संदर्भ:
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दो महत्वपूर्ण रिपोर्टें “वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे और मेंटल हेल्थ एटलस 2024” प्रकाशित की हैं। ये रिपोर्टें कोविड-19 महामारी के पश्चात पहली बार वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के अद्यतन आँकड़े प्रस्तुत करती हैं। इन दस्तावेज़ों में विश्वभर में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के निरंतर बढ़ते बोझ और इससे जुड़ी चुनौतियों को स्पष्ट रूप से उजागर किया गया है
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य बोझ (2021)
· वर्ष 2021 में, विश्व स्तर पर 1 अरब से अधिक व्यक्ति, अर्थात हर 7 में से 1 व्यक्ति, किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या से प्रभावित पाया गया।
· कुल मानसिक स्वास्थ्य मामलों में से दो-तिहाई से अधिक का संबंध मुख्यतः चिंता और अवसाद जैसी स्थितियों से था।
· गंभीर मानसिक रोगों की बात करें तो, सिज़ोफ्रेनिया ने प्रत्येक 200 में से 1 वयस्क को, जबकि बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) ने प्रत्येक 150 में से 1 वयस्क को प्रभावित किया।
आत्महत्या:
· वर्ष 2021 में, दुनिया भर में हर 100 में से 1 से अधिक मौतें आत्महत्या के कारण हुईं, जो वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
· आत्महत्या 15 से 29 वर्ष की आयु के युवाओं में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक बनी हुई है।
· यह समस्या विशेष रूप से युवाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों (जैसे: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, जातीय/लिंग अल्पसंख्यक आदि) को असमान रूप से प्रभावित करती है।
· साथ ही, आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि पुरुषों में आत्महत्या के कारण मृत्यु की संभावना महिलाओं की तुलना में अधिक होती है।
आर्थिक और सामाजिक लागत:
· मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं, विशेष रूप से उत्पादकता में कमी के कारण, भारी आर्थिक बोझ उत्पन्न करती हैं।
· अवसाद और चिंता के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान होता है।
सेवाओं और नीतियों में अंतराल:
· 2020 से अनेक देशों ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी नीतियों को तो सुदृढ़ किया है, लेकिन अभी भी कानूनी सुधारों की स्पष्ट कमी बनी हुई है।
· मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च, अब भी कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 2% है, जो 2017 से अपरिवर्तित बना हुआ है।
· यह खर्च उच्च आय वाले देशों में प्रति व्यक्ति 65 अमेरिकी डॉलर तक है, जबकि निम्न आय वाले देशों में मात्र 0.04 अमेरिकी डॉलर तक सीमित है।
भारत का मानसिक स्वास्थ्य संकट:
· भारत एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है, अनुमान है कि लगभग 15 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है। अवसाद लगभग 5.6 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है, जबकि 3.8 करोड़ लोग चिंता विकारों से पीड़ित हैं, जिसके परिणामस्वरूप 2012 और 2030 के बीच 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुमानित रोग भार और आर्थिक नुकसान हुआ है।
प्रमुख चुनौतियाँ:
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- उपचार अंतराल: मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले 70-92% लोगों को पर्याप्त देखभाल नहीं मिल पाती है।
- सामाजिक कलंक: मानसिक बीमारी के बारे में नकारात्मक धारणाएँ और भय कई लोगों को मदद लेने से रोकते हैं।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ अभी भी अपर्याप्त रूप से विकसित हैं और जमीनी स्तर पर अपर्याप्त रूप से क्रियान्वित हैं।
- योगदान देने वाले कारक: तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण, शैक्षणिक दबाव, सामाजिक-आर्थिक संघर्ष, मादक द्रव्यों का सेवन और कोविड-19 महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और बदतर बना दिया है।
- उपचार अंतराल: मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले 70-92% लोगों को पर्याप्त देखभाल नहीं मिल पाती है।
भारत की मानसिक स्वास्थ्य पहल:
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- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 ने आत्महत्या के प्रयासों को अपराधमुक्त कर दिया, पुनर्वास और अधिकार-आधारित देखभाल पर ज़ोर दिया।
- 1982 में शुरू किया गया राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य स्वास्थ्य सेवा के साथ एकीकृत करता है, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देता है और कुशल पेशेवरों का विकास करता है।
- 2022 में शुरू किया गया टेली मानस कार्यक्रम, 20 भाषाओं में 24/7 निःशुल्क टेली-मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करता है, जिससे देश भर में इसकी पहुँच का विस्तार होता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 ने आत्महत्या के प्रयासों को अपराधमुक्त कर दिया, पुनर्वास और अधिकार-आधारित देखभाल पर ज़ोर दिया।
आगे की राह:
डब्लूएचओ ने सरकारों से मानसिक स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाने, इसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल करने, सेवाओं की पहुँच बढ़ाने और कलंक हटाने का आह्वान किया है। रिपोर्टों के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है, जो मानव कल्याण और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।