होम > Blog

Blog / 20 May 2025

याला ग्लेशियर मृत घोषित

सन्दर्भ:

नेपाल का याला ग्लेशियर (जो कभी हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में हिम अध्ययन और ग्लेशियोलॉजिकल प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र हुआ करता था) अब आधिकारिक रूप से "मृत" घोषित कर दिया गया है। यह ग्लेशियर 1970 के दशक से अब तक 66% तक सिकुड़ चुका है और लगभग 784 मीटर पीछे हट चुका है। लांगटांग घाटी में स्थित याला, नेपाल का पहला ऐसा ग्लेशियर बन गया है, जिसे उसके लगभग पूर्णतः समाप्त हो जाने के कारण मृत घोषित किया गया है। इसकी इस स्थिति पर ग्लेशियोलॉजिस्ट और स्थानीय समुदायों ने गहरा शोक व्यक्त किया है।

ग्लेशियर का अंतिम संस्कार : एक प्रतीकात्मक समारोह

12 मई 2025 को, याला ग्लेशियर के तेज़ी से विलुप्त होने के प्रतीकस्वरूप अंतिम संस्कार आयोजित किया गया। यह आयोजन उन वैश्विक प्रयासों की श्रृंखला का हिस्सा था जो जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे हिमनदों के नुकसान को चिन्हित करते हैं। इससे पहले भी कई देशों में इसी तरह के समारोह आयोजित किए जा चुके हैं:

         ओकजोकुल्ल ग्लेशियर, आइसलैंड (2019): दुनिया का पहला ग्लेशियर, जिसका प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार किया गया।

         पिज़ोल ग्लेशियर, स्विट्ज़रलैंड (2019): अत्यधिक पिघलने के कारण मृत घोषित।

         क्लार्क ग्लेशियर, अमेरिका (2020): जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से समाप्त।

         अयोलाको ग्लेशियर, मेक्सिको (2021): बढ़ते तापमान के चलते पूरी तरह लुप्त हो गया।

ग्लेशियरों के नुकसान के परिणाम:

याला जैसे ग्लेशियरों का समाप्त होना पर्यावरण और मानव जीवन दोनों पर गंभीर असर डालता है:

         वैश्विक तापमान में वृद्धि: जब ग्लेशियर घटते हैं, तो बर्फ की परावर्तक सतह (albedo effect) कम हो जाती है, जिससे धरती अधिक गर्मी सोखती है और ग्लोबल वॉर्मिंग की गति तेज़ हो जाती है।

         समुद्र स्तर में बढ़ोतरी: 2001 से अब तक ग्लेशियरों के पिघलने से वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 2 सेंटीमीटर की वृद्धि हो चुकी है।

         जल चक्र में असंतुलन: ग्लेशियर पृथ्वी के ताज़े पानी का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा संजोकर रखते हैं। इनके तेज़ी से पिघलने से जल संसाधनों की उपलब्धता पर खतरा मंडराने लगता है और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

         प्राकृतिक आपदाओं का खतरा: ग्लेशियरों के खत्म होने से ग्लेशियल झील फटने (GLOF) और हिमस्खलन जैसी आपदाओं की आशंका बढ़ जाती है, जो आसपास के समुदायों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं।

स्थानीय समुदायों पर प्रभाव:

याला ग्लेशियर के समाप्त होने का असर केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आसपास रहने वाले समुदायों की ज़िंदगी पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है:

         जल संकट: ग्लेशियरों के पिघलने व स्वरूप में बदलाव से जल स्रोतों की नियमितता प्रभावित होती है, जिससे सिंचाई, पीने के पानी और आजीविका पर निर्भर लोगों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है।

         पर्यावरणीय असंतुलन: ग्लेशियरों के खत्म होने से पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है, जिससे वन्य जीवों और पौधों की कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच जाती हैं।

         सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व: याला जैसे ग्लेशियर केवल जल स्रोत नहीं होते, वे स्थानीय समुदायों के लिए सांस्कृतिक पहचान और आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक भी होते हैं। इनका लुप्त होना सामाजिक और भावनात्मक रूप से भी एक गहरी क्षति है।

ग्लेशियर संरक्षण के प्रयास:
वैश्विक पहलें:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष घोषित करना और हर साल 21 मार्च को विश्व ग्लेशियर दिवस मनाना।
  • यूनेस्को का अंतर-सरकारी जल विज्ञान कार्यक्रम।
  • आईयूसीएन का हिमालयन अनुकूलन नेटवर्क।
  • डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग हिमालयाज़ पहल।

भारत के प्रयास:

  • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन।
  • हिमालयी हिम क्षेत्र पर केंद्रित नेटवर्क कार्यक्रम।
  • हिमांश रिसर्च स्टेशन, जो भारतीय हिमालय में ग्लेशियरों पर निगरानी रखता है।
  • INCOIS द्वारा GLOF अलर्ट प्रणाली, जो झीलों के फटने के खतरे की रियल-टाइम जानकारी देती है।

निष्कर्ष:

याला ग्लेशियर का "मृत" घोषित किया जाना यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की नहीं, बल्कि वर्तमान की एक गंभीर और स्पष्ट चुनौती है। नेपाल के सबसे अधिक शोधित ग्लेशियरों में शामिल याला का इस तेज़ी से समाप्त होना एक चेतावनी है, अगर अब भी हम सचेत नहीं हुए, तो आने वाले वर्षों में कई और प्राकृतिक धरोहरें खो सकती हैं। यह समय है जब वैश्विक समुदाय को एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस और त्वरित कदम उठाने चाहिए।