संदर्भ:
हाल ही में यूनेस्को की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (GEM) रिपोर्ट 2024–25 जारी की गई है, जिसमें यह पाया गया कि भारत अब भी लगातार सीखने के संकट, लैंगिक असमानता और शिक्षा प्रणाली में नेतृत्व की चुनौतियों का सामना कर रहा है।
मुख्य निष्कर्ष:
1. भारत में सीखने का संकट: हालांकि भारत में प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन दर 95% से अधिक है, लेकिन बच्चों की बुनियादी शैक्षणिक समझ अब भी बहुत कम है।
• ASER 2023 के अनुसार, केवल 43% कक्षा 3 के बच्चे ही कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ पाने में सक्षम हैं।
• NAS 2021 की रिपोर्ट बताती है कि केवल 25% कक्षा 8 के छात्र ही गणित में अपेक्षित दक्षता दिखा सके।
2. वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर लैंगिक असमानता:
• पढ़ने की दक्षता में अंतर: दुनियाभर में हर 100 लड़कियों पर केवल 87 लड़के ही न्यूनतम पढ़ने की योग्यता प्राप्त कर पाते हैं। मध्य-आय वाले देशों में यह अनुपात और घटकर 72 लड़कों पर 100 लड़कियों का हो जाता है, जो यह दर्शाता है कि लड़कों की तुलना में लड़कियाँ पढ़ने में आगे हैं।
• भारत में नेतृत्व की असमानता: प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 60% है, लेकिन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति के पदों पर महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 13% है। यह कार्यबल में भागीदारी और शीर्ष नेतृत्व में प्रतिनिधित्व के बीच गहरी खाई को दर्शाता है।
3. विद्यालय प्रबंधन में नेतृत्व की कमी: नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 स्कूल प्रमुखों के लिए हर वर्ष 50 घंटे का प्रशिक्षण अनिवार्य बनाती है, लेकिन देश के कई राज्यों में अब भी स्कूल प्राचार्यों के लिए औपचारिक नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम मौजूद नहीं हैं।
4. कुछ सकारात्मक संकेत:
• महिलाओं की बढ़ती भागीदारी: प्राथमिक शिक्षा में महिला शिक्षकों की अधिकता से स्कूलों में अधिक लैंगिक-संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण वातावरण बन रहा है।
• नीतिगत सुधार: NEP 2020 में नेतृत्व विकास और प्रशिक्षण पर विशेष ज़ोर दिया गया है, जिससे शिक्षा व्यवस्था में नेतृत्व के महत्व को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है।
5. लगातार बनी रहने वाली चुनौतियाँ:
• डिजिटल असमानता: COVID-19 महामारी ने डिजिटल संसाधनों की असमान पहुंच को और अधिक उजागर किया, जिससे विशेष रूप से लड़कियाँ और समाज के वंचित वर्ग प्रभावित हुए जिनके पास पर्याप्त तकनीकी साधन नहीं थे।
सिफारिशें और आगे की राह:
GEM रिपोर्ट ने भारत में शिक्षा संबंधी चुनौतियों का समाधान निकालने और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:
1. नेतृत्व क्षमता को सुदृढ़ करना: स्कूल प्रमुखों के लिए अनिवार्य प्रमाणन और नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को औपचारिक रूप से लागू करना, ताकि नेतृत्व की गुणवत्ता बेहतर हो सके।
2. महिलाओं को नेतृत्व में आगे लाना: शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष नेतृत्व विकास योजनाएं शुरू करना, जिससे वे उच्च पदों तक पहुँच सकें।
3. सीखने पर आधारित मूल्यांकन को प्राथमिकता देना: केवल नामांकन के आँकड़ों पर ध्यान देने की बजाय, ASER और NAS जैसे विश्वसनीय माध्यमों के ज़रिए छात्रों के वास्तविक सीखने के परिणामों को मुख्य आधार बनाया जाना।
यूनेस्को के बारे में:
• संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और कला के माध्यम से विश्व शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
• इसकी स्थापना 1945 में लीग ऑफ नेशंस की "इंटरनेशनल कमेटी ऑन इंटेलेक्चुअल कोऑपरेशन" के उत्तराधिकारी के रूप में की गई थी।
• इसके 193 सदस्य देश और 11 सहयोगी सदस्य हैं, और यह विभिन्न सरकारी, गैर-सरकारी तथा निजी संस्थानों के साथ साझेदारी में कार्य करता है।
• यूनेस्को का मुख्यालय पेरिस में स्थित है, जहाँ इसका विश्व धरोहर केंद्र (World Heritage Centre) भी मौजूद है।
निष्कर्ष:
यूनेस्को की GEM रिपोर्ट 2024–25 यह दर्शाती है कि शिक्षा में समानता और गुणवत्ता केवल नामांकन आंकड़ों से नहीं आँकी जा सकती। जब तक नेतृत्व का सशक्त विकास, लैंगिक संतुलन और नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक शिक्षा प्रणाली में व्यापक और ठोस सुधार संभव नहीं है। यदि उपयुक्त सुधारात्मक कदम समय पर उठाए जाएँ, तो भारत अपनी विशाल छात्र जनसंख्या की पूरी क्षमता को विकसित कर सकता है और सीखने के अंतर को प्रभावी रूप से कम कर सकता है।