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Blog / 12 May 2025

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2025

संदर्भ:

हाल ही में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2025 प्रकाशित किया गया, जो वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता में गंभीर गिरावट को दर्शाता है। पहली बार, वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति को कठिन स्थितिके रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर बढ़ते आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी खतरों को दर्शाता है।

मुख्य बिंदु:

1. आर्थिक अस्थिरता और मीडिया का अस्तित्व:

  • 180 में से 160 देशों को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे स्वतंत्र मीडिया संस्थानों का अस्तित्व संकट में है। यह वित्तीय दबाव अब केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि विकसित लोकतंत्रों को भी प्रभावित कर रहा है।
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका 57वें स्थान पर (दो स्थान नीचे) आ गया है। ट्यूनिशिया (129वां, 11 स्थान नीचे) और अर्जेंटीना (87वां, 21 स्थान नीचे) में और भी अधिक गिरावट देखी गई।
    • इन चुनौतियों को राजनीतिक अस्थिरता ने और बढ़ाया है, जैसे कि फिलिस्तीन (163वां) और इज़राइल (112वां, 11 स्थान नीचे), जहां संघर्ष ने प्रेस संचालन को और बाधित किया है।

2. मीडिया स्वामित्व का केंद्रीकरण और आत्म-नियंत्रण:

  • मीडिया स्वामित्व के केंद्रीकरण से अधिनायकवादी और लोकतांत्रिक दोनों प्रकार की सरकारों में संपादकीय स्वतंत्रता पर असर पड़ रहा है।
    • ऑस्ट्रेलिया (29वां), कनाडा (21वां), चेकिया (10वां) और फ्रांस (25वां, 4 स्थान नीचे) सहित 46 देश सीमित मीडिया विविधता की समस्या से जूझ रहे हैं।
    • रूस (171वां, 9 स्थान नीचे) जैसे अधिक चरम मामलों में राज्य द्वारा अधिकांश मीडिया पर नियंत्रण होने से स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए कोई स्थान नहीं बचा है।

3. कानूनी प्रतिबंध और राजनीतिक हस्तक्षेप:

  • विदेशी प्रभावको सीमित करने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग स्वतंत्र मीडिया को दबाने के लिए किया जा रहा है।
    • जॉर्जिया (114वां, 11 स्थान नीचे) ने ऐसे ही कानून पारित किए हैं, जबकि मध्य पूर्व और मध्य एशिया के देश जैसे जॉर्डन (147वां, 15 स्थान नीचे) अस्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत बढ़ती दमनकारी नीतियों का सामना कर रहे हैं।

4. संपादकीय हस्तक्षेप का व्यापक प्रभाव:

  • रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) के अनुसार, 180 में से 92 देशों में संपादकीय हस्तक्षेप पाया गया है।
    • रवांडा (146वां), संयुक्त अरब अमीरात (164वां) और वियतनाम (173वां) जैसे देशों में मीडिया मालिक अक्सर संपादकीय निर्णयों में हस्तक्षेप करते हैं, जिससे पत्रकारिता की स्वतंत्रता और नैतिक रिपोर्टिंग पर गंभीर असर पड़ता है।

2025 की प्रमुख रैंकिंग्स:

  • भारत 151वें स्थान पर है और इसका कुल स्कोर 32.96 है। यह 2024 की 159वीं रैंक से मामूली सुधार है। हालांकि, यह थोड़ी सी प्रगति पत्रकारों के खिलाफ खतरों, राजनीतिक रूप से प्रेरित सेंसरशिप और सूचनाओं के असमान प्रवाह जैसी स्थायी चुनौतियों के सामने कम प्रतीत होती है।
  • शीर्ष प्रदर्शन करने वाले देश: नॉर्वे (92.31) शीर्ष स्थान पर बना हुआ है, इसके बाद एस्टोनिया, नीदरलैंड, स्वीडन और फिनलैंड का स्थान है। ये देश मजबूत लोकतांत्रिक संस्थानों, ठोस कानूनी सुरक्षा और विविध मीडिया व्यवस्था से लाभान्वित हैं।
  • निचले स्थान वाले देश: अंतिम स्थानों पर ऐसे देश हैं जहां सेंसरशिप और अधिनायकवाद गहराई तक फैला हुआ है। इरिट्रिया (11.32) अंतिम स्थान पर है, इसके बाद उत्तर कोरिया, चीन, सीरिया और ईरान का स्थान है। इन देशों में पत्रकारों को मनमानी गिरफ्तारी, डराने-धमकाने और व्यापक सरकारी प्रचार का सामना करना पड़ता है।

निष्कर्ष:

2025 का सूचकांक वैश्विक पत्रकारिता की बढ़ती असुरक्षा को उजागर करता है। आर्थिक कमजोरी, राजनीतिक दबाव और कानूनी दमन जैसे खतरे अब संरचनात्मक और प्रणालीगत बन चुके हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए न सिर्फ पत्रकारों की रक्षा करनी होगी, बल्कि ऐसे स्वतंत्र मीडिया तंत्र में निवेश करना होगा जो बाजार और राजनीतिक दबावों के बावजूद मजबूती से टिके रह सकें।