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Blog / 05 Nov 2025

यूएस‑चीन “G2” बैठक: 07 नवम्बर 2025 की बुसान वार्ता | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात बुसान में हुई, जिसे जी–2 बैठककहा गया। इस बैठक को ऐतिहासिक बताया गया, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच स्थायी शांति और सहयोग का निर्माण करना था।

जी–2 अवधारणा के बारे में:

जी–2 की अवधारणा सर्वप्रथम 2005 में अर्थशास्त्री सी. फ्रेड बर्गस्टेन द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इसका विचार था कि अमेरिका और चीन के बीच घनिष्ठ सहयोग के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों का समाधान किया जा सके।

US President Donald Trump Calls G2 Meeting With Chinese President Xi  Jinping "Great One," Says It Will Bring "Everlasting Peace"

जी–2 के पीछे तर्क:

जी–2 की रणनीतिक अवधारणा कुछ संरचनात्मक वास्तविकताओं पर आधारित है:

    • आर्थिक शक्ति: अमेरिका और चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ और व्यापारिक राष्ट्र हैं।
    • वैश्विक विकास एवं शासन: दोनों देश मिलकर वैश्विक उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा रखते हैं, जिससे विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सेतु का निर्माण होता है।
    • पर्यावरणीय नेतृत्व: ये दोनों देश विश्व के सबसे बड़े प्रदूषक हैं, इसलिए संयुक्त जलवायु कार्रवाई अत्यंत आवश्यक है।

ज़्बिग्न्यू ब्रेज़िंस्की, नील फर्ग्यूसन, रॉबर्ट ज़ोएलिक और जस्टिन यीफू लिन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि एक सहयोगात्मक जी–2 वैश्विक वित्तीय संकटों, परमाणु प्रसार, क्षेत्रीय संघर्षों और वैश्विक शासन की चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम हो सकता है।

अवसर:

एक प्रभावी जी–2 निम्नलिखित लाभ प्रदान कर सकता है:

    • वैश्विक व्यापार, वित्त और प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थिर कर सकता है।
    • ताइवान जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर जैसे क्षेत्रों में सैन्य तनाव के जोखिम को कम कर सकता है।
    • जलवायु कार्रवाई और सतत विकास लक्ष्यों को गति दे सकता है।
    • बहुपक्षीय संस्थानों में संयुक्त नेतृत्व के लिए मंच प्रदान कर सकता है।

चुनौतियाँ:

इसके बावजूद, जी–2 के समक्ष कई बाधाएँ हैं:

    • रणनीतिक प्रतिस्पर्धा: प्रौद्योगिकी, ताइवान और दुर्लभ पृथ्वी संसाधनों पर प्रतिद्वंद्विता आपसी विश्वास को सीमित करती है।
    • बहुध्रुवीयता: यूरोपीय संघ, भारत और आसियान जैसी उभरती शक्तियाँ जी–2 के विशेष प्रभाव को चुनौती देती हैं।
    • अवधारणात्मक अस्पष्टता: जी–2 एक औपचारिक संस्था नहीं है; यह एक आकांक्षात्मक विचार है, जिसकी व्यवहारिकता पर हिलेरी क्लिंटन जैसे आलोचकों ने प्रश्न उठाए हैं।

भारत और विश्व के लिए निहितार्थ:

भारत जैसे देशों के लिए जी–2 का अर्थ है रणनीतिक विविधीकरणदोनों महाशक्तियों के साथ संतुलित संबंध रखते हुए अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना। वैश्विक स्तर पर यह बैठक इस बात का संकेत देती है कि अमेरिकाचीन प्रतिस्पर्धा को जिम्मेदारीपूर्वक प्रबंधित करना आवश्यक है ताकि आर्थिक अस्थिरता और भूराजनीतिक तनाव से बचा जा सके।

निष्कर्ष:

बुसान में ट्रम्पशी बैठक यह स्पष्ट करती है कि वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में अमेरिकाचीन संबंध केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। यद्यपि जी–2 एक आकांक्षा मात्र है, यह प्रतिस्पर्धा के बीच सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि दोनों देश प्रतिद्वंद्विता को कितनी जिम्मेदारी से प्रबंधित करते हैं, संवाद को कितना संस्थागत बनाते हैं, और व्यापक वैश्विक हितधारकों को कितनी समावेशी भागीदारी प्रदान करते हैं।