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Video Section / 15 May 2024

सौर तूफानों का प्रभाव और उससे निपटने की रणनीति - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ-

शुक्रवार रात को, विश्व भर के लोगों ने एक दुर्लभ नज़ारा देखा: आसमान में रोशनी के पर्दों की तरह प्रदर्शित होने वाली विशाल ध्रुवीय अरोरा (aurorae) ज्योतियाँ थी यह एक दुर्लभ घटना थी जिसे कई स्थानों पर देखा गया, जहाँ आमतौर पर इसे देखना असामान्य होता है, जैसे कि भारत के लद्दाख में स्थित हानले में भारतीय खगोलीय वेधशाला।

जिन सौर घटनाओं के कारण ये ज्योतियाँ बनती हैं, उनका पृथ्वी पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें ब्लैकआउट, उपग्रह को नुकसान पहुंचा, अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खतरे और पूरे सौर मंडल के अंतरिक्ष मौसम में गड़बड़ी आदि शामिल हैं। इसलिए, इन घटनाओं का अध्ययन, समझ और भविष्यवाणी करना सौर भौतिकी अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

औरोरा के पीछे का विज्ञान

1.सौर तूफानों की भूमिका

सूर्य सिर्फ ऊष्मा और प्रकाश ही नहीं देता, बल्कि ऊर्जा और छोटे कणों का भी उत्सर्जन करता है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इंसानों को इनमें से अधिकतर चीजों से बचाता है। ध्यातव्य है कि सूर्य का ऊर्जा उत्पादन स्थिर नहीं रहता। निरंतर चलने वाली सौर पवनों के अलावा, सौर तूफान भी आते हैं। इनमें से एक प्रकार, कोरोनल मास इजेक्शन है जिसमे  आवेशित गैस की एक विशाल ऊर्जा अंतरिक्ष में तीव्र गति से निकलती है।

जब कोई सौर तूफान पृथ्वी की ओर आती है, तो कुछ ऊर्जा और कण ध्रुवों पर स्थित चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं। ये कण वायुमंडलीय गैसों के साथ परस्पर क्रिया करते हुए, अरोरा नामक अद्भुत प्रकाश प्रदर्शन का निर्माण करते हैं।

2. सनस्पॉट की भूमिका -

ये प्रचंड तूफान बहुत ही दुर्लभ हैं, आमतौर पर कुछ दशकों में एक बार ही आते हैं। दोनों ही घटनाएं सूर्य के चुंबकीय चक्र के चरम पर पहुंचने के साथ घटित हुईं हैं।  सूर्य का चुंबकीय चक्र एक 11 वर्ष का चक्र होता है जिसके तहत सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र उलट जाता है।  

सूर्य के चुंबकीय चक्र के चरम के दौरान, चुंबकीय क्षेत्र के उलटने से सूर्य की सतह पर चुंबकीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों का निर्माण होता है, जिन्हें सौर कलंक (sunspots) कहते हैं।  ये सौर कलंक पूरे सौर चक्र के दौरान बड़े और छोटे होते रहते हैं। 10 मई को पृथ्वी पर पहुँचने वाले आवेशित कण इन्हीं सौर कलंकों में होने वाली गतिविधियों से उत्पन्न हुए थे। यह सौर कलंक पिछले चक्र की तुलना में अधिक सक्रिय होते जा रहे है।

2010 के दशक से चल रहे सौर चक्रों में, किसी भी सन स्पॉट के कारण तीव्र भू-चुंबकीय तूफान निर्मित नहीं हुआ है  

सनस्पॉट एआर 3664 का उदय

मई की शुरुआत से ही वैज्ञानिक AR 3664 सन स्पॉट की कड़ी निगरानी रख रहे हैं। 7 मई तक, यह पृथ्वी की चौड़ाई से 16 गुना बड़ा हो गया था और इसमें विशाल चुंबकीय ऊर्जा संग्रहित है। ऐसे सौर कलंक में अतिभारित चुंबकीय क्षेत्र तेजी से अलग होकर फिर से जुड़ सकते हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा का विस्फोट होता है और इससे आवेशित कणों की विशाल मात्रा अंतरिक्ष में निकलती है, जिन्हें कोरोनल मास इजेक्शन (CME) के नाम से जाना जाता है। 10 मई को, तीन CME पृथ्वी पर आए इसके साथ में सौर ज्वाला - विकिरण के शक्तिशाली विस्फोट भी आए।

सूर्य ज्वालामुखी तूफानों का प्रभाव

  • भू-चुंबकीय तूफान पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में उतार-चढ़ाव पैदा कर सकते हैं, जिससे विद्युत लाइनों (संभावित बिजली व्यवधान) के माध्यम से विद्युत का प्रवाह तेज हो जाता है, जैसा कि 2003 में स्वीडन और दक्षिण अफ्रीका में हुआ था।
  • 10 मई के तूफान, जिसे CESSI द्वारा गंभीर के रूप में वर्गीकृत किया गया था, इसने बिजली ग्रिड और जीपीएस प्रणालियों में केवल मामूली व्यवधान पैदा किए थे। न्यूजीलैंड जैसे देशों में, बिजली ग्रिड संचालकों ने कटौती को रोकने के लिए स्थानीय सर्किटों को पहले ही बंद कर दिया था, यह कदम जल्दी चेतावनियों के महत्व को दर्शाता है।
  • ये तूफान उपग्रहों के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं, जो संचार और जीपीएस नेविगेशन के लिए महत्वपूर्ण हैं। कम-आवृत्ति संकेतों का उपयोग करने वाले हवाई जहाज और समुद्री जहाज सौर गतिविधि से प्रभावित होते हैं।
  • कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चुंबकत्व का उपयोग करके नेविगेट करने वाले प्रवासी जानवर, जैसे पक्षी और मधुमक्खियां भी प्रभावित हो सकते हैं। उदाहरण: भू-चुंबकीय तूफानों के दौरान कुछ कबूतर घर वापस नहीं आते हैं, ऐसी घटनाओं को "स्मैशेस" कहा जाता है।
  • तेजी से उतार-चढ़ाव वाले भू-चुंबकीय क्षेत्र पाइपलाइनों में भू-चुंबकीय रूप से प्रेरित धाराएं पैदा कर सकते हैं, जिससे इंजीनियरों के लिए कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। परिणामतः पाइपलाइन फ्लो मीटर से गलत प्रवाह जानकारी मिल सकती है और पाइपलाइन की जंग दर तीव्रता से बढ़ सकती है।
  • कोरोनल मास इजेक्शन द्वारा लाए गए अति उच्च-ऊर्जा वाले कण मनुष्यों और अन्य स्तनधारियों के लिए विकिरण विषाक्तता पैदा कर सकते हैं।

आदित्य-एल1 की भूमिका और भविष्य की निगरानी

  • अंतरिक्ष वैज्ञानिक सूर्य तूफान शुरू होने से पहले उनकी भविष्यवाणी करने कोशिश करते हैं। लेकिन अभी तक  केवल उसी दौरान सौर तूफान को पहचाना जा सकता हैं, जब वे हो रहे होते हैं।
  •  सूर्य की निगरानी करने वाले कई अंतरिक्ष उपग्रह L1 बिंदु पर तैनात हैं, जो पृथ्वी-सूर्य दिशा में लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर स्थित है। इससे सूर्य का अबाध दृश्य मिलता है। इन अंतरिक्ष उपग्रह में से एक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का आदित्य-L1 है, जो इसी वर्ष मार्च में L1 बिंदु पर पहुंचा था।
  • आदित्य-L1 के मुख्य उपकरण, विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) के प्रमुख अन्वेषक ने बताया कि इसके द्वारा अभी तक अन्वेषण किया जा रहा है और इसने हाल की घटनाओं पर अभी तक कोई डेटा प्रदान नहीं किया है।
  • हालांकि, अन्य उपकरणों से महत्वपूर्ण डेटा प्राप्त हुआ है। 14 मई को, इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार ASPEX पेलोड ने सौर वायु में अल्फा कण और प्रोटॉन प्रवाह में वृद्धि का पता लगाया है, जो सूर्य तूफान की उपस्थिति का संकेत देता है।
  • इसके अतिरिक्त, SoLEXS और HEL1OS पेलोड ने हाल के दिनों में कई X- और M-श्रेणी के फ्लेयर्स की पहचान की है। चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने भी चंद्रमा के चारों ओर सौर उत्सर्जनों के संकेतों का पता लगाया है।

निष्कर्ष

सौर तूफान और उससे पैदा होने वाली अरोरा घटना अद्भुत और साथ ही संभावित रूप से खतरनाक हैं। पृथ्वी की तकनीक और बुनियादी ढांचे पर इनके प्रभावों को कम करने के लिए इन घटनाओं को समझना महत्वपूर्ण है। हाल ही में आए भू-चुंबकीय तूफान भविष्य की सौर गतिविधि से बचाने के लिए निरंतर निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। सौर भौतिकी अनुसंधान का लक्ष्य इन तूफानों की शुरुआत से पहले ही उनकी भविष्यवाणी करना और उनके संभावित परिणामों के लिए बेहतर तैयारी सुनिश्चित करना है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

1.    सौर तूफान, विशेष रूप से कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) पृथ्वी की प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे को कैसे प्रभावित करते हैं, और इन प्रभावों को कम करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (10 Marks, 150 Words)

2.    सौर तूफानों की भविष्यवाणी और निगरानी में सुधार के लिए सौर भौतिकी अनुसंधान में क्या प्रगति की जा रही है, और इसरो के आदित्य-एल1 जैसे मिशन इन प्रयासों में कैसे योगदान करते हैं? (15 Marks, 250 Words)