(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) लोन वेव ऑफ और लोन राइट ऑफ में फर्क (Difference between Loan Waive Off and Loan Write Off)
देश के कई बैंकों द्वारा 50 बड़े विलफुल डिफाल्टर्स का 68,607 करोड़ रुपए का कर्ज बट्टे खाते में डालने का विवाद अब नेताओं के ज्ञान-अज्ञान के आरोप तक पहुंच गया है।
गौरतलब है कि मंगलवार को रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दी गई जानकारी सामने आई है। आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने सूचना का अधिकार कानून के तहत देश के केंद्रीय बैंक से 50 विलफुल डिफाल्टर्स का ब्योरा और उनके द्वारा लिए गए कर्ज की 16 फरवरी तक की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी थी। इसे बाद रिजर्व बैंक ने बताया कि 50 बड़े विलफुल डिफाल्टर्स का 68,607 करोड़ रुपए का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया है।
इस मसले पर सरकार और विपक्ष आमने सामने हैं । आज के DNS में हम समझेंगे की क्या है कर्जमाफी और राइट ऑफ में फ़र्क़ और क्या राइट ऑफ करने का मतलब कर्ज़े से मुक्ति मिल गयी
राइट ऑफ एक बैंकिंग प्रणाली में अपनाए जाने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है। जब बैंकों के द्वारा ऋण के वसूली के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो ऐसे ‘नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट-NPA’ को बंद कर इन्हें ‘राइट ऑफ’ कर दिया जाता है एवं ऋण वसूली के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाने लगती है। इस प्रक्रिया में बैंकों को पूर्णता स्वायत्तता होती है अर्थात रिजर्व बैंक की इसमें भूमिका नहीं होती। ‘राइट ऑफ’ करने का उद्देश्य बैंकों की बैलेंस शीट को दुरुस्त करना होता है क्योंकि ऐसा न करने से बैंकों की परि-संपत्तियां बढ़ी हुई दिखेंगी जिसमें एक बड़ा हिस्सा डूबे हुए ऋण का होगा।
यद्यपि दिए गए ऋण को ‘राइट ऑफ’ तो कर दिया जाता है लेकिन इसके भुगतान का पूरा उत्तर-दायित्व ऋण लेने वाले पर बना रहता है। उदाहरण के लिए विजय माल्या और नीरव मोदी के लोगों के ऋण को ‘राइट ऑफ’ करने के बावजूद वित्तीय एजेंसियों के द्वारा कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से ऋण की वसूली प्रक्रिया लगातार जारी है।
कर्जमाफी या लोन वेवर में क्या होता है
कर्जमाफी में बैंक पूरी तरह से कर्ज वसूली को निरस्त कर देते हैं और उसे बकाया से हटा देते हैं. इसकी बाद में किसी भी तरह से वसूली नहीं हो सकती. आमतौर पर किसान कर्ज के मामले में ऐसी कर्जमाफी देखी जाती है.‘लोन वेवर-loan waiver’:‘लोन वेवर’ प्रक्रिया ‘राइट ऑफ’ से काफी अलग है। इसमें वित्तीय संस्थान दिए गए ऋण की वसूली को रद्द कर देते हैं। साधारण शब्दों में बैंक ऐसे ऋणों को पूर्ण तरीके से छोड़ते हुए इनकी वसूली नहीं करेंगे जबकि ‘राइट ऑफ’मामलों में ऋण की वसूली की जाती है।
ऋण माफी वित्तीय संस्थानों या सरकार के द्वारा दिया जाने वाला एक राहत कार्य है जो सामान्यतः किसी असामान्य परिस्थिति जैसे फसल की विफलता, खराब मानसून, बाढ़, भूकंप इत्यादि के कारण किया जाता है। ऐसी स्थितियां नियंत्रण से परे होती हैं जिसके परिणाम स्वरूप ऋण लेने वाला बैंकों को भुगतान करने में असमर्थ हो जाते हैं तो उनके ऋणों को माफ या ‘लोन वेवर’ कर दिया जाता है। उदाहरण किसानों को दिए जाने वाला ऋण माफ करना।
रिजर्व बैंक की तरफ से बताया गया है कि राइट ऑफ एक बैंकों की तरफ से की जाने वाली अकाउंटिंग की प्रक्रिया होती है। जहां कर्ज को एक अलग बट्टे खाते में डाल दिया जाता है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं होता है कि कर्ज की वसूली ही बंद कर दी जाती है। जैसे ही बैंक कर्ज की वसूली कर लेते हैं वो उनके मुनाफे में दिखाई देता है।