संदर्भ:
हाल ही में अमेरिका ने नए H-1B वर्क वीज़ा के लिए शुल्क बढ़ाकर प्रति वर्ष 1 लाख डॉलर कर दिया। इससे पहले यह शुल्क 2,000 से 5,000 डॉलर के बीच था, जो नियोक्ता के अनुसार और अन्य कारकों पर निर्भर करता था।
H-1B वीज़ा फीस वृद्धि का महत्व:
· सभी अनुमोदित एच-1बी आवेदनों में 71% भारतीय हैं, जबकि चीन इसका दूसरा सबसे बड़ा समूह है।
· तकनीकी कंपनियां कुशल कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए एच-1बी वीज़ा पर अत्यधिक निर्भर हैं और अंतर्राष्ट्रीय छात्र इसे अमेरिका में अध्ययन से रोजगार में संक्रमण के लिए उपयोग करते हैं।
आईटी/तकनीकी सेवा क्षेत्र पर प्रभाव:
· भारत की कंपनियों के लिए अमेरिका में कुशल कर्मचारियों को तैनात करने की लागत बढ़ जाएगी।
· इससे व्यवसाय की निरंतरता में बाधा, परियोजनाओं में देरी या कंपनियों की तैनाती रणनीति पर पुनर्विचार हो सकता है।
· आईटी निर्यात के अनुमानित विकास पर असर: कुछ रिपोर्टों (जैसे एमके) के अनुसार, अगर यह शुल्क वृद्धि बनी रहती है, तो वित्त वर्ष 2026 में भारत का आईटी निर्यात विकास 4% से कम रह सकता है।
H-1B वीज़ा के बारे में:
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- उद्देश्य: यह अमेरिकी कंपनियों को कुशल विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिनके लिए विशेष ज्ञान या विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जैसे कि आईटी, इंजीनियरिंग या वित्त क्षेत्र में।
- योग्यता: आवेदक के पास कम से कम स्नातक की डिग्री होनी चाहिए और उन्हें ऐसे क्षेत्र में काम करना चाहिए, जहाँ उच्च स्तर के कौशल की जरूरत हो।
- उद्देश्य: यह अमेरिकी कंपनियों को कुशल विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिनके लिए विशेष ज्ञान या विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जैसे कि आईटी, इंजीनियरिंग या वित्त क्षेत्र में।
शुरुआत कब और क्यों हुई?
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- H-1B प्रोग्राम 1990 में शुरू किया गया था।
- लक्ष्य: अमेरिकी नियोक्ताओं को उन नौकरियों के लिए विदेशी पेशेवरों की अस्थायी भर्ती में मदद करना, जहाँ योग्य अमेरिकी कर्मचारियों की उपलब्धता कम हो।
- H-1B प्रोग्राम 1990 में शुरू किया गया था।
वीज़ा की अवधि:
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- प्रारंभ में यह 3 साल के लिए वैध होता है।
- इसे एक बार बढ़ाया जा सकता है, जिससे अधिकतम अवधि 6 साल तक हो जाती है।
- प्रारंभ में यह 3 साल के लिए वैध होता है।
वार्षिक सीमा (कैप):
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- नियमित कोटे के तहत हर साल 65,000 वीज़ा जारी किए जाते हैं।
- अमेरिकी विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री या उससे ऊपर की डिग्री वाले उम्मीदवारों के लिए अतिरिक्त 20,000 वीज़ा निर्धारित हैं।
- नियमित कोटे के तहत हर साल 65,000 वीज़ा जारी किए जाते हैं।
भारत के लिए चिंता का विषय क्यों?
हाल ही में अमेरिका द्वारा H-1B वीज़ा फीस में वृद्धि ने भारत की विकास मॉडल में गहरी संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर किया है।
1. बाहरी कारकों पर अत्यधिक निर्भरता: भारत कुशल नौकरियों, उच्च शिक्षा और तकनीकी अवसरों के लिए विदेशी बाजारों, खासकर अमेरिका, पर बहुत अधिक निर्भर है। ऐसे में विदेशों में किसी भी नीति परिवर्तन का सीधा असर भारत पर पड़ता है और घरेलू व्यवधानों का कारण बनता है।
2. कमज़ोर घरेलू रोजगार व्यवस्था: भारत में उच्च स्तरीय नौकरियों और अनुसंधान के अवसर सीमित हैं। यही कारण है कि कई पेशेवर विदेशों में करियर बनाने को मजबूर होते हैं। लेकिन जब ऐसे अवसर सिमटते हैं तो उनके पास विकल्प बहुत कम रह जाते हैं।
3. निर्यात मॉडल की जोखिमपूर्ण प्रकृति: भारत का आईटी सेक्टर ऑनसाइट तैनाती के लिए H-1B वीज़ा पर अत्यधिक निर्भर है। बढ़ी हुई लागत से अब कंपनियों की लाभप्रदता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा दोनों खतरे में पड़ सकती हैं।
4. नीतिगत तैयारी की कमी: अमेरिका के इस अचानक फैसले ने यह दिखा दिया कि भारत के पास न तो समय रहते चेतावनी पाने की कोई सुदृढ़ प्रणाली है और न ही पर्याप्त लचीलापन और कूटनीतिक सुरक्षा।
5. सामाजिक और रणनीतिक असर: यह सिर्फ आर्थिक प्रभाव तक सीमित नहीं है। इसका असर भारतीय परिवारों, रेमिटेंस (विदेश से भेजी जाने वाली धनराशि) और लोगों की आकांक्षाओं पर भी पड़ता है। साथ ही, यह भारत के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के तहत रणनीतिक स्वतंत्रता को भी चुनौती देता है।
आगे की राह:
भारत को चाहिए कि:
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- घरेलू नवाचार और रोजगार सृजन को और मज़बूत बनाए।
- कूटनीतिक सहयोग और संवाद को बेहतर करे।
- निर्यात, मानव संसाधन (टैलेंट) और आपूर्ति श्रृंखला में अधिक लचीलापन विकसित करे।
- घरेलू नवाचार और रोजगार सृजन को और मज़बूत बनाए।
निष्कर्ष:
H-1B वीज़ा से जुड़ा मुद्दा कोई अकेली चुनौती नहीं है, बल्कि यह भारत की गहरी रणनीतिक निर्भरताओं को उजागर करता है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि भारत के लिए अवसर संरचनाओं में विविधता लाना, घरेलू क्षमताओं को सुदृढ़ करना और भविष्य के लिए तैयार एक लचीला तथा टिकाऊ विकास मॉडल तैयार करना अत्यंत आवश्यक है।