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Blog / 08 Jul 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारत की संगीत कला "भाग -1" (Music of India "Part - 1")

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारत की संगीत कला "भाग -1" (Music of India "Part - 1")


मुख्य बिंदु:

भारतीय संस्कृति के आरंभ काल से ही यहाँ संगीत कला की समृद्ध परंपरा रही है। सिन्धु सभ्यता से प्राप्त मुहरों पर अंकित ढोल, वीणा और तुरही के चित्र तथा नर्तकी की मूर्ति इसके सबल प्रमाण हैं। वैदिक साहित्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि आर्य लोग सप्त स्वरों से परिचित थे। भारतीय संगीत का आदि रूप वेदों में मिलता है। सामवेद को भारतीय संगीत का उद्गम माना जाता है क्योंकि इसकी ऋचाएँ गायन शैली में निर्देशित हैं। ऋग्वेद में संगीत संबंधी वाद्य यंत्रें यथा-मृदंग, बीणा, बंशी, डमरू आदि का उल्लेख मिलता है। यही नहीं पहली सदी में लिखी गयी भरनमुनि के नाट्य शास्त्र में भारतीय संगीत से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसके एक हजार वर्ष बाद मातंग ऋषि ने एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ‘बृहद्देशी’ की रचना की। इस ग्रंथ में राग की धारणा की विस्तार से चर्चा की गयी है। तेरहवीं सदी की एक रचना सारंगदेव कृत ‘संगीत रत्नाकार’ में 264 रागों का उल्लेख हुआ है। मध्यकाल में संगीत का और विकास हुआ। संगीत आरंभिक इस्लामी परंपरा का अंग नहीं रहा है, हालांकि कुरान की आयतों की तलावत में संगीत का रस पाया जाता है। बाद दरबारी जीवन का अंग बन गया। इस काल में नये रागों का विकास हुआ और अनेक नये वाद्यों का आविष्कार हुआ।

अपने Art & Culture series में हम अपने अगले पड़ाव संगीत पर आ पहुँचे हैं आइये इसी क्रम में भारतीय संगीत के राग एवं ताल के बारे में जानने का प्रयास करते हैं-

संगीत में सुरों की संख्या सात बतायी गयी है, जो इस प्रकार हैं -
  • सा (षडम)
  • रे (ऋष)
  • ग (गांधार)
  • म (मध्यम)
  • प (पंचम)
  • ध (धैवत)
  • नि (निषाद)

कहा जाता है कि ‘कोहकाफ’ नामक एक पक्षी, जिसे फारसी में ‘आतिशजन’ कहा जाता है, के चोंच में सात छिद्र होते हैं, जिनमें से हवा के प्रभाव से सात ध्वनियाँ निकलती हैं, जिनसे संगीत के सात स्वर बने।

राग एवं ताल

संगीत कला में राग एवं ताल अत्यंत, महत्त्वपूर्ण माने गये हैं। सरगम के अतिरिक्त सुरों के अन्य मौलिक विभेद भी हैं जिनमें प्रमुख ‘राग’ है। भरत के नाट्य शास्त्र में तीस से ऊपर रागों का उल्लेख है किन्तु शास्त्रीय मतानुसार 6 मौलिक राग हैं, शेष रागनियाँ हैं जो रागों की पत्नियाँ मानी जाती हैं।

छ मौलिक राग निम्न हैं-

1. भैरव
2. कौशिक
3. हिंडोल
4. दीपक
5. श्री राग
6. मेघ

रागों का विभाजन दिवस अथवा रात्रि के समय के अनुसार जिसके लिए व विशेष उपयुक्त हैं, किया गया है। भैरव सूर्योदय के समय, मेघ प्रातः काल में, दीपक और श्रीराग तीसरे प्रहर में तथा कौशिक और हिंडोल का गायन रात्रि प्रहर में उपयुक्त माना गया है। इसके अतिरिक्त ये राग मनोदशा और अनुभूतियों से भी जुड़े हैं। भैरव को भय से, कौशिक को प्रमोद से, हिण्डोल, दीपक और श्रभ्ीराग को प्रेम से और मेघ को शांति से जोड़ा जाता है। यही नहीं राग प्रकृति एवं वातावरण से भी प्रभावित होते हैं। इसीलिए प्रत्येक राग की प्रकृति के अनुसार उनके गायन की ऋतुएँ भी निश्चित हैं।

कुछ अन्य राग इस प्रकार हैं-

  • राग यमन
  • राग बिलावल
  • राग काफ
  • राग भैरवी
  • राग देस
  • राग बाग श्री आदि।

राग के पश्चात् ताल संगीत का बहुत आवश्यक तत्व है। भारत में 22 तालों को स्वीकार किया गया है, फिर भी अनेक तालें प्रचलित हो गयी हैं। तालें पेचीलेपन में 2/4 आदि ताल और 3/4 रूपक से लेकर झंपा 10/8 जैसी महत्त्वपूर्ण लयों अथवा 14 सुरों वाली ‘आता’ तक होती हैं। जब ये दो या दो से अधिक लयें अपने सुरों से सुसज्जित और शब्दों को छोटा करने की क्रिया द्वारा विभिन्न रूपों में एक साथ ध्वनित होती हैं तो उसका परिणाम एक सुरीला मिश्रण होता है।

अगले एपिसोड में भारतीय संगीत की अन्य शैलियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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