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Video Section / 01 Apr 2024

भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ

भारत में युवाओं के बीच बेरोजगारी का मुद्दा चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है जो संविदात्मक नियुक्तियों और कंसल्टेंसी पर बढ़ती निर्भरता जैसे कारकों से और गंभीर हो गया है। मानव विकास संस्थान (आईएचडी) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 श्रम बाजार की जटिल गतिशीलता पर प्रकाश डालती है यह रिपोर्ट विशेष रूप से युवा रोजगार, शिक्षा और कौशल पर ध्यान केंद्रित करती है। रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी के वर्षों सहित दो दशक के श्रम बाजार रुझानों की जांच की गई है जो उभरती चुनौतियों और आर्थिक विकास के रोजगार पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रकट करती है।

बेरोजगारी क्या है ?

बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश करने वाला व्यक्ति नौकरी सुरक्षित नहीं कर पाता है। यह आर्थिक स्थिति का एक पैमाना है, जिसमें प्राथमिक मीट्रिक बेरोजगारी दर है, जिसकी गणना बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या को कुल श्रम बल से विभाजित करके की जाती है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) किसी व्यक्ति की निम्नलिखित स्थितियों के आधार पर रोजगार और बेरोजगारी को परिभाषित करता है:

     कार्यरत (आर्थिक गतिविधि में संलग्न) अर्थात 'रोजगाररत'

     काम की तलाश या उपलब्धता अर्थात 'बेरोजगार'

     तो काम की तलाश कर रहा है और ही उपलब्ध है।

बेरोजगारी दर = (बेरोजगार व्यक्ति / कुल श्रम बल) × 100

युवा बेरोजगारी के उभरते रुझान

रिपोर्ट एक चिंताजनक प्रवृत्ति प्रकट करती है जहां भारत की कामकाजी आयु वाली आबादी का अनुपात लगातार बढ़ रहा है, जो 2021 में 64% तक पहुंच गया है और 2036 तक 65% तक पहुंचने का अनुमान है। जनसंख्या में इस वृद्धि के बावजूद, इसी अवधि में आर्थिक गतिविधियों में लगे युवाओं का प्रतिशत 52% से घटकर 37% हो गया है जो जनसंख्या वृद्धि और रोजगार के अवसरों के बीच असंतुलन को दर्शाता है। गौरतलब है कि बेरोजगारी का संकट मुख्य रूप से युवाओं को प्रभावित करता है विशेषकर माध्यमिक शिक्षा या उससे अधिक योग्यता वाले युवाओं को जो समय के साथ और गंभीर होता जा रहा है।

रिपोर्ट केवल युवा बेरोजगारी में वृद्धि को प्रकट करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कुल बेरोजगार आबादी में बेरोजगार युवाओं का हिस्सा काफी बढ़ गया है। यह अनुपात 2000 में 54.2% से बढ़कर 2022 में 65.7% हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षित युवा, खासकर महिलाएं, बेरोजगारी से सर्वाधिक  प्रभवित हैं। शिक्षित बेरोजगारों में महिलाओं का प्रतिशत अधिक होना यह चिंता का विषय है।

यह आंकड़े एक बहुआयामी संकट को रेखांकित करते हैं जिसका कारण केवल रोजगार के अवसरों की कमी है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता में कमी के कारण शिक्षित युवाओं की रोजगार पाने की अयोग्यता भी है।

कौशल विकास और रोजगार सृजन में चुनौतियाँ

युवा बेरोजगारी का संकट कौशल विकास और रोजगार के अवसरों की गुणवत्ता में कमी से और भी गंभीर हो जाता है। रिपोर्ट में औपचारिक शिक्षा से कौशल विकास को अलग करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। रिपोर्ट शिक्षा और रोजगार के बीच के अंतर को पाटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण का समर्थन करती है।

हालांकि, रिपोर्ट एक गंभीर असमानता को भी दर्शाती है। 2022 में केवल 15.62% युवाओं को ही व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था, और उनमें से केवल 4.09% ने ही औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

इसके अतिरिक्त अनौपचारिक और औपचारिक दोनों क्षेत्रों में कम उत्पादकता तथा कम आय वाली नौकरियों का प्रभुत्व बेरोजगारी और अल्प रोजगार के चक्र को कायम रखता है। वास्तविक वेतन और आय में या तो गिरावट आई है या स्थिरता आई है जिससे श्रम बल के लिए आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ गई हैं। अधिकांश नौकरियां अनौपचारिक क्षेत्र में केंद्रित होने के कारण, युवाओं के बीच बढ़ती बेरोजगारी संकट से निपटने के लिए अधिक औपचारिक रोजगार के अवसर पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है।

लिंग आधारित असमानता और श्रम बल सहभागिता

2024 की भारत रोजगार रिपोर्ट श्रम बाजार में व्याप्त लैंगिक असमानता पर भी प्रकाश डालती है। रिपोर्ट में विशेष रूप से महिला श्रम बल सहभागिता की कम दर पर चिंता व्यक्त की गई है। हाल के वर्षों में मामूली सुधार के बावजूद, श्रम बल सहभागिता दर में लैंगिक असमानता अभी भी काफी अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, युवा पुरुषों की तुलना में युवा महिलाओं की श्रम बल सहभागिता दर लगभग तीन गुना कम है। ग्रामीण-शहरी असमानताएं इस विभाजन को और बढ़ा देती हैं, जो कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

इसके अलावा, रिपोर्ट युवा महिलाओं की कृषि क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी की चिंताजनक प्रवृत्ति को भी उजागर करती है, जो अक्सर अन्य क्षेत्रों में सीमित अवसरों का संकेत हो सकती है। 2012 और 2019 के बीच, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में गिरावट ने बेरोजगारी में वृद्धि में योगदान दिया है। इस प्रवृत्ति को उलटने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता है। श्रम बल सहभागिता में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है जो समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा दें और महिलाओं को शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के अवसरों तक समान पहुंच प्रदान करें। 

बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकार की पहलें

     एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आईआरडीपी) - यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए 1980 में शुरू किया गया।

     स्व-रोज़गार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण (TRYSEM) - यह कार्यक्रम अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के युवाओं और महिलाओं को प्राथमिकता देते हुए 18 से 35 वर्ष की आयु के बेरोजगार ग्रामीण युवाओं को स्व-रोज़गार के लिए कौशल प्रदान करने के लिए 1979 में शुरू किया गया।

     आरएसईटीआई/रुडसेटी - शैक्षिक ट्रस्टों और बैंकों के संयुक्त प्रयासों के माध्यम से ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए युवा बेरोजगारी से निपटने के लिए 1982 में स्थापित किया गया था।

     जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाई) - केंद्र और राज्यों के बीच लागत साझा करते हुए, एनआरईपी और आरएलईजीपी को विलय करके अप्रैल 1989 में शुरू की गई।

     महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) - यह अधिनियम 2005 में लागू किया गया, जो अकुशल श्रम-केंद्रित काम चुनने वाले परिवारों को प्रति वर्ष 100 दिनों के भुगतान वाले काम की गारंटी देता है।

     प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) - यह योजना बेहतर आजीविका के अवसरों के लिए भारतीय युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए 2015 में शुरू की गई।

     स्टार्ट-अप इंडिया योजना - यह योजना देशभर में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए 2016 में शुरू की गई।

     स्टैंड अप इंडिया योजना - ग्रीनफील्ड उद्यमों को बढ़ावा देने,अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों के लिए बैंक ऋण की सुविधा के लिए 2016 में शुरू की गई।

युवा बेरोजगारी से निपटने के लिए नीतिगत सिफारिशें

2024 की भारत रोजगार रिपोर्ट में युवा बेरोजगारी और श्रम बाजार असमानताओं से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। रिपोर्ट रोजगार-गहन विकास को बढ़ावा देने, नौकरी की गुणवत्ता में सुधार लाने, श्रम बाजार असमानताओं को दूर करने, कौशल प्रशिक्षण को बढ़ाने और श्रम बाजार की गतिशीलता में ज्ञान के अंतर को कम करने के उद्देश्य से पाँच प्रमुख मिशनों का प्रस्ताव करती है।

विशेष रूप से, रिपोर्ट गैर-कृषि रोजगार को प्राथमिकता देने, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का समर्थन करने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का विकेंद्रीकरण करने वाली एकीकृत नीतियों का सुझाव देती है इसके अतिरिक्त, कृषि उत्पादकता बढ़ाने, गैर-कृषि क्षेत्र में अधिक रोजगार के अवसर सृजित  करने और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित करती है जिससे अर्थव्यवस्था में विविधता लाई जा सके और युवा आबादी को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकें।

निष्कर्ष

2024 की भारत रोजगार रिपोर्ट एक चेतावनी के रूप में कार्य करती है। यह रिपोर्ट बढ़ती हुई युवा बेरोजगारी और श्रम बाजार असमानताओं से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है। जनसांख्यिकीय लाभांश के जनसांख्यिकीय बोझ में बदलने के जोखिम को देखते हुए, नीति निर्माताओं को उन पहलों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा दें, कौशल विकास को बढ़ाएँ और रोजगार के अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करें।

सरकारी एजेंसियों, नागरिक समाज संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और सिफारिश किए गए नीतिगत हस्तक्षेपों को लागू करके, भारत अपनी युवा आबादी की क्षमता का उपयोग कर सकता है और सतत विकास एवं समृद्धि को प्राप्त करने के लिए उनकी प्रतिभा का लाभ उठा सकता है। हालाँकि, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रतिबद्धता, नई रणनीतियों और युवाओं के सशक्तिकरण एवं आर्थिक विकास के लिए सक्षम वातावरण बनाने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता होगी।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

प्रश्न 1.2024 की भारत रोजगार रिपोर्ट में प्रस्तुत निष्कर्षों के आलोक में, भारत में युवा बेरोजगारी में योगदान करने वाली बहुआयामी चुनौतियों की चर्चा करें। समकालीन श्रम बाजार परिदृश्य को आकार देने में कौशल विकास, रोजगार गुणवत्ता और लैंगिक असमानताओं जैसे कारकों की भूमिका का विश्लेषण करें।  (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न 2.भारत के युवाओं के सामने आने वाली रोजगार संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए 2024 की भारत रोजगार रिपोर्ट में उल्लिखित नीतिगत सिफारिशों का मूल्यांकन करें। रोजगार-गहन विकास को बढ़ावा देने, श्रम बाजार असमानताओं को कम करने और कौशल प्रशिक्षण को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई पहलों की व्यवहार्यता और संभावित प्रभाव की चर्चा करें।  (15 अंक, 250 शब्द)

Source – The Hindu