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Blog / 02 May 2025

अमेरिका ने भारत को 'प्राथमिक निगरानी सूची' में शामिल किया

सन्दर्भ:

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) द्वारा जारी स्पेशल 301 रिपोर्ट 2025 में, अमेरिका ने भारत को एक बार फिर 'प्राथमिक निगरानी सूची' (Priority Watch List) में शामिल किया है। यह कदम भारत के बौद्धिक संपदा (IP) अधिकारों के संरक्षण और प्रवर्तन तंत्र को लेकर जारी चिंताओं के चलते उठाया गया है। भारत उन आठ देशों में शामिल है, जिनकी पहचान अमेरिकी आईपी हितधारकों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करने वाले देशों के रूप में की गई है।

भारत को 'प्राथमिक निगरानी सूची' में क्यों रखा गया है?

अमेरिका ने भारत की IP प्रणाली को लेकर कुछ लंबे समय से चल रही समस्याएं बताईं, जिनमें शामिल हैं:

  • भारतीय पेटेंट कानून (जैसे कि सेक्शन 3(d)) में प्रक्रियागत और विवेकाधीन मुद्दे
  • पेटेंट मिलने में देरी और ज्यादा कागजी कार्रवाई
  •  IP कानूनों का प्रवर्तन कमजोर होना
  • IP से जुड़े आयातों पर ऊंचा सीमा शुल्क
  • कानूनी व्याख्या को लेकर असमंजस

भारत में आईपी प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • पेटेंट योग्यता से जुड़ी चिंताएं: भारतीय पेटेंट कानून, विशेष रूप से भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3(डी), नवाचार पर रोक लगाता है। यह प्रावधान मौजूदा दवाओं में केवल मामूली बदलाव के आधार पर पेटेंट देने की अनुमति नहीं देता, जब तक कि वे उनकी प्रभावकारिता में उल्लेखनीय वृद्धि न करें।
  • प्रवर्तन तंत्र की कमजोरियाँ: भारत में आईपी प्रवर्तन को लेकर आलोचना होती है क्योंकि राष्ट्रीय और राज्य स्तर के अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी, उल्लंघन पर हल्के दंड, और व्यापक स्तर पर पाइरेसी व जालसाजी की वजह से भारत को 2024 की 'कुख्यात बाजारों की सूची' में शामिल किया गया है।
  • ट्रेडमार्क से जुड़ी चुनौतियाँ: ट्रेडमार्क जांच की गुणवत्ता कमजोर है और नक़ल का स्तर काफी ऊँचा है। गौरतलब है कि भारत अब तक ट्रेडमार्क पर सिंगापुर संधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रेडमार्क नियमों के सामंजस्य के लिए एक महत्वपूर्ण ढांचा मानी जाती है।
  • विदेशी कंपनियों के लिए रुकावटें: जैव विविधता नियम, 2024 के तहत विदेशी कंपनियों को भारतीय जैव संसाधनों पर बौद्धिक संपदा अधिकार का दावा करने से पहले पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा। इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए प्रक्रिया और अधिक जटिल हो गई है।
  • अन्य चिंताएँ: आईपी प्रदान करने में देरी, आवेदनों की भारी संख्या के कारण लंबित मामलों का अंबार, और तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण के चलते ऑनलाइन पाइरेसी की बढ़ती घटनाएँ भी गंभीर मुद्दे बने हुए हैं।

भारत में जारी बौद्धिक संपदा सुधार:

  • राष्ट्रीय IPR नीति (2016): यह नीति विश्व व्यापार संगठन (WTO) के TRIPS समझौते के अनुरूप है और भारत में नवाचार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से तैयार की गई है।
  • जागरूकता और सहायता कार्यक्रम: राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता मिशन (NIPAM) और स्टार्टअप्स बौद्धिक संपदा संरक्षण योजना (SIPP) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से IP के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है और प्रक्रियाओं को सरल व प्रभावी बनाया जा रहा है।
  • पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024: इन संशोधनों का उद्देश्य पेटेंट अनुमोदन प्रक्रिया को सरल, तेज और पारदर्शी बनाना है।
  • विशेष IP प्रभागों की स्थापना: वर्ष 2024 में कलकत्ता और हिमाचल प्रदेश सहित कई उच्च न्यायालयों में विशेष IP प्रभाग स्थापित किए गए हैं, जिससे IP मामलों पर न्यायिक ध्यान और विशेषज्ञता बढ़ने की उम्मीद है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा में कदम: भारत ने WIPO प्रदर्शन और फोनोग्राम संधि तथा WIPO कॉपीराइट संधि जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा संधियों से जुड़ने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

निष्कर्ष:

भारत का दावा है कि उसका आईपी नीति TRIPS के अनुसार है और जनहित को ध्यान में रखती है। लेकिन प्राथमिकता निगरानी सूची में इसकी निरंतर उपस्थिति घरेलू नीति उद्देश्यों और अंतर्राष्ट्रीय आईपी अपेक्षाओं के बीच निरंतर तनाव को दर्शाती है। दोनों देशों के बीच संवाद जारी रहने की संभावना है, जिससे नवाचार, पहुंच और व्यापार संबंधों में संतुलन बना रहेगा।