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Blog / 12 Jun 2025

विश्व बैंक ने भारत के वित्त वर्ष 2025–26 के लिए वृद्धि अनुमान 6.3% स्थिर रखी

संदर्भ:

विश्व बैंक की हालिया "वैश्विक आर्थिक संभावनाएं" रिपोर्ट में भारत की वित्त वर्ष 2025–26 (FY26) के लिए जीडीपी वृद्धि दर 6.3% पर बनाए रखी गई है, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था नीतिगत अनिश्चितता और व्यापारिक तनावों के चलते मंदी का सामना कर रही है। यह अनुमान भारत की पहचान दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में फिर से स्थापित करता है।

भारत की आर्थिक स्थिति:

·         FY26 (2025–26) में जीडीपी वृद्धि दर: 6.3% पर स्थिर बनी रहेगी।

·         FY27 (2026–27) का अनुमान: वृद्धि दर बढ़कर 6.5% होने की संभावना।

·         FY28 (2027–28) का अनुमान: 6.7% तक पहुँचने का अनुमान, जिसमें मजबूत सेवा क्षेत्र और निर्यात में धीरे-धीरे सुधार सहायक होंगे।

·         घरेलू महंगाई दर: FY26 में औसतन 3.7% रहने की उम्मीद है, जिससे सरकार को विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत कदम उठाने की गुंजाइश मिलेगी।

·         सार्वजनिक ऋण-से-जीडीपी अनुपात: राजकोषीय अनुशासन और राजस्व में वृद्धि के चलते धीरे-धीरे गिरावट की ओर अग्रसर रहने की संभावना है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था का पूर्वानुमान:
जहां भारत की आर्थिक मजबूती उभरकर सामने आई है, वहीं विश्व बैंक की रिपोर्ट में वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंताजनक बताई गई है। दुनिया के लगभग 70% देशों की वृद्धि दर में गिरावट का पूर्वानुमान लगाया गया है, जिसका कारण है व्यापारिक तनाव, नीतिगत अनिश्चितता और निवेश विश्वास में कमी।

  • 2025 में वैश्विक वृद्धि दर: घटकर 2.3% (जनवरी के 2.7% अनुमान से नीचे), जो 2008 के बाद मंदियों को छोड़कर सबसे धीमी रफ्तार है
  • 2026 का अनुमान: थोड़ा सुधार होकर 2.4%
  • 2027 का पूर्वानुमान: हल्की बढ़ोतरी के साथ 2.6%, जो फिर भी महामारी से पहले की गति से कम है

वैश्विक मंदी के प्रमुख कारण:

1.        व्यापार में गिरावट: 2000 के दशक में जहां वैश्विक व्यापार औसतन 5% की दर से बढ़ रहा था, वहीं 2020 के दशक में यह घटकर 3% से भी कम रह गया है। यह गिरावट वैश्विक उत्पादन की धीमी रफ्तार को दर्शाती है।

2.      निवेश में गिरावट: नीतिगत अस्थिरता और वित्तीय उतार-चढ़ाव ने वैश्विक पूंजी प्रवाह को कमजोर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते वैश्विक कर्ज के बीच निवेश की गति भी धीमी पड़ी है।

3.      टैरिफ: संरक्षणवादी नीतियों की वापसी, विशेषकर अमेरिका और चीन द्वारावैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रही है। अप्रैल 2025 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ, भले ही अस्थायी रूप से रोक दिए गए हों, लेकिन वे अब भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा जोखिम बने हुए हैं।

4.     भूराजनीतिक तनाव: अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापार वार्ताएं, जो निर्यात प्रतिबंधों और जवाबी उपायों से प्रभावित हैं, वैश्विक वृद्धि को या तो और कमजोर कर सकती हैं या फिर उसमें मामूली सुधार ला सकती हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इन वार्ताओं का परिणाम क्या निकलता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और राजकोषीय नीति:

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने नीतिगत रुख में नरमी अपनाते हुए रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती की है। इस प्रकार, 2025 में अब तक कुल 100 bps की कटौती की जा चुकी है। मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने निजी उपभोग और निवेश को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर ज़ोर दिया है, विशेष रूप से तब जब मुद्रास्फीति लक्षित सीमा के भीतर बनी हुई है।

हालाँकि विश्व बैंक का दृष्टिकोण अपेक्षाकृत सतर्क है, लेकिन आरबीआई और सरकार अधिक आशावादी हैं और उन्होंने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 6.3% से 6.8% के बीच आर्थिक वृद्धि का अनुमान जताया है।

निष्कर्ष: 

वैश्विक स्तर पर आर्थिक अनिश्चितताएँ और चुनौतियाँ भले ही बनी हुई हों, लेकिन भारत अपनी स्थिरता और तेज़ विकास दर के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है। विश्व बैंक का स्थिर अनुमान भारत की आर्थिक मजबूती को दर्शाता है, साथ ही यह संकेत भी देता है कि आगे की वृद्धि के लिए नीतिगत सहयोग, निर्यात का विविधीकरण और उत्पादकता बढ़ाने वाले संरचनात्मक सुधारों में निरंतर निवेश करना बेहद आवश्यक होगा।