श्रम कानूनों में किए जा रहे बदलावों में त्रिपक्षीय भागीदारी नजर नहीं आ रही है। आज जब कई राज्यों ने श्रम कानूनों को खुद से स्थगित करने का फैसला किया है तो यह हमारी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं से भी मेल नहीं खाता है।

आगे की राह

  • प्रबंधकों और नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों के लिए किए जाने वाले फैसलों में श्रमिकों की भागीदारी भी सामाजिक न्याय का ही हिस्सा है। भारत में ईक्वल रेम्युनरेशन एक्ट 1976, कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट 1970, चाइल्ड लेबर एक्ट 1986, ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर्स) एक्ट 1946, फेक्टरीज एक्ट 1948 के स्वास्थ्य और कल्याण सम्बन्धी प्रावधान, कलेक्टिव बारगेनिंग जैसे कई अधिनियम हैं जो श्रमिकों के लिए सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने का काम करते चले आ रहे हैं।
  • यहां तक कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 23, 42 जैसे दस से ज्यादा अनुच्छेदों में भी श्रमिकों के अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं।
  • किसी भी देश के विकास हेतु वहाँ की अर्थव्यवस्था का मजबूत होना आवश्यक है। अर्थव्यवस्था में औद्योगिक उत्पादन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्रम, उत्पादन की एक महत्वपूर्ण इकाई है। अतः उत्पादन हेतु आवश्यक है कि श्रम से संबन्धित नियम व विधि इस प्रकार से हों कि एक तरफ जहां श्रमिकों का शोषण ना हो वहीं दूसरी ओर सौहार्दपूर्ण वातावरण में उत्पादन व औद्योगिक विकास संभव हो सके। वर्तमान श्रम नियमों व विधि को इस आदर्श स्थिति को ले जाना ही श्रम सुधार है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में की गई थी।

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