प्रसंग:
रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) 17 खनिजों का एक समूह हैं जो आधुनिक उद्योगों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हो गए हैं। इनका उपयोग स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा प्रणालियों और चिकित्सा उपकरणों सहित कई क्षेत्रों में होता है। हालाँकि ये तत्व वास्तव में दुर्लभ नहीं हैं, लेकिन इन्हें शुद्ध रूप में निकालना कठिन और महंगा होता है। वर्तमान में चीन वैश्विक उत्पादन और शोधन में अग्रणी है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता और रणनीतिक जोखिम उत्पन्न होते हैं। भारत में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े REEs भंडार हैं, जो मुख्यतः आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल जैसे तटीय राज्यों में पाए जाते हैं। लेकिन इस संभावनाशीलता के बावजूद, भारत वैश्विक उत्पादन का एक प्रतिशत से भी कम उत्पादन करता है। यह स्थिति प्रभावी नीतियों, तकनीकी प्रगति और सतत् उपायों की आवश्यकता को दर्शाती है, ताकि देश के संसाधनों का लाभ उठाया जा सके और आयात पर निर्भरता कम की जा सके।
रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स 17 तत्वों का समूह हैं, जिनमें 15 लैंथेनाइड्स, साथ में स्कैंडियम और यट्रियम शामिल हैं। इनमें उच्च घनता, चुंबकीय शक्ति और विद्युत चालकता जैसी विशेषताएँ होती हैं। नाम में “रेयर” होने के बावजूद, ये पृथ्वी की पपड़ी में आम हैं। मुख्य चुनौती यह है कि ये उच्च सांद्रता में कम मिलते हैं, जिससे इनका खनन और प्रसंस्करण महंगा और तकनीकी रूप से जटिल हो जाता है।
स्रोत:
REEs से समृद्ध प्रमुख खनिज हैं – बैस्टनासाइट, मोनाज़ाइट और लोपाराइट। भारत में मुख्य स्रोत मोनाज़ाइट है, जो विशेष रूप से तटीय रेत में पाया जाता है। मोनाज़ाइट थोरियम का भी एक प्रमुख स्रोत है, जो एक रेडियोधर्मी तत्व है, जिससे निकासी के दौरान पर्यावरणीय और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
रेयर अर्थ एलिमेंट्स के प्रकार:
परमाणु संख्या के आधार पर REEs को दो वर्गों में बाँटा गया है:
· लाइट REEs (सेरियम समूह): लैंथेनम, सेरियम, प्रसीओडिमियम, नियोडिमियम, समेरियम।
· हैवी REEs (यट्रियम समूह): गैडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम और अन्य।
लाइट REEs अधिक प्रचुर मात्रा में होते हैं और इन्हें निकालना आसान होता है, जबकि हैवी REEs दुर्लभ होते हैं और उच्च तकनीकी उपयोगों के लिए अनिवार्य हैं।
वैश्विक उत्पादन और चीन का प्रभुत्व:
1990 के दशक से चीन REE बाजार में अग्रणी रहा है। इनर मंगोलिया के बायन ओबो खनिज क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है। 1980 के दशक में अमेरिका कैलिफोर्निया की खदानों के जरिए अग्रणी उत्पादक था, लेकिन कम लागत, पर्यावरणीय नियमों की ढील और बड़े पैमाने पर शोधन क्षमता के कारण चीन ने शीघ्रता से अपना प्रभुत्व बढ़ाया।
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (2025) के अनुसार:
· चीन के पास लगभग 4.4 करोड़ मीट्रिक टन भंडार हैं।
· ब्राज़ील के पास 2.1 करोड़ मीट्रिक टन हैं।
· भारत के पास लगभग 69 लाख मीट्रिक टन हैं।
· अमेरिका के पास 19 लाख मीट्रिक टन हैं।
2024 में, चीन का वैश्विक खनन में हिस्सा लगभग 69% और शोधन में 90% से अधिक था। लेकिन 2030 तक इसके खनन हिस्से के 51% और शोधन हिस्से के 76% तक गिरने का अनुमान है, क्योंकि अन्य देश उत्पादन बढ़ा रहे हैं। यह प्रवृत्ति वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को विविध और लचीला बनाने के प्रयासों को दर्शाती है।
रेयर अर्थ एलिमेंट्स इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
REEs को अक्सर “आधुनिक तकनीक के बीज” कहा जाता है। इनकी विशिष्ट गुणधर्मों के कारण ये कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
· स्वच्छ ऊर्जा: पवन टरबाइनों, इलेक्ट्रिक वाहनों और स्मार्ट बैटरियों में प्रयुक्त मैग्नेट्स में उपयोग।
· इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, कंप्यूटर स्क्रीन, टेलीविजन और ऑडियो सिस्टम में जरूरी।
· रक्षा: सटीक-निर्देशित हथियार, राडार, एवियोनिक्स और विमान इंजनों में उपयोग।
· चिकित्सा उपकरण: MRI कॉन्ट्रास्ट एजेंट, एक्स-रे मशीन और कैंसर उपचार उपकरण REEs पर निर्भर करते हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटलीकरण और सैन्य उन्नति की वैश्विक प्रवृत्तियों के साथ, आने वाले दशकों में REEs की माँग तेजी से बढ़ेगी।
भारत के भंडार और उत्पादन:
भारत के पास दुनिया के तीसरे सबसे बड़े REEs भंडार हैं। भारतीय खनिज वर्षपुस्तिका (2023) के अनुसार:
· मोनाज़ाइट संसाधन 1.273 करोड़ टन आंके गए हैं।
· सबसे अधिक भंडार आंध्र प्रदेश में हैं, उसके बाद ओडिशा, तमिलनाडु और केरल का स्थान है।
· अधिकांश भारतीय भंडार लाइट REEs जैसे सेरियम और लैंथेनम से भरपूर हैं।
· भारी REEs सीमित मात्रा में हैं, जिससे उच्च तकनीकी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भरता बनी हुई है।
इस संसाधन आधार के बावजूद, भारत वैश्विक REEs उत्पादन का एक प्रतिशत से भी कम हिस्सा प्रदान करता है। खनन मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई Indian Rare Earths Limited (IREL) द्वारा किया जाता है। निजी क्षेत्र की भागीदारी लगभग नगण्य है, जिसका कारण नियामकीय प्रतिबंध और जटिल प्रसंस्करण प्रक्रियाएँ हैं।
नीतिगत परिवर्तन और राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन:
REEs की रणनीतिक महत्ता को समझते हुए भारत ने अपनी नीतियों में सुधार शुरू किया है। खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 2023 में संशोधन कर REEs को “महत्वपूर्ण खनिज” की श्रेणी में रखा गया। इस वर्गीकरण का उद्देश्य अन्वेषण को प्राथमिकता देना और स्वीकृति प्रक्रियाओं को सरल बनाना है।
2025 में, सरकार ने राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) शुरू किया, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता बढ़ाना है। इस मिशन के प्रमुख उद्देश्य हैं:
· संसाधनों के अन्वेषण और मैपिंग में तेजी लाना।
· घरेलू प्रसंस्करण और शोधन क्षमता का निर्माण।
· निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करना।
· ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ाना।
· ई-कचरे से REEs की पुनर्प्राप्ति के लिए पुनर्चक्रण प्रणाली का विकास।
अंतरराष्ट्रीय विकास:
चीन के प्रभुत्व के विकल्प खोजने में भारत अकेला नहीं है। अमेरिकी रक्षा विभाग ने 2020 से अब तक घरेलू आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण पर $439 मिलियन से अधिक निवेश किया है। फिर भी शोधन एक बड़ी बाधा बनी हुई है—अमेरिका में निकाली गई अधिकांश खनिज अब भी चीन भेजी जाती हैं। इसी तरह, यूरोपीय संघ और जापान भी वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारी निवेश कर रहे हैं।
भारत की ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ साझेदारियाँ – तकनीकी साझेदारी, खनन दक्षता में सुधार, और दुर्लभ भारी REEs की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं।
भारत के सामने चुनौतियाँ:
1. पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: मोनाज़ाइट खनन से रेडियोधर्मी कचरा और विषैले उप-उत्पाद उत्पन्न होते हैं। सख्त पर्यावरणीय नियम आवश्यक हैं, लेकिन ये अक्सर अनुमोदन में देरी करते हैं।
2. तकनीकी सीमाएँ: भारत के पास उन्नत शोधन सुविधाओं और भारी REEs के प्रसंस्करण के लिए आवश्यक विशेषज्ञता की कमी है।
3. बुनियादी ढाँचे की कमी: परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण के लिए आधारभूत ढाँचा अपर्याप्त है, जिससे उत्पादन बढ़ाना कठिन होता है।
4. नियामकीय बाधाएँ: कई प्रकार की स्वीकृतियाँ और जटिल प्रक्रियाएँ निजी कंपनियों को इस क्षेत्र में आने से हतोत्साहित करती हैं।
5. वैश्विक प्रतिस्पर्धा: जैसे-जैसे भारत अपनी क्षमता का विकास करता है, स्थापित आपूर्तिकर्ता लागत लाभ और बाज़ार संबंधों के कारण आगे रह सकते हैं।
आगे की राह:
भारत को REEs क्षेत्र में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा:
· निवेश और आधुनिक तकनीक को आकर्षित कर घरेलू उत्पादन को मजबूत करना।
· देश में शोधन और मूल्य संवर्धित विनिर्माण को विकसित करना।
· सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना और नियामकीय प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
· सुरक्षित और स्वच्छ खनन तकनीकों के लिए अनुसंधान में निवेश करना।
· ई-कचरे से REEs पुनर्चक्रण को वैकल्पिक स्रोत के रूप में बढ़ावा देना।
· तकनीकी हस्तांतरण और विविध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को गहरा करना।
निष्कर्ष:
रेयर अर्थ एलिमेंट्स आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को चलाने वाली तकनीकों के लिए अनिवार्य हैं। भारत के विशाल भंडार उसे न केवल आयात पर निर्भरता घटाने, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में योगदान देने की स्थिति में रखते हैं। लेकिन इस क्षमता को साकार करने के लिए देश को पर्यावरणीय, तकनीकी और नीतिगत चुनौतियों से पार पाना होगा। राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन जैसे हालिया सुधार एक महत्वपूर्ण दिशा में उठाया गया कदम हैं। सफलता सतत निवेश, नवाचार और इन महत्वपूर्ण संसाधनों के सतत एवं कुशल विकास पर निर्भर करेगी।
मुख्य प्रश्न: भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों के लिए दुर्लभ मृदा तत्वों (REE) के रणनीतिक महत्व पर चर्चा कीजिए। महत्वपूर्ण भंडार होने के बावजूद भारत को अग्रणी उत्पादक बनने से रोकने वाली प्रमुख बाधाएँ क्या हैं? |