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Blog / 28 Nov 2025

विक्रम-I

सन्दर्भ:

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने विक्रम-I का औपचारिक अनावरण किया। यह भारत की निजी कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित पहला ऑर्बिटल-क्लास प्रक्षेपण यान है, जो अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी के एक नए युग की शुरुआत को दर्शाता है। इसी अवसर पर कंपनी के आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत इन्फिनिटी कैंपसका हैदराबाद में उद्घाटन भी किया गया। इस प्रक्षेपण यान का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के सम्मान में रखा गया है।

विक्रम-I की प्रमुख विशेषताएँ और क्षमताएँ:

1. ऑर्बिटल लॉन्च क्षमता

विक्रम-I को विशेष रूप से छोटे उपग्रहों (small satellites) को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

·        लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में यह लगभग 350 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने में सक्षम है।

·        सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (SSO) में यह लगभग 260 किलोग्राम का पेलोड वहन कर सकता है।

इस क्षमता के कारण यह वाहन छोटे उपग्रहों, पृथ्वी अवलोकन मिशनों, संचार माइक्रो-सैटेलाइट्स और सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन के लिए अत्यंत उपयोगी बन जाता है।

Vikram‑I, the first orbital‑class launch vehicle

2. लचीली उपग्रह तैनाती (Flexible Deployment)

यह रॉकेट डेडिकेटेड लॉन्च और राइडशेयर मिशन दोनों को सपोर्ट करता है। इससे एकसाथ कई छोटे उपग्रहों को भेजने की सुविधा मिलती हैजो छोटे सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन के लिए महत्वपूर्ण है।

3. आधुनिक डिजाइन और दक्षता

·        पूरी तरह कार्बन-समग्र संरचना, जिससे वजन कम होता है।

·        विक्रम-I के शुरुआती चरणों में सॉलिड-फ्यूल बूस्टर का उपयोग किया गया है, जबकि इसके ऊपरी चरण में 3D-प्रिंटेड लिक्विड इंजन लगाया गया है। ईंधन तकनीक का यह संयोजन रॉकेट की विश्वसनीयता, दक्षता, और लागत-प्रभावशीलता को बढ़ाता है।

4. तेज़ तैयारी और न्यूनतम आधारभूत आवश्यकताएँ

·        विक्रम-I की डिजाइन ऐसी है कि इसे किसी उपयुक्त लॉन्च साइट से 24 घंटे के भीतर असेंबल कर लॉन्च किया जा सकता है, जिससे तेज़ और उत्तरदायी लॉन्च संभव होते हैं।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए विक्रम-I का महत्व:

1. निजी क्षेत्र को बढ़ावा और उद्योग विकास

        • भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र अब सरकारी एकाधिकार से विकसित होकर सरकार और निजी क्षेत्र मॉडल की ओर बढ़ रहा है।
        • निजी कंपनियों द्वारा लॉन्च वाहन निर्माण, डिजाइन और संचालन को प्रोत्साहन मिलेगा।
          वैश्विक स्मॉल-सैटेलाइट बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

2. छोटे उपग्रहों और न्यूस्पेस इकोनॉमी को मजबूती

        • विक्रम-I की क्षमता पृथ्वी अवलोकन, संचार, माइक्रो-सैटेलाइट तथा बड़े कॉन्स्टेलेशन लॉन्च के लिए उपयुक्त है।
        • इससे भारत उभरती हुई मल्टी-बिलियन डॉलर न्यूस्पेस इकोनॉमी में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकता है।

3. सामरिक और वाणिज्यिक आत्मनिर्भरता

        • विदेशी लॉन्च सेवाओं पर निर्भरता कम होगी।
        • उपग्रह प्रक्षेपण की लागत और समय में कमी आएगी।
        • व्यावसायिक ऑपरेटरों, अनुसंधान संस्थानों और रक्षा जैसे सामरिक क्षेत्रों को लाभ मिलेगा।

4. संस्थागत और नीतिगत परिवर्तन का संकेत

        • यह उपलब्धि हालिया अंतरिक्ष-क्षेत्र सुधारों का परिणाम है, जिनसे निजी कंपनियों को अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और लॉन्च सुविधाओं तक पहुंच मिली है।
        • स्काईरुट का इंफिनिटी कैंपस मासिक स्तर पर रॉकेट निर्माण की क्षमता को दर्शाता है, जो स्केलेबिलिटी का मजबूत उदाहरण है।

चुनौतियाँ और आगे की राह:

      • विक्रम-I की सफलता के लिए उसके पहले प्रक्षेपण की विश्वसनीयता और प्रदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए इसे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों, लागत-दक्षता, और समय-पालन के कठोर मानदंडों पर खरा उतरना होगा।
      • इसके अतिरिक्त, उन्नत सामग्री की उपलब्धता, आवश्यक पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ, और सुगम नियामकीय प्रक्रियाएँ भी महत्वपूर्ण कारक हैं।
      • आगे बढ़ते हुए, अंतरिक्ष क्षेत्र में गति बनाए रखने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सतत सहयोग, पारदर्शी नीतियाँ, और नवाचार-उन्मुख पारिस्थितिकी (ecosystem) की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

विक्रम-I भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक परिवर्तनकारी विकास है। यह देश में छोटे उपग्रहों के लिए समर्पित लॉन्च क्षमता विकसित करता है, निजी नवाचार को बढ़ावा देता है और एक मजबूत, स्केलेबल लॉन्च उद्योग की नींव रखता है। यह उपलब्धि भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भर, प्रतिस्पर्धी और उद्यमशील युग की ओर ले जाने की क्षमता रखती है।