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Blog / 06 Oct 2019

(इनफोकस - InFocus) सुर्खियों में एससी/एसटी क़ानून (SC/ST Act in News)

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(इनफोकस - InFocus) सुर्खियों में एससी/एसटी क़ानून (SC/ST Act in News)


  • सुर्ख़ियों में क्यों?
  • पृष्ठभूमि
  • पूर्ववर्ती दिशा-निर्देश
  • नए संशोधन
  • चुनौतियां और आगे की राह

सुर्ख़ियों में क्यों?

  • सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST एक्ट 1989 में किए अपने फैसले को ही बदल दिया है।
  • 20 मार्च 2018 फैसले में, SC-ST एक्ट सम्बन्धी मामले में गिरफ्तारी को मुश्किल कर दिया था।
  • गौरतलब है कि मार्च 2018 में दिए गए इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी।

पृष्ठभूमि

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का उन्मूलन करता है।
  • नीति-निर्देशक तत्व अनुच्छेद 46 कहता है कि राज्य कमजोर वर्ग के लिए कानून बना सकता है।
  • छूआछूत सम्बन्धी प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राईट 1955 लाया गया लेकिन बात नहीं बनी।
  • इसके बाद एससी एसटी एक्ट 1989 लाया गया जो कि आज तक चल रहा है।
  • SC ने इस संबंध में 20 मार्च 2018 को इस एक्ट के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए थे।
  • 2018 के अपने गाइड-लाइन में SC ने अनुसूचित जाति-जनजाति पर होने वाले अत्याचारों को लेकर होने वाली गिरफ्तारी के प्रावधानों को कमजोर कर दिया था।

पूर्ववर्ती दिशा-निर्देश

उल्लेखनीय है कि 20 मार्च 2018 को SC ने निम्न दिशा-निर्देश जारी किए थे-

  • संबंधित मामले में तत्काल ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की जाएगी।
  • अगर आरोप किसी सरकारी कर्मचारी पर है तो इस आरोप की पुष्टि कर्मचारी को नियुक्त करने वाली आथोरिटी से की जाएगी।
  • आरोप प्राइवेट व्यक्ति पर है तो एसएसपी के जांच के बाद ही गिरफ्तारी संभव होगी।
  • जांच समयबद्ध होगी।जाँच की अवधी 7 दिन से अधिक नहीं होगी।
  • नियमों की अवहेलना की स्थिति में पुलिस पर अनुशासनात्मक एवं न्यायालय की अवमानना सम्बन्धी कार्यवाही की जाएगी।
  • आरोपी के हिरासत की अवधि का निर्धारण मजिस्ट्रेट करेगा।
  • अग्रिम जमानत पर पूर्ण रोक नहीं।

नए संशोधन

  • नए संशोधन में जांच की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है।
  • आरोप के मामले में सीधा एफ़आईआर दर्ज होगा।
  • एंटीसिपेट्री बेल लिया जा सकता है।

चुनौती

  • जांच की बाध्यता को खत्म होने से इन कानूनों का दुरुपयोग होने की आशंका है।
  • आपसी दुश्मनी निकलने के लिए इस कानून का दुरूपयोग किसी निर्दोष के खिलाफ भी किया जा सकता है।

आगे की राह

  • एक लोकतांत्रिक शासन का यह दायित्व है कि भेदभाव रहित होकर सभी वर्गों तक समानता को सुनिश्चित करे।
  • ताकि इन वर्गों के भीतर उत्पन्न असुरक्षा और उत्पीड़न का डर समाप्त हो सके एवं इनका शासनतंत्र और न्याय प्रणाली में विश्वास बना रहे।

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