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Blog / 26 Sep 2025

वर्ल्ड फूड इंडिया 2025

संदर्भ:

वर्ल्ड फूड इंडिया (WFI) का चौथा संस्करण 25 से 28 सितंबर 2025 तक भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित हुआ। यह अंतरराष्ट्रीय खाद्य महोत्सव निवेश को आकर्षित करने, नवीन तकनीकों को प्रदर्शित करने और भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है।

उद्देश्य:

·        भारत को वैश्विक खाद्य केंद्र बनाना: कृषि संसाधनों और विविधता की ताकत का उपयोग कर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में वैश्विक निवेश और व्यापार को आकर्षित करना।

·        एमएसएमई और सूक्ष्म उद्यमियों को सशक्त करना: उनकी प्रौद्योगिकी, ऋण और बाजार तक पहुंच को बेहतर बनाना।

·        नवाचार और स्थिरता को प्रोत्साहित करना: खाद्य प्रौद्योगिकी, पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग, कोल्ड चेन समाधान और खाद्य अपशिष्ट कम करने की रणनीतियों को बढ़ावा देना।

·        पूरे खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ना: किसानों से लेकर निर्यातकों और प्रसंस्करणकर्ताओं से लेकर नवप्रवर्तकों तक, सभी हितधारकों को एक मंच पर लाना।

·        विनियामक मानकों को सुदृढ़ करना: वैश्विक नियामक संवाद को बढ़ावा देकर खाद्य सुरक्षा और निर्यात तैयारियों में सुधार करना।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के बारे में:

खाद्य प्रसंस्करण वह प्रक्रिया है, जिसमें कच्चे पौधों और पशु उत्पादों को साफ़ करने, ग्रेडिंग, मिलिंग, संरक्षण और पैकेजिंग जैसी विधियों के माध्यम से खाने योग्य और बाजार में बिकने योग्य खाद्य पदार्थों में बदला जाता है।

भारत की स्थिति और प्रमुख योगदान:

·        भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग दुनिया का छठा सबसे बड़ा उद्योग है।

·        भारत फलों और सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर तथा डेयरी उत्पादन में पहले स्थान पर है।

·        यह क्षेत्र कृषि के सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में लगभग 9% और भारत के कृषि निर्यात में लगभग 23% का योगदान करता है।

·        यह उद्योग मूल्य श्रृंखला में 70 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है।

World Food India 2025: Objectives, Key Takeaways & Check Food Processing  Industries Stats

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए सहायक कारक:

·        जीवनशैली और जनसांख्यिकी में बदलाव: लगभग 65% भारतीय 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। बढ़ती आय, शहरीकरण और व्यस्त जीवनशैली के कारण प्रसंस्कृत और तैयार खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ रही है।

·        प्रचुर मात्रा में कच्चा माल आधार: भारत दूध, केला, आम, अदरक में अग्रणी है और चावल, गेहूं, फल और सब्जियों में शीर्ष उत्पादक देशों में शामिल है, जिससे साल भर कच्चा माल उपलब्ध रहता है।

·        तकनीकी उन्नति और डिजिटलाइजेशन: एआई, आईओटी, उपग्रह निगरानी, स्मार्ट आपूर्ति श्रृंखलाओं का उपयोग अपशिष्ट को कम करता है, ट्रेसबिलिटी में सुधार करता है, और खेत से कांटे तक एकीकरण को सुव्यवस्थित करता है।

·        लॉजिस्टिक्स और बाजार तक पहुंच: व्यवस्थित रिटेल, ई-कॉमर्स, कोल्ड चेन नेटवर्क और कुशल अंतिम-मील डिलीवरी घरेलू बाजारों का विस्तार करती हैं। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का निर्यात लगभग 11.74% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है, जो लगभग $16.2 बिलियन तक पहुंच गया है।

·        नीति और निवेश प्रोत्साहन: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) जैसी योजनाएं और 100% ऑटोमेटिक रूट के तहत FDI वैश्विक कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करती हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ:

विखंडित आपूर्ति श्रृंखला:

·         लगभग 86% किसान छोटे या सीमांत हैं, जिससे उत्पादन का समुचित संग्रहण और एकीकरण कठिन हो जाता है।

·         किसानों को अंतिम मूल्य का केवल 30–35% ही मिलता है, जबकि विकसित देशों में यह हिस्सा 65–70% तक होता है।

बुनियादी ढांचे की कमी और खाद्य हानि

·         पर्याप्त कोल्ड चेन और भंडारण सुविधाएँ न होने के कारण भारत को हर साल लगभग ₹92,651 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ता है।

·         कटाई के बाद 25–30% फल और सब्जियाँ खराब हो जाती हैं।

जटिल नियामक ढांचा

    • कई नियामक संस्थाओं और सिंगल-विंडो क्लीयरेंस की कमी के कारण, विशेष रूप से MSME क्षेत्र को देरी और अधिक अनुपालन लागत का सामना करना पड़ता है।

कौशल और गुणवत्ता की सीमाएँ

·         खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के केवल 3% कार्यबल को ही औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त है।

·         मानकों में असंगति के चलते निर्यात में बाधा आती है। उदाहरणस्वरूप, 2020 से 2024 के बीच यूरोपीय संघ ने भारत की 527 प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं को निर्यात से रोक दिया।

सरकारी पहल और सुधार:

·         पीएम किसान सम्पदा योजना: खाद्य प्रसंस्करण के लिए बुनियादी ढांचा मजबूत करना, अपशिष्ट को कम करना और निर्यात को प्रोत्साहन देना।

·         पीएम-एफएमई योजना: माइक्रो फूड प्रोसेसिंग इकाइयों और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को औपचारिक ढांचे में लाकर उन्हें बेहतर अवसर प्रदान करना।

·         विशेष खाद्य प्रसंस्करण निधि: नाबार्ड के माध्यम से लगभग ₹2,000 करोड़ की सहायता, जिसका उपयोग बुनियादी ढांचे और सप्लाई चेन परियोजनाओं में किया जा रहा है।

·         पीएलआई योजना (फूड प्रोसेसिंग के लिए): खाद्य प्रसंस्करण और कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को आकर्षित और बढ़ावा देना।

·         मेगा फूड पार्क योजना: एकीकृत प्रसंस्करण और भंडारण केंद्र विकसित करना, ताकि उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण की कड़ी को मजबूत किया जा सके।

·         राष्ट्रीय मखाना बोर्ड: भारतीय सुपरफूड्स, विशेष रूप से मखाना, को वैश्विक स्तर पर पहचान और बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

वर्ल्ड फूड इंडिया 2025 भारत को वैश्विक खाद्य प्रसंस्करण शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसकी व्यापक नीति संरचना, अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां, और सततता व नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने से यह कार्यक्रम भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाने में मदद करेगा। सहयोग, निवेश और ज्ञान आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर वर्ल्ड फूड इंडिया 2025 भारत के खाद्य भविष्य को आकार देने और देश के विकसित, समावेशी और वैश्विक प्रतिस्पर्धी बनने के विज़न में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।