(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सोलर ऑर्बिटर - खुलेंगे सूरज के राज (Solar Orbiter - Unveiling the Secrets of Sun)
दुनिया चाँद तक पहुँच गयी है। चाँद के अलावा मंगल ब्रिश्पति और शनि ग्रहों पर भी दुनिया ने अपने कदम बढ़ा दिए है लेकिन इन सबको रोशनी देने वाला सूरज अभी भी वैज्ञानिकों की ज़द से बाहर रहा है। सूरज जिसे असीम ऊर्जा का भण्डार माना जाता है और कई धर्मों और मान्यताओं में इसे भगवान् का भी दर्ज़ा दिया गया है । आग की लपटों को खुद में समेटे सूरज को जानने और समझने की कोशिश कई सालों से चल रही है।लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी सूरज कौतूहल का विषय बना रहा। लेकिन अब चांद के बाद वैज्ञानिकों ने सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए एक कदम आगे बढ़ा दिया है। सूरज के रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश में वैज्ञानिकों ने हाल ही में सोलर ऑर्बिटर को छोड़ा। सोलर ऑर्बिटर को सूर्य तक पहुंचने में तकरीबन 7 साल का वक़्त लगेगा। सोलर ऑर्बिटर इन 7 सालों में लगभग 4 करोड़ 18 लाख किलोमीटर दूरी तय करेगा। सोलर ऑर्बिटर को लांच करने में 'यूनाइटेड लॉन्च अलायंस एटलस वी' रॉकेट की मदद ली गयी । इसे 10 फरवरी सोमवार को सुबह तकरीबन 9:33 बजे फ्लोरिडा के केप कैनेवरल स्पेस सेंटर से प्रक्षेपित किया गया। गौरतलब है की सोलर ऑर्बिटर मिशन पर अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) मिलकर काम कर रही हैं। सोलर ऑर्बिटर की मदद से वैज्ञानिकों को सूरज के बारे में कई राज़ जानने में मदद मिलेगी।
सोलर ऑर्बिटर सूर्य की सतह पर मौजूद ध्रुवों की पहली बार तस्वीरें लेगा। सोलर ऑर्बिटर में 10 उपकरणों को इस्तेमाल किया गया है । इन उपकरणों में ज़्यादा रिजोल्यूशन वाले छह कैमरे भी शामिल हैं। इस ऑर्बिटर से पहली दफा सूर्य के ध्रुवों को नज़दीक से समझने में मदद मिलेगी । इसके अलावा सूर्य के ध्रुवों पर मौजूद चुम्बकीय क्षेत्र के रहस्यों से भी वैज्ञानिक रूबरू हो सकेंगे। सोलर ऑर्बिटर सूरज के कई अनसुलझे सवालों के जवाब खोजने में भी मददगार साबित होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ सूरज की सतह से लगातार आवेशित कड़ों की एक धरा चलती रहती है जिससे सूरज के चारों और परिक्रमा करने वाले गृह प्रभावित होते हैं। इन धाराओं को सौर हवा या सोलर विंड के नाम से जाना जाता है ।सोलर ऑर्बिटर के ज़रिये सूरज की सतह पर मौजूद आवेशित कणों, सौर हवा के प्रवाह, सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र और इससे बनने वाले हेलिओस्फियर की जांच की जा सकेगी।
सोलर ऑर्बिटर को अंतरिक्ष में एक ख़ास जगह स्थापित किया जायेगा। वैज्ञानिकों का इरादा इसे पृथ्वी और शुक्र की कक्षा से ऊपर ऐसी जगह पर स्थापित करने का है जहां से सूरज के दोनों ही ध्रुव दिखाई दें। इसके लिए वैज्ञानिक सोलर ऑर्बिटर को अपने गंतव्य तक पहुँचने के बाद इसके अक्ष को 24 डिग्री तक घुमा देंगे।
सोलर ऑर्बिटर को बनाने में ६7२ मिलियन डॉलर का खरच आया है। सोलर ऑर्बिटर अंतरिक्ष में एक चलते फिरती प्रयोगशाला के रूप में काम करेगा ।इस प्रयोगशाला का मकसद अंतरिक्ष में सूर्य के क्रमिक विकास और इसकी सतह पर से होने वाले ऊर्जा के उत्सर्जन को समझना होगा।
गौरतलब है की सूरज की बाहरी सतह का तापमान 5,778 K (5,505 °C, 9,941 °F) के करीब है। इसी वजह से इसके करीब जाना नामुमकिन है। इसके इर्द गिर्द कोई भी चीज़ चुटकी बजाते ही ख़ाक हो सकती है। सोलर ऑर्बिटर के सामने भी इस तेज़ तापमान को झेलने की चुनौती थी। मगर इतने ज़्यादा तापमान से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने सोलर ऑर्बिटर में एक खास तरह की शील्ड लगाई है। आपको बता दें की इस शील्ड पर कैल्शियम फॉस्फेट की कोटिंग भी की गई है। कुछ इसी तरह की कोटिंग हजारों साल पहले इंसानों ने गुफाओं में बनाए गए भित्ति चित्रों पर भी की थी जिससे इन चित्रों का वज़ूद अभी तक कायम है।
सूरज हमारे सौर मंडल के केंद्र में है और पृथ्वी समेत 8 गृह और कई खगोलीय पिंड इसके चारों और परिक्रमा करते रहते हैं। ऐसे कई सवाल सूरज को लेकर अभी भी वैज्ञानिकों के ज़ेहन में हैं जिनका जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है । सोलर ऑर्बिटर के सफलता पूर्वक कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद वैज्ञानिक जान सकेंगे कि सूरज पृथ्वी और अन्य दूसरे ग्रहों के मौसम पर क्या असर डालता है। इसके अलावा अंतरिक्ष यानों , उपग्रहों, रेडियो और जीपीएस जैसी रोजमर्रा की तकनीकें सूर्य की वजह से किस कदर प्रभावित होती हैं इस पर भी रोशनी डाली जा सकेगी।
ESA ने ट्वीट के ज़रिये जानकारी दी कि यह ऑर्बिटर रॉकेट से अलग हो गया है और इसने सूरज का रुख कर लिया है। इस ऑर्बिटर में मौजूद विंग्स पर सोलर पेनल्स लगे हुए हैं जो सूरज की रोशनी के ज़रिये इस ऑर्बिटर में लगी बैटरियों को चार्ज करेंगे। इन बटेरियों की ऊर्जा से ऑर्बिटर अपना काम बखूबी कर सकेगा।
सोलर ऑर्बिटर के प्रक्षेपण से पहले भी सूरज की जानकारी इकठा करने के मकसद से देशों ने मिशन भेजे हैं। इन सब में नासा ने 2018 में पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य की कक्षा में भेजा था। पार्कर सोलर प्रोब का मकसद सूर्य के बाहरी कोरोना का अध्ययन करना है। इसके अलावा भारत की अंतरिक्ष संस्था इसरो ने 2020 के अंत में सूर्य का अध्ययन करने के लिए पहले मिशन आदित्य को भेजने की योजना बनाई है।